
Japji Sahib in Hindi (जपजी साहिब पाठ)
 सत नाम करता पुरख निरभओ निरवेर
अकाल मूरत अजूनी सैंभ गुरुप्रसादि ॥ 
॥ जपु ॥
आदि सच जुगादि सच ॥ 
है भी सच नानक होसी भी सच ॥
सोचे सोच न होवई जे सोची लख वार ॥
 चुपे चुप न होवई जे लाए रहा लिव तार ॥
 भुखिआ भुख न उतरी जे बंना पुरीआ भार ॥
 सहस सिआणपा लख होहे त इक न चले नाल ॥
 किव सचिआरा होईऐ किव कूड़े तुटे पाल ॥
 हुकम रजाई चलणा नानक लिखिआ नाल ॥॥॥
हुकमी होवन आकार हुकम न कहिआ जाई ॥
 हुकमी होवन जीअ हुकम मिले वडिआई ॥
 हुकमी उत्तम नीच हुकम लिखि दुख सुख पाईअहि ॥
 इकना हुकमी बखसीस इक हुकमी सदा भवाईअहि  ॥
 
हुकमे अंदर सभ को बाहर हुकम न कोए ॥
 नानक हुकमे जे बुझे त हओमे कहे न कोए ॥2॥ 
गावे को ताणु  होवे किसै ताणु  ॥
 गावै को दात जाणे नीसाणु ॥
 गावे को गुण वडिआईआ चार ॥
 गावै को विद्या विखम वीचारु ॥
 गावै को साजि करे तनु खेह ॥
 गावे को जीअ ले फिर देह ॥
 गावे को जापै दिसे दूर ॥
 गावे को वेखे हादरा हदूर ॥
 कथना कथी न आवै तोटि  ॥
 कथ कथ कथी कोटी कोट कोट ॥
 देदा दे लेदे थक पाहि  ॥
 जुगा जुगंतर खाही खाहे ॥
 हुकमी हुकम चलाए राहो ॥ 
नानक विगसै बेपरवाहु ॥3॥
 साचा साहिब साचु नाइ भाखिआ भाउ अपारु ॥
 आखह मंगह देहे देहे दात करे दातारू ॥
 फेर कि अगै रखीऐ जित दिसे दरबार ॥
 मुहौ कि बोलण बोलीऐ जित सुण धरे प्यार ॥
 अमृत वेला सच नाओ वडिआई वीचारु ॥
 करमी आवै कपड़ा नदी मोख दुआरु ॥
 नानक एवै जाणीऐ सभ आपे सचिआरु ॥4॥
थापेआ न जाए कीता न होइ ॥
 आपे आप निरंजनु सोइ ॥
 जिन सेविआ तीनि  पाया मान ॥
 नानक गावीऐ गुणी निधान ॥ 
गावीऐ सुणीऐ मन रखीऐ भाउ ॥
 दुख परहरि मुख घर ले जाइ ॥
 गुरमुख नाद गुरमुख वेदं गुरमुख रहेआ समाई ॥
 गुर ईसरु गुर गोरखु बरमा गुर पारबती माई ॥ 
जे हउ जाणा आखा नाहीं कहणा कथन न जाई ॥
 गुरा इक देहि बुझाई ॥
 सभना जीआ का इकु दाता सो में विसरि न जाई ॥5॥ 
तीरथ नावा जे तिसु भावा विणु भाणे कि नाइ ॥
 जेती सिरठि उपाई वेखा विणु करमा कि मिले लई ॥
 मति विचि रतन जवाहर माणिक जे इक गुर की सिख सुणी ॥ 
गुरा इक देहे बुझाई ॥
 सभना जीआ का इक दाता सो में विसर न जाई ॥6॥
जे जुग चारे आरजा होर दसूणी होए ॥
 नवा खंडा विच जाणीऐ नाल चलै सभ कोए ॥
 चंगा नाउ रखाइ के जस कीरत जग लेइ ॥ 
