Atal bihari Vajpayee biography | अटल बिहारी वाजपेयी

Atal bihari Vajpayee biography | श्री अटल बिहारी वाजपेयी का जीवन परिचय

Atal bihari Vajpayee biography

सच्ची साधना और पवित्र त्याग से ही जीवन सार्थक होता है। व्यक्ति में यदि अपने कर्म के प्रति गहरी निष्ठा और लगन हो तो उसे जीवन में सफलता अवश्य मिलती है।”…

भारत के 12वें प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के संबंध में उक्त कथन अक्षरश: चरितार्थ होते हैं।

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म

सच्ची साधना, परम त्याग भावना, गहरी निष्ठा और लगन वाले इस निष्काम कर्मयोगी, उदात्त चेतना के युग पुरुष का जन्म ग्वालियर (मध्य प्रदेश) के एक सम्पन्न कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में 25 दिसम्बर (क्रिसमस : बृहस्पतिवार) 1924 ई. में हुआ। अटल जी के पिता का नाम श्री कृष्ण बिहारी वाजपेयी और माता का नाम कृष्णा देवी था।

इनके पिता संस्कृत के विद्वान होने के साथ अच्छे वक्ता, विचारक, चिन्तक और प्रतिष्ठित कवि थे। वे एक विद्यालय में अध्यापक थे। अटल जी के बाल सखा भानचन्द खानवलकर बताते हैं, ‘इनके पिता जी द्वारा लिखित कविता पंक्तियाँ हमारे स्कूली दिनों में सुबह प्रार्थना सभा में गाई जाती थीं।’

अटल जी के दादा का नाम श्री श्याम लाल वाजपेयी था जो संस्कृत के प्रकांड पंडित थे और हिन्दी के प्रतिष्ठित कवि भी।

वाजपेयी जी अपने चार भाइयों में सबसे छोटे हैं। उनकी तीन बहनें हैं। उनके सबसे बड़े भाई का नाम श्री अवध बिहारी वाजपेयी था। वे घरबारी इंसान थे। वाजपेयी जी की तरह उनमें भी अद्भुत प्रतिभा और प्रखर चेतना थी-लोक के प्रति। वे भी जन में, समाज में, सत्य और न्याय की प्रतिष्ठा करना चाहते थे।

जिस समय अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म हुआ, भारत में अँग्रेज़ों का शासन था। भारत की आजादी के लिए एक और महात्मा गांधी के नेतृत्व में सत्याग्रह आन्दोलन चल रहा था तो दूसरी ओर सुभाषचन्द्र बोस, भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद जैसे क्रान्तवीर अपना मजबूत संगठन बनाकर अँग्रेजी हुकूमत की क्रूर, दमनात्मक नीतियों का घोर विरोध कर रहे थे।

यह उग्र आन्दोलन दिन-प्रतिदिन अपना रुख तेज करता जा रहा था। वाजपेयी जी के पिताश्री यद्यपि किसी विचारधारा से प्रतिबद्ध नहीं थे, लेकिन राष्ट्रवादी चेतना के प्रबल कण उनके मानस को उद्वेलित, उत्तेजित कर रहे थे।

श्री अटल बिहारी वाजपेयी की शिक्षा

अटल जी जब 4-5 वर्ष के थे तो उनका नाम स्थानीय पाठशाला में लिखवा दिया गया। उन्होंने मिडिल गौरखी से किया। 1941 में सी. वी. हाई स्कूल (अब हरिदर्शन स्कूल) से हाई स्कूल की परीक्षा अच्छे नम्बरों से उत्तीर्ण कर उच्च शिक्षा के लिए विक्टोरिया कालिज (अब महारानी लक्ष्मी बाई कालिज) में प्रवेश लिया जहाँ से उन्होंने स्नातक की उपाधि प्राप्त की।

आरम्भ से अपनी उच्चकोटि की वक्तव्य-कला में प्रवीण होने के कारण डिबेटिंग-सेक्रेटरी (सचिव) हो गए। 1943, 44 में वे कालेज यूनियन के सचिव बने। उन दिनों स्कूलों, कालेजों में स्टूडेंट फेडरेशन का जोर था।

