जय सच्चिदानंद जी का अर्थ | jai sachidanand ji

जय सच्चिदानंद जी

जय सच्चिदानंद जी

जो जगत् की उत्पत्ति, स्थिति और विनाश के हेतु हैं, तथा जो तीनों प्रकार के ताप के नाशकर्ता हैं, उन सच्चिदानन्दस्वरूप भगवान् श्रीकृष्ण को हम सब वंदन करते हैं।

परमात्मा के तीन स्वरूप- सत्, चित् और आनन्द का वर्णन

परमात्मा के तीन स्वरूप शास्त्रों में कहे गये हैं- सत्, चित् तथा आनन्द | सत् प्रगट रूप से सर्वत्र है । चित् मौन तथा आनन्द अप्रगट है। जड़ वस्तुओं में सत् तथा चित् है परन्तु आनन्द नहीं है; जीव में सत् और चित् प्रगटता है परन्तु आनन्द अप्रगट रहता है अर्थात् अप्रगट रूप से रहता है, अव्यक्तरूप से है। वैसे आनन्द इसके अपने अन्दर ही है, फिर भी आनन्द को मनुष्य (अपने) बाहर ही खोजता है। मनुष्य नारीदेह, धनसम्पत्ति आदि में आनन्द खोजता है।

आनन्द तो तुम्हारा अपना स्वरूप है। आनन्द तो (तुम्हारे) अन्दर ही है। इस आनन्द को जीवन में किस प्रकार प्रकट करें- यही भागवतशास्त्र सिखाता है।

दूध में मक्खन रहता है फिर भी वह दीखता नहीं है, परन्तु दूध से दही बनाकर, दही मन्थन करने पर दीख जाता है। ठीक इसी प्रकार से मानव को मनोमन्थन करके आनन्द को प्रगट करना है। दूध में जैसे मक्खन का अनुभव नहीं होता है, इसी प्रकार ईश्वर का, जो कि सर्वत्र है, फिर भी उनका अनुभव नहीं होता है।

जीव है तो ईश्वर का ही, तो भी उस ईश्वर को पहचानने का यत्न करता नहीं है। इसी कारण से इसे आनन्द नहीं मिलता है। कोई कैसा भी जीव हो उसे ईश्वर से मिलना है। नास्तिक भी (थक-हारकर) अन्त में शान्ति ही खोजता है।

आनन्द के अनेक प्रकार तैत्तरीय उपनिषद् में बताये गये हैं, परन्तु इनमें से दो मुख्य आनन्द हैं- (१) साधनजन्य आनन्द, (२) स्वयंसिद्धि आनन्द।

“जय सच्चिदानंद जी”, शब्द तीन शब्दों से मिलकर बना है – सत्त, चित्त और आनंद और ये तीनों परमात्मा के तीन सवरूप हैं.
सत्त का अर्थ है – अविनाशी, सदा रहने वाला। परमात्मा सत रूप से सर्वत्र है
चित्त का अर्थ है – चैतन्य अर्थात ज्ञान रूप (सब जानने वाला).
आनन्द का अर्थ है – उत्तेजना रहित सहज खुशी.
(Sat – Truth, Chit – Consciousness, Anand – Bliss)
“जय सच्चिदानंद” का अर्थ है कि आपके हृदय में जो सत्-चित-आनन्द रूप श्री सतगुरुदेव महाराज जी विराजमान हैं, उनकी जय हो.
हम सभी श्री गुरुमहाराज जी के अंश हैं. जब हम किसी गुरुमुख को हाथ जोड़कर कर “जय सच्चिदानंद” कहते हैं तो इसका अर्थ होता है कि हम उसके अन्दर विराजमान श्री गुरुमहाराज जी के स्वरुप की जय कर रहे हैं. इसी प्रकार सामने वाला गुरुमुख भी हमें “जय सच्चिदानंद” जी कहता है, यह अद्वैत का भाव प्रकट करता है. 🙏🌹सभी गुरूमुखों को सादर जय सच्चिदानंद जी l🌹🙏

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