जे तिस नदर न आवई त वात न पुछे के ॥ 
कीटा अंदर कीट कर दोसी दोस धरे ॥ 
नानक निरगुण गुण करे गुणवन्तिआ गुण दे ॥ 
तेहा कोए न मुझई ज तिस गुण कोए करे ॥7॥
सुणिये सिध पीर सुरि नाथ ॥ 
सुणिये धरति धवल आकास ॥
 सुणिये दीप लोअ पाताल ॥
 सुणिये पोहे न सके काल ॥
 नानक भगता सदा विगासु 
सुणिये दुख पाप का नासु 8॥
सुणिये ईसर बरमा इंदु॥
 सुणिये मुख सालाहण मंदु  ॥
 सुणिये जोग जुगत तन भेद ॥
 सुणिये सासत सिम्रित वेद ॥
 नानक भगता सदा विगासु ॥
सुणिये दुख पाप का नासु ॥ 9 ॥
सुणिये सत संतोख जान ॥
 सुणिये अठसठ का इसनान ॥
 सुणिये पड़ पड़ पावहे मान ॥
सुणिये लागे सहज ध्यान ॥
 नानक भगता सदा विगासु  ॥ 
         सुणिये दुख पाप का नासु   ॥10 ॥ 
सुणिये  सरा गुणा के गाह ॥
 सुणिये  सेख पीर पातिसाह ॥ 
सुणिये  अंधे पावहे राहो ।
सुणिये  हाथ होवै असगाहो ॥
 नानक भगता सदा विगासु ॥
सुणिये दूख पाप का नासु ॥11 ॥
मंने की गति कही न जाए ॥
 जे को कहै पिछे पछुताए ॥ 
कागदि कलम न लिखणहारु ॥
 मने का बहे करन वीचारु  ॥ 
ऐसा नाम निरंजन होइ ॥ 
जे को मन जाणे मनि कोइ ॥12॥ 
मंनै सुरत होवे मन बुधि ॥
 मंनै सगल भवण की सुधि ॥
 मंनै मुहे चोटा ना खाइ ॥
 मंने जम के साथ न जाइ ॥
 ऐसा नाम निरंजन होइ ॥
 जे को मंन जाणे मन कोइ ॥13॥
 मंनै मारग ठाक न पाइ ॥ 
मंनै पत सिओ परगट जाइ ॥
 मंनै मग न चलै पंथु ॥
 मंने धरम सेती सनबंधु ॥ 
ऐसा नाम निरजन होइ ॥
 जे को मंन जाणे मन कोइ ॥14॥ 
मंनै पावहे मोखु दुआरु  ॥ 
मंनै परवारै साधारु  ॥
 मंने तरै तारे गुर सिख ॥
 मंनै नानक भवहि न भिख ॥
 ऐसा नाम निरंजन होइ ॥ 
जे को मंन जाणे मन कोइ ॥15॥
पंच परवाण पंच परधानु ॥
 पंचे पावहे दरगहि मानु ॥ 
पंचे सोहहि दर राजानु ॥ 
पंचा का गुर एक ध्यानु ॥
 जे को कहे कटे वीचारु ॥
 करते के करणे नाही सुमारु ॥
 धोल धरम दया का पूतु ॥ 
संतोख थाप रखिआ जिन सूति ॥
 जे को बुझे होवे सचिआरु  ॥ 
धवले उपरि केता भारु ॥ 
धरती होरु परै होरु हारु ||
 तिस ते भारु तलै कवणु जोरु ॥
 जीअ जाति रंगा के नाव ॥
 सभना लिखिआ वुड़ी कलाम ॥
 एहु लेखा लिखि जाणै कोइ ॥
 लेखा लिखिआ केता होइ ॥
 केता ताणु सुआलिहो रूप ॥
 केती दात जाणे कोण कूतु ॥ 
कीता पसाओ एको कवाउ ॥
 तिस ते होए लख दरीआउ ।
 कुदरत कवण कहा वीचारू ॥
 वारिआ न जावा एक वार ॥ 