श्री अटल नाम से लोकप्रियता

जिस कारण उनका भी विशेष झुकाव यूनियन की ओर हुआ। अपने प्रशंसकों के बीच ‘श्री अटल’ नाम से लोकप्रिय वाजपेयी जी की शिक्षा ग्वालियर में हुई। हाँ, राजनीतिशास्त्र में एम. ए. (स्नातकोत्तर) करने के लिए ये डी. ए. वी. कालेज कानपुर चले आए। इसके बाद इन्होंने कानून की पढ़ाई शुरू की जिसे पूरा नहीं कर पाए।

एक आश्चर्यजनक सत्य यह है कि नौकरी के अवकाश के बाद कानून की शिक्षा के लिए इनके पिता जी ने भी अपने बेटे (अटल) के साथ वहीं प्रवेश लिया और पिता-पुत्र दोनों एक ही होस्टल के एक ही वर्ग में रहते थे।

देश की आजादी की माँग को लेकर संघर्षशील और अंग्रेजों की हुकूमत को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए देश के युवा उद्विग्न थे। 23 मार्च 1931 को पंजाब के तीन वीर सपूतों-सरदार भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी की सजा सुनाते हुए हमेशा-हमेशा के लिए मौत के आगोश में सुला दिया गया और वीर शिरोमणि चन्द्रशेखर आजाद अँग्रेजों से मुठभेड़ करते-करते अन्तिम गोली अपनी कनपटी में दागकर ‘आजाद’ हो गए। उन शहीदों के अमर आत्मोत्सर्ग ने देश के हर आयु वर्ग के रग-रग में राष्ट्र-प्रेम की ज्वाला धधका दी थी।

विक्टोरिया कालेज में अपने अध्ययन काल के दौरान ही अटल जी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के अग्रगामी संगठन स्टूडेंट फेडरेशन आफ इण्डिया (एस. एफ. आई.) में पूरी सक्रियता से जुड़ चुके थे।

वे आर्य कुमार सभा के सक्रिय सदस्य भी रहे। उन्होंने 1941 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का दामन भी थामा और 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन में जेल (भी) गए। किन्तु ये अपने को कांग्रेस से अधिक दिनों तक जोड़े नहीं रख सके। कांग्रेस की नरम नीतियाँ इन्हें रास नहीं आय।

1939 में वे पहली बार ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ’ की शाखा में गए थे, तभी से इनके मन-मस्तिष्क पर ऐसा गहरा प्रभाव पड़ा कि हमेशा-हमेशा के लिए जैसे उसके होकर रह गए। उन दिनों लक्ष्मी गंज में “संघ” की पहली शाखा लगा करती थी, जिसे ” नारायण विश्वनाथ तरें चलाया करते थे।

भाषण देना और कविता लिखना अटल जी ने बचपन से ही शुरू कर दिया था। उनके भाषण और कविता पाठ को सुनकर संघ की शाखा में नारायण तर्फे ने खूब सराहा।

अभी शाखा में आए अटल जी को करीब एक ही वर्ष बीता था कि इन्हें ग्रीष्मकालीन शिविर (ओ.टी.सी.) में भाग लेने के लिए बनारस भेज दिया गया। इसी दौरान इन्हें संघ का बौद्धिक दायित्व सौंपा गया जिसे इन्होंने भलीभांति निभाया। इनमें अपने प्रति अटूट आत्मविश्वास पैदा हुआ। जगह-जगह लोगों ने इनका स्वागत

किया। इनकी वाणी में जैसे जादुई शक्ति है। पं. जवाहरलाल नेहरू ने ठीक कहा था, ” वाजपेयी की जुबान में जादू है।”

अपने पिता की राष्ट्रवादी चेतना से पूर्णतः प्रभावित वाजपेयी जी के मन में राष्ट्र-प्रेम का प्रबल भाव पहले से ही भर चुका था। देश की दुर्दशा देखकर अब उनसे नहीं रहा गया। वे देश की आजादी की लड़ाई में समर्पित भाव से कूद पड़े।

