पवित्र धन प्राप्ति उपाय
धन के चार हिस्सेदार हैं-धर्म, चोर, राजा और – अग्नि। ये धन के हिस्सेदार हैl यह चारों भाई हैं। इन चारों में बड़ा भाई धर्म है।
॥ दोहा ॥
धन के भागी चार हैं, धर्म, चोर, नृप, आग ।।
कोपहँ ता पै भ्रात त्रै, करें जो ज्येष्ठहिं त्याग ॥
दूसरे तीनों भाई धर्म की इज़्ज़त करते हैं। जो लोग धर्म में है – धन लगाते हैं उनको यह तीनों भाई कुछ नहीं कहते, क्योंकि वे समझते हैं कि उन्होंने इनके बड़े भाई की इज़्ज़त की है।
परन्तु जो लोग धर्म के मार्ग पर धन ख़र्च नहीं करते उनपर यह तीनों भाई क्रोधित होते हैं। क्योंकि वे समझते हैं कि उन लोगों ने इनके बड़े भाई का निरादर किया है।ये धन के हिस्सेदार नहीं है
परिणाम यह होता है कि या तो उनका धन चोर ले , जाते हैं या राजा दण्ड लगा देता है या फिर अग्नि की भेंट हो जाता है। उनके पास वह धन रहता नहीं। इससे सिद्ध हुआ कि धर्म के मार्ग में धन लगाया हुआ ही अपना धन है।
जो धन धर्म के मार्ग में खर्च हो जाता है, वह समझ लीजिये कि भगवान् के बैंक में जमा हो गया है, जो बैंक कभी फेल नहीं होता तथा एक के अनेक बनाकर वापस लौटाता है।
जैसे बीज का तो एक दाना होता है परन्तु फल तो उसका एक नहीं रहता, वह तो अनेक हो जाता है। ऐसे मेंही जो धन धर्मार्थ ख़र्च किया जाता है, वह एक से अनेक होकर मिलता है परन्तु इसमें भी शर्त है कि धन को धर्म के मार्ग पर ख़र्च करते समय दिल में भावना निष्काम हो ।
अर्थात्
‘जिसकी वस्तु तिसु आगे राखै प्रभ की आगिआ मानै माथै’ वाली बात हो। अगर ऐसी भावना के साथ बीज बोया गया है,
तो समझ लो कि बीज धरती में दब गया है और दबा हुआ बीज फलस्वरूप एक से अनेक होकर मिलता है। लेकिन जो धर्म का बीज किसी संसारी कामना के सहित बोया जाता है, तो वह यहीं समाप्त हो जाता है।
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