जो तुध भावे साई भली काट ॥
 तू गदा टालामत निरकार ॥16॥
 
असंख जप असंख भाओ ॥ 
असंख पूजा असंख तप ताओ ॥
 असंख ग्रंथ मुख वेद पाठ ॥ 
असंख जोग मन रहहे उदास ॥ 
असंख भगत गुण ज्ञान वीचार ॥
 असंख सती असंख दातार ॥ 
असंख सूर मुह भख सार ॥ 
असंख मोन लिव लाए तार ॥
 कुदरत कवण कहा वीचार ॥
 वारिआ न जावा एक वार ॥
 जो तुधु भावै साई भली कार ॥
 त सदा सलामति निरकार ||17|
असंख मूरख अंध घोर ॥ 
असंख चोर हरामखोर ॥
 असंख अमर कर जाहि जोर ॥ 
असंख गलवढ हतिआ कमाहि ॥
 असंख पापी पापु कर जाहि ॥
 असंख कूड़िआर कूड़े फिराहि  ॥ 
असंख मलेछ मलु भखि खाहे ॥ 
असंख निंदक सिर करहि भारु॥
 नानक नीच कहे वीचारु  ॥ 
वारिआ न जावा एक वार ॥ 
जो तुध भावे साई भली कार ॥
 तू टादा सलामति निंरकार ॥18॥ 
असंख नाव असंख थाव ॥
अगम अगम असंख लोअ ॥
असंख कहहि सिरि भारु होए ॥
अखरी नामु अखरी सालाह ॥
अखरी जान गीत गुण गाह ॥
अखरी लिखण बोलण बाणि॥
अखरा सिर संजोगु वखाणि ॥
जिनि एहि लिखे तिस सिर नाहि ॥
जिव फुरमाए तैव तेव पाहे ॥
जेता कीता तेता नाओं ॥
विण नावे नाही को थाओ ॥
कुदरत कवण कहा वीचार ॥
वारिआ न जावा एक वार ॥
जो तुध भावे साई भली कार ॥
तू सदा सलामत निरंकार ॥19॥
 पौड़ी 19-2
भरिऐ हथ पैर तन देह ॥
 पाणी धोते उतरसु खेह ॥
 मूत पलीती कपड़ु होए ॥
 दे साबूणु लईऐ ओहो धोइ ॥
 भरीऐ मति पापा के संग ॥ 
ओहु धोपै नावै के रंग ॥
 पुनी पापी आखणु नाहि ॥
 करि करि करणा लिख लै जाहो ॥
 आपे बीजि आपे ही खाहो ॥
 नानक हुकमी आवहु जाहु ॥20॥
 तीरथु तपु दया दतु दानु ॥
 जे को पावे तिल का मान ॥
 सुणेआ मंनिआ मनि कीता भाओ ॥
 अंतरगति तीरथि मल नाउ ॥
 सभ गुण तेरे मै नाही कोइ ॥
 विणु गुण कीते भगति न होए ॥ 
सुअसति आथि बाणी बरमाउ॥
 सत सुहाणु सदा मन चाउ॥ 
कवणु  सु वेला वखतु  कवण कवण थिति कवण वारु ॥
 कवण सि रूती माउ कवणु जितु होआ आकारु  ॥
 वेल न पाईआ पंडती जी होवे लेख पुराण ॥ 
वखत न पाईओं कादीआ जि लिखनि लेखु कुटाण ॥ 
थिति वारु ना जोगी जाणे रूति माहो ना कोई ॥ 
जा करता सिरठी कउ साजे आपे जाणे सोई ॥
 किव करि आखा किव सालाही किउ वरनी किव जाणा |
 नानक आखण सभु को आखे इक दू इक सिआणा ॥
 वडा साहिबु वडी नाई कीता जा का होवे ॥
 नानक जे को आपो जाणे अग गया न सोहे ॥21॥ 
पाताला पाताल लख आगासा आगास ॥