अँग्रेज़ों की नौकरी (गुलामी) से अच्छा इन्होंने उन्मुक्त रहकर देश सेवा को समझा। क्योंकि सोने की जंजीर से जकड़ा – रहकर कोई सुख का अनुभव नहीं कर सकता। स्वतंत्रता अमूल्य रत्न से भी बढ़कर है। जो व्यक्ति / राष्ट्र अपनी स्वतंत्रता खो देता है, वह अपना सब कुछ खो देता है।…

अटल जी बचपन से ही बड़े स्वाभिमानी, निर्भीक और निष्पक्ष विचारों के हैं। वे जब आठवीं कक्षा में थे तभी उनमें चिन्तन की प्रखरता ऊर्जस्वित होने लगी थी, राष्ट्रीय भाव अंकुरित होने लगे थे।

वे बड़े ही सहृदय और सौम्य सहज स्वभाव के थे। सहज, सरल, सौम्य स्वभाव इन्हें अपनी पूजनीया माँ से विरासत में मिला था। वे जितने मृदुभाषी हैं उतने ही ओजस्वी भी थे। अटल जी अपने इरादों में अटल रहते थे।

अटल बिहारी वाजपेयी जी का व्यक्तित्व

अटल जी के विराट व्यक्तित्व की विशेषता यह थी कि वे अपने आप में स्वयं अनुशासित थे। सहजता-सरलता, सरसता तरलता के साथ सहनशीलता और कवित्व की रसमयता उनके व्यक्तित्व में रसी-बसी थी। वे किसी भी स्थिति में उत्तेजित नहीं होते थे। उनमें विनम्रता थी। स्वधर्म के प्रति अटूट आस्था थी।

किन्तु दूसरे धर्मों को भी वे समान रूप से सम्मान देते थे। बिना किसी भेदभाव के वे सभी के साथ समान बर्ताव व व्यवहार करते थे। हर जाति, वर्ण, वर्ग, धर्म, सम्प्रदाय के व्यक्ति के प्रति निजता-भरा लगाव था उनमें। वे छुआ-छूत को समाज के विकास में बाधक मानते थे। उनमें अपने-पराए का कोई भेद नहीं है । वे सम्पूर्ण जगत को अपना एक परिवार मानते थे और सबकी भलाई, सुख-समृद्धि की कामना करते थे।

अटल बिहारी वाजपेयी जी की देशभक्ति : जीवन का स्वर

यह जो क्रियाशील देशभक्ति का भाव अटल बिहारी वाजपेयी के बचपन में अंकुरित हुआ वह उनके जीवन में आज भी समान रूप से बना हुआ था। इन्हें अपनी पैतृक भूमि (जन्मभूमि), मातृभूमि के कण-कण के प्रति अटूट प्रेम है।

राजनैतिक दासता से मुक्ति के लिए इन्होंने अपना प्रखर-प्रबल स्वर व्यक्त किया। वे सामाजिक-आर्थिक विषमता और विपन्नता को मिटाकर सबमें समता समानता लाना चाहते थे । इसके लिए वे आज भी निरन्तर प्रयत्नशील रहते थे और जनपक्षीय नीतियाँ बनाकर उन्हें कार्यान्वित करना चाहते थे।

उनका देश-प्रेम विश्व-प्रेम और जन एकता का प्रतीक है। वे इसे मानवता के विकास में सहायक मानते हैं। उनका विचार और विश्वास है कि हम एकता से और मिल-जुल कर ही आगे बढ़ सकते हैं, भारत की प्रगति कर सकते हैं, क्योंकि एकता से शक्ति बहुत बढ़ जाती है। जातीय, धार्मिक वर्गीय विखराव व्यक्ति जीवन, समाज और देश के विकास में प्रमुख बाधक है।

ये आर्थिक विकास और सामाजिक समता समानता को प्रतिष्ठित करना चाहते हैं। नारी की सामाजिक स्थिति और उन्नति और उसे बराबरी का अधिकार देने के लिए तथा उसे मानसिक गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए वे आजादी के बाद से बराबर भारतीय संविधान में सही संशोधन करने के पक्ष में अपनी राय दूसरों से कुछ अलग रखते रहे हैं।

राजनीति के क्षेत्र में की गई वाजपेयी जी की सेवाओं एवं उपलब्धियों का यदि मूल्यांकन किया जाए तो कहना होगा कि उन्होंने अपने तन मन धन से राष्ट्र की सेवा की है-मनसा वाचा कर्मणा।