 ओड़क ओड़क भाल थके वेद कहन इक वात ॥
 सहस अठारह कहनि  कतेबा असुलू इक धातु ॥ 
लेखा होए त लिखीऐ लेखे होए विणासु ॥ 
नानक वडा आखीऐ आपे जाणे आपु ॥22॥
सालाही सालाहि एती सुरति न पाईआ ॥
 नदीआ अतै वाह पवहि समुंद न जाणीअहे ॥ 
समुंद साह सुलतान गिरहा सेती मालु धनु ॥ 
कीडी तुल न होवनी जे तिसु मनहु न वीसरहि ॥23॥ 
अंतु न सिफती कहणि  न अंतु ॥
अंतु न करणे देणि  न अंतु ॥
अंतु न वेखण सुणणि न अंतु ॥
अंतु न जापे किआ मन मंतु  ॥
अंतु न जापै कीता आकार ॥
अंतु न जापै पारावारु ॥
अंतु कारणि  केते बिललाहि  ॥
ता के अंत न पाए जाहे ॥
एहु  अंत न जाणे कोइ  ॥
बहुता कहीऐ बहुता होइ  ॥
वडा साहिब ऊचा थाउ  ॥
ऊचे उपर ऊचा नाओं ॥
एवडु  ऊचा होवे कोइ ॥
तिस ऊचे कओ जाणे सोए ॥
जेवडु आपि  जाणि आपि आपि  ॥
नानक नदरी\करमी दाति ॥24॥
बहुता करमु  लिखिआ ना जाइ  ॥
 वडा दाता तेलु  न तमाइ  ॥
 केते मंगहि  जोध अपार ॥
 केति आ गणत नहीं वीचारु  ॥
 केते खप तुटहि वेकार ॥
 केते लै लै मुकरु पाहि  ॥
 केते मूरख खाही खाहे ॥ 
केतेआ दूख भूख सद मार ॥ 
एहि भि दाति तेरी दातार ॥
 बंदि  खलासी भाणे होइ ॥
 होर आखि  न सकै कोइ  ॥
 जे को खाएकु  आखणि  पाइ  ॥ 
ओहो जाणे जेतीआ मुहि खाइ ॥
 आपे जाणे आपे देइ ॥ 
आखह सि भि केई केइ ॥
 जिस नो बखसे सिफत यालाह ॥
 नानक पातिसाही पातिसाहो ॥25॥
 अमुल गुण अमुल वापार ॥
 अमुल वापारीए अमुल भंडार ॥ 
अमुल आवहि अमुल लै जाहि ॥ 
अमुल भाइ अमुला समाहि ॥ 
अमुलु धरमु अमुलु दीबाणु ॥ 
अमुलु तुलु अमुलु परवाणु ॥ 
अमुलु बखसीस अमुलु नीसाणु ॥ 
अमुलु करमु अमुलु फुरमाणु ॥ 
अमुलो अमुलु आखिआ न जाइ ॥ 
आखि आखि रहे लिव लाइ ॥ 
आखहि वेद पाठ पुराण ॥ 
आखहि पड़े करहि वखिआण ॥
आखहि बरमे आखहि इंद ॥
आखहि गोपी तै गोविंद ॥
आखहि ईसर आखहि सिध ॥ 
आखहि केते कीते बुध ॥ 
आखहि दानव आखहि देव ॥ 
आखहि सुरि नर मुनि जन सेव ॥ 
केते आखहि आखणि पाहि ॥ 
केते कहि कहि उठि उठि जाहि ॥ 
एते कीते होरि करेहि ॥
ता आखि न सकहि केई केइ ॥ 
जेवडु भावे तेवडु होइ ॥ 
नानक जाणे साचा सोइ ॥
जे को आखे बोलुविगाडु ॥
ता लिखीऐ सिरि गावारा गावारु ॥26॥
सो दरु केहा सो घरु केहा जितु बहि सरब समाले ॥ 
वाजे नाद अनेक असंखा केते वावणहारे ॥ 
केते राग परी सिउ कहीअनि केते गावणहारे ॥ 
गावहि तुहनो पउणु पाणी बैसंतरु गावै राजा धरमु दुआरे ॥ 
गावहि चितु गुपतु लिखि जाणहि लिखि लिखि धरमु वीचारे ॥
 गावहि ईसरु बरमा देवी सोहनि सदा सवारे ॥ 
गावहि इंद इदासणि बैठे देवतिआ दरि नाले ॥ 
गावहि सिध समाधी अंदरि गावनि साध विचारे ॥ 
गावनि जती सती संतोखी गावहि वीर करारे ॥ 
गावनि पंडित पनि रखीसर जुगु जुगु वेदा नाले ॥ 
गावहि मोहणीआ मनु मोहनि सुरगा मछ पइआले ॥ 
गावनि रतन उपाए तेरे अठसठि तीरथ नाले ॥
गावहि जोध महाबल सूरा गावहि खाणी चारे ॥ 
गावहि खंड मंडल वरभंडा करि करि रखे धारे ॥ 
सेई तुधुनो गावहि जो तुधु भावनि रते तेरे भगत रसाले ॥ 
होरि केते गावनि से मै चिति न आवनि नानकु किआ वीचारे ॥ 
सोई सोई सदा सचु साहिबु साचा साची नाई ॥ 
है भी होसी जाइ न जासी रचना जिनि रचाई ॥ 
रंगी रंगी भाती करि करि जिनसी माइआ जिनि उपाई ॥ 
करि करि वेखे कीता आपणा जिव तिस दी वडिआई ॥ 
जो तिसु भावे सोई करसी हुकमु न करणा जाई ॥ 
सो पातिसाहु साहा पातिसाहिबु नानक रहणु रजाई ॥27॥
 
पौड़ी  27-38
मुंदा संतोखु सरमु पतु झोली धिआन की करहि बिभूति ॥ 
खिंथा कालु कुआरी काइआ जुगति डंडा परतीति ॥ 
आई पंथी सगल जमाती मनि जीतै जगु जीतु ॥ 
आदेसु तिसे आदेसु ॥
आदि अनीलु अनादि अनाहति जुगु जुगु एको वेसु ॥28॥
भुगति मिआनु दइआ भंडारणि घटि घटि वाजहि नाद ॥ 
आपि नाथु नाथी सभ जा की रिधि सिधि अवरा साद ॥ 
संजोगु विजोगु दुइ कार चलावहि लेखे आवहि भाग ॥ 
आदेसु तिसे आदेसु ॥
आदि अनीलु अनादि अनाहति जुगु जुगु एको वेसु ॥29॥
एका माई जुगति विआई तिनि चेले परवाणु ॥
 इकु संसारी इकु भंडारी इकु लाए दीबाणु ॥ 
जिव तिसु भावे तिवे चलावे जिव होवे फुरमाणु ॥ 
ओहु वेखे ओना नदरि न आवै बहुता एहु विडाणु ॥ 
आदेसु तिसे आदेसु ॥ 
आदि अनीलु अनादि अनाहति जुगु जुगु एको वेसु ॥३०॥
आसणु लोइ लोइ भंडार ॥ 
जो किछु पाइआ सु एका वार ॥ 
करि करि वेखे सिरजणहारु ॥ 
नानक सचे की साची कार ॥ 
आदेसु तिसे आदेसु ॥
आदि अनीलु अनादि अनाहति जुगु जुगु एको वेसु ॥31॥
इक दू जीभौ लख होहि लख होवहि लख वीस ॥ 
लखु लखु गेड़ा आखीअहि एकु नामु जगदीस ॥
 एतु राहि पति पवड़ीआ चड़ीऐ होइ इकीस ॥ 
सुणि गला आकास की कीटा आई रीस ॥ 
नानक नदरी पाईए कूड़ी कूड़े ठीस ॥32॥
आखणि जोरु चुपै नह जोरु ॥ 
जोरु न मंगणि देणि न जोरु ॥ 
जोरु न जीवणि मरणि नह जोरु ॥ 