तमाम मानवीय विशिष्ट गुणों के मिक्चर से बने वाजपेयी जी के व्यक्तित्व में नैतिक चेतनाएँ अत्यधिक बलवती है और वह आनुवांशिक तत्त्वों के साथ पारिवेोशक तत्त्वों से विनिर्मित है। इसलिए वह अनवरत मानसिक संघर्षो के पश्चात घने बादलों, बर्फानी-तूफानी हवाओं और बवंडरों से घिरा रहकर भी शरद पूर्णिमा के चन्द्र की तरह सार्वजनिक जीवन के सम्पूर्ण विरोधों, संघर्षो को दूर करने के लिए तैयार है। अपने मजबूत इरादों में वे ‘लौह पुरुष’ जैसे ही है।

वाजपेयी जी के काव्य में समाज सुधार, सांस्कृतिक पुनरुत्थान आदर्शवाद प्रकृति-प्रेम और राष्ट्रीयता की प्रवृत्तियाँ दिखाई देता है लेकिन इनमें राष्ट्रीयता का स्वर सर्वाधित प्रबल है। राष्ट्रीयता के जितने भी स्थूल सपाट और सूक्ष्म संश्लिष्ट रूप हो सकते है ये सभी अटल जी की कविताओं में मिलते हैं। राष्ट्र की अस्मिता और अस्तिाच रक्षा के लिए किसी भी कुर्बानी को वे देने के लिए तैयार है एवं घोषणा करते थे-

किसने ऐसा दूध पिया जो रोके गति तूफानी, 
यह जीवन का ज्वार चली उफनाती प्रखर जवानी। युवक हार जाते हैं, लेकिन यौवन कभी न हारा,
 एक निमिष को बात नहीं है, चिर संघर्ष हमारा

अटल बिहारी वाजपेयी का राजनीतिक सफर

15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ। जब वाजपेयी जी युवा (25 वर्ष के थे तब अद्भुत प्रतिभा, वाणी और ओजस्विता से भरपूर थे। ग्वालियर और कानपुर उनके जन्म, शिक्षा और संस्कार के केन्द्र रहे तो लखनऊ उनके राजनैतिक जीवन की शुरुआत का कर्मस्थल ।

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित स्व. जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में गठित सरकार के प्रति मोहभंग लोगों में करीब छठे दशक में ही शुरू हो गया था, क्योंकि लालकिले के प्राचीर से उन्होंने अपना जो प्रथम भाषण दिया था-‘हर खेत को पानी और हर हाथ को काम’- यहाँ उसकी विफलता के कारणों पर प्रकाश डालना तो तूलानी होगा, और न मैं इसकी गहराई में जाकर अतीत की विवेचना करना ही यहाँ जरूरी समझता हूँ।

स्व. डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की थी। पं. दीनदयाल उपाध्याय और नाना जी देशमुख इससे पूर्व वाजपेयी जी के वक्तव्य को सुन चुके थे और उनके लेखों, विचारों से बहुत ही प्रभावित थे।

उन्होंने ही इनका परिचय डॉ. मुखर्जी से कराया। 1952 में लोकसभा का प्रथम चुनाव हुआ जिसमें जनसंघ को केवल तीन सीटों पर जीत मिली थी। 1953 में कश्मीर में धारा 370 के विरुद्ध आन्दोलन आरम्भ हो गया। डॉ. मुखर्जी ने कश्मीर सत्याग्रह का फैसला किया, अटल जी उनके साथ थे। डॉ. मुखर्जी गिरफ्तार हो गए। पर अटल जी को पकड़ा नहीं गया।

जेल में मुखर्जी जी की मृत्यु के पश्चात् अटल जी पूरी तरह सक्रियता से राजनीति में जुट गए। 1950 में इन्हें भारतीय जनसंघ का मंत्री बनाया गया और 1952 में उत्तर प्रदेश के बलरामपुर सीट से वे पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए। उसके बाद वे लगातार तीन बार संसद सदस्य बने ।

1962 में लोकसभा का चुनाव कुछ कूटनीतिज्ञों की घृणित घिनौनी चालों-साजिशों से वे नहीं जीत सके, लेकिन इसी वर्ष राज्यसभा के लिए चुन लिए गए। सन् 1968 से 1991 तक राज्यसभा के सदस्य रहे। अपने राजनैतिक कैरियर में अटल जी ने दो बार बलरामपुर, दो बार नई दिल्ली, एक बार ग्वालियर और तीन बार लखनऊ का प्रतिनिधित्व किया है।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय की निर्मम हत्या के पश्चात् अटल जी को पहली बार 1968 में भारतीय जनसंघ का अध्यक्ष बनाया गया। सन् 1973 तक उन्होंने निरन्तर इस पद को सुशोभित किया। अटल जी जब जिस पद पर रहे उन्होंने अपने मौलिक चिन्तन और अनूठी कार्यशैली से एक नई राजनीतिक व मानवीय सोच को जन्म दिया।

1977 में जनसंघ का विलय भारतीय जनता पार्टी में हो गया। उसी वर्ष लोकसभा का चुनाव हुआ जिसमें कांग्रेस की जबरदस्त पराजय हुई। जनता की जीत हुई, नई सरकार बनी- जनता पार्टी की सरकार।

-डूबता सूरज,

उगता सूरज ।

इस उगते सूरज की रोशनी में देश के सभी लोगों ने राहत और सुख-शान्ति की साँस ली। तत्कालीन जनता सरकार में (1977 से 79 तक) वाजपेयी जी विदेश मंत्री रहे। विदेश मंत्री के पद को गौरवान्वित करते हुए इन्होंने विश्व भर में भारत की गरिमा को और चार चांद लगा दिए, भारत की साख बढ़ी।

संयुक्त राष्ट्र संघ में जब पहली बार उन्होंने अपनी राष्ट्रभाषा हिन्दी में भाषण दिया तो चारों ओर हिन्दी की धूम मच गई। हिन्दी को भारत की सांस्कृतिक भाषा मानने वालों में वाजपेयी प्रमुख प्रधानमंत्री हैं। अपनी राष्ट्र भाषा की जो मिसाल वाजपेयी जी ने विदेशों में कायम की वह अनुकरणीय है, हालांकि हिन्दी को प्रतिष्ठित होने का अवसर तो शायद अभी आना है।

अपने निर्मल, सरस स्वभाव के अनुरूप इन्होंने अपने पड़ोसी राष्ट्रों से सदैव मधुर संबंध बनाने पर जोर दिया। इसी विचार से चीन की यात्रा कर सीमा विवाद सुलझाने का पुख्ता प्रयास किया। भारत की बनाई गई विदेश नीतियाँ हैं-

  1. कोई भी राष्ट्र किसी अन्य राष्ट्र पर आक्रमण न करे।

2 . कोई राष्ट्र किसी अन्य राष्ट्र की आन्तरिक समस्याओं में हस्तक्षेप न करे।

3. अपने से बड़े व छोटे राष्ट्रों के साथ समानता और पारस्परिक लाभ की नीति अपनाई जाए।

  1. सभी राष्ट्र एक दूसरे की राष्ट्रीय एकता और प्रभुसत्ता के प्रति आदर की दृष्टि रखें।
  2. और सभी राष्ट्र परस्पर व्यवहार में शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व की नीति अपनाएँ।

भारत की अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति का सबसे मार्मिक पक्ष पड़ोसी देशों के साथ संबंध हैं। भारत की सीमाएँ पाकिस्तान, चीन, रूस, नेपाल, भूटान और वर्मा से मिलती है। इसके अतिरिक्त ईरान, अफगानिस्तान, मलेशिया, इण्डोनेशिया और श्रीलंका इसके पड़ोसी देश हैं। इनमें से सभी के साथ भारत के प्रायः मधुर संबंध हैं-केवल चीन और पाकिस्तान से थोड़ी अनबन है, जिसे सुधारने में अटल जी का रोल अहम है। ये आज भी परस्पर मिल-बैठकर आपसी सहमति से विकट, विषम समस्याओं का समाधान चाहते हैं। उनका यह उदारतावादी दृष्टिकोण उनके महान मानवीय पक्ष को उजागर करता है।

श्री लाल बहादुर शास्त्री की तरह अटल बिहारी वाजपेयी भी भारत की अन्तर्राष्ट्रीय नीति में नए संदर्भ की शुरुआत करना चाहते थे।

अटल बिहारी वाजपायी – आस्थाओं के धनी

हिन्दू राष्ट्र के प्रबल समर्थक श्री अटल जी की दृष्टि में भारतीयता का संबंध सभी से रहा है। उनकी दृष्टि में हर भारतवासी का धर्म है कि वह भाषा, जाति, क्षेत्र और धर्म से ऊपर होकर राष्ट्र में पूर्ण निष्ठा रखे, यही असली भारतीयकरण है। बेशक उन्हें हिन्दुत्व पर अभिमान है।

उनकी दृष्टि में हिन्दुत्व का विरोध कभी इस्लाम से नहीं रहा। उन्होंने भारतीयता को मात्र एक नारा या प्रतिक्रिया नहीं माना बल्कि भारतीयता को भारत का दर्शन और एक ऐतिहासिक प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया है।

भाषाई प्रदेशीय और धार्मिक मानसिकता से ऊपर उठकर राष्ट्र में पूर्ण निष्ठा रखना ही भारतीयता है। डॉ. जी. प्र. जोशी / विचार में, ‘वस्तुतः अपने विराट अर्थ में भारतीयता अंतर्राष्ट्रीयता और सूक्ष्म अर्थ में अंतर्राष्ट्रीयता भारतीयता है।’- अटल जी की भी सोच की यही धुरी है।

अटल जी ने अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि को सदा बनाए रखने का प्रयास किया है। धार्मिक कट्टरता का हर रूप चाहे वह हिन्दू कट्टरतावाद हो या मुस्लिम उसका उन्होंने – जमकर विरोध किया है। भारतीय जीवन मूल्यों के आधार पर ही देश का नव निर्माण होना चाहिए। यह सौभाग्य है कि आज देश को देश की सनातन संस्कृति व संस्कारों में पूर्ण आस्था रखने वाले और इसकी नींव पर ही आधुनिक व समृद्ध भारत का निर्माण करने की स्पष्ट सोच रखने वाले अटल जी जैसे विरल व्यक्तित्व का महान नेतृत्व मिला है।

अटल बिहारी वाजपेयी की मृत्यु

भारतीय राजनीतिक नेता अटल बिहारी वाजपेयी का निधन 16 अगस्त 2018 को हुआ। उन्हें आद्यात्मिक अस्पताल, दिल्ली में किडनी और दिल की बीमारियों के कारण उनका शरीर बुरी तरह से प्रभावित था। उनके स्वास्थ्य की हानि के कारण वे इलाज के बावजूद जीवन की ओर आगे नहीं बढ़ सके और उनका निधन हो गया।

अटल बिहारी वाजपेयी के विचार

अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीतिक विचारधारा के प्रमुख नेता रहे हैं। उनके विचार निम्नलिखित थे

  1. राष्ट्रभक्तिः वाजपेयी ने भारतीय संस्कृति और गरिमा की महत्वपूर्णता को मान्यता दी और राष्ट्रभक्ति को महत्वपूर्ण माना ।
  2. समरसता और एकता: वाजपेयी ने सभी धर्मों, समुदायों और जातियों के बीच समरसता और एकता की महत्वपूर्णता को प्रमोट किया।
  3. स्वदेशी आंदोलन: उन्होंने स्वदेशी आंदोलन का समर्थन किया और भारतीय उद्यमिता को प्रोत्साहित किया।

4 आत्मनिर्भरता: उन्होंने आत्मनिर्भरता के माध्यम से देश की विकास और सुरक्षा को मजबूती देने की बात की।

  1. शिक्षा और विज्ञान: उन्होंने शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में निवेश की महत्वपूर्णता को स्थापित किया।
  2. विकास: विकास के प्रति उनकी प्राथमिकता रही, और उन्होंने गांवों और किसानों के विकास को उच्च प्राथमिकता दी।
  3. विश्व समरसता: उन्होंने विश्व में शांति, सहयोग और समरसता की प्रोत्साहना की।

वाजपेयी के विचार भारतीय राजनीति और समाज में महत्वपूर्