जोरु न राजि मालि मनि सोरु ॥ 
जोरु न सुरती गिआनि वीचारि ॥
 
जोरु न जुगती छुटे संसारु ॥ 
जिसु हथि जोरु करि वेखे सोइ ॥
 नानक उतमु नीचु न कोइ ॥33॥
राती रुती थिती वार ॥ 
पवण पाणी अगनी पाताल ॥ 
तिसु विचि धरती थापि रखी धरम साल ॥ 
तिसु विचि जीअ जुगति के रंग ॥ 
तिन के नाम अनेक अनंत ॥ 
करमी करमी होइ वीचारु ॥ 
सचा आपि सचा दरबारु ॥ 
तिथे सोहनि पंच परवाणु ॥
 
नदरी करमि पवे नीसाणु ॥ 
कच पकाई ओथै पाइ ॥ 
नानक गइआ जापे जाइ ॥34॥
धरम खंड का एहो धरमु ॥
 गिआन खंड का आखहु करमु ॥ 
केते पवण पाणी वैसंतर केते कान महेस ॥ 
केते बरमे घाड़ति घड़ीअहि रूप रंग के वेस ॥ 
केतीआ करम भूमी मेर केते केते धू उपदेस ॥ 
केते इंद चंद सूर केते केते मंडल देस ॥ 
केते सिध बुध नाथ केते केते देवी वेस ॥ 
केते देव दानव मुनि केते केते रतन समुंद ॥
केतीआ खाणी केतीआ बाणी केते पात नरिंद ॥ 
केतीआ सुरती सेवक केते नानक अंतु न अंतु ॥35॥
गिआन खंड महि गिआनु परचंडु ॥ 
तिथे नाद बिनोद कोड अनंदु ॥ 
सरम खंड की बाणी रूपु ॥
 तिथे घाड़ति घड़ीऐ बहुतु अनूपु ॥ 
ता कीआ गला कथीआ ना जाहि ॥ 
जे को कहे पिछे पछुताइ ॥ 
तिथे घड़ीऐ सुरति मति मनि बुधि ॥ 
तिथे घड़ीऐ सुरा सिधा की सुधि ॥36॥
करम खंड की बाणी जोरु ॥
तिथे होरु न कोई होरु ॥
 तिथे जोध महाबल सूर ॥ 
तिन महि रामु रहिआ भरपूर ॥ 
तिथे सीतो सीता महिमा माहि ॥ 
ता के रूप न कथने जाहि ॥ 
ना ओहि मरहि न ठागे जाहि ॥ 
जिन के रामु वसै मन माहि ॥ 
तिथे भगत वसहि के लोअ ॥ 
करहि अनंदु सचा मनि सोइ ॥
सच खंडि वसे निरंकारु ॥
करि करि वेखे नदरि निहाल ॥
तिथै खंड मंडल वरभंड ॥
जे को कथै त अंत न अंत ॥
 तिथै लोअ लोअ आकार ॥ 
जिव जिव हुकमु तिवै तिव कार ॥
 
वेखे विगसै करि वीचारु ॥ 
नानक कथना करड़ा सारु ॥37॥
जतु पाहारा धीरजु सुनिआरु ॥ 
अहरणि मति वेदु हथीआरु ॥ 
भउ खला अगनि तप ताउ ॥ 
भांडा भाउ अम्रितु तितु ढालि ॥ 
घड़ीऐ सबदु सची टकसाल ॥ 
जिन कउ नदरि करमु तिन कार ॥ 
नानक नदरी नदरि निहाल ॥38॥
सलोकु ॥
 पवणु गुरू पाणी पिता माता धरति महतु ॥ 
दिवसु राति दुइ दाई दाइआ खेलै सगल जगतु ॥ 
चंगिआईआ बुरिआईआ वाचे धरमु हदूरि ॥ 
करमी आपो आपणी के नेड़े के दूरि ॥ 
जिनी नामु धिआइआ गए मसकति घालि ॥ 
नानक ते मुख उजले केती छुटी नालि ॥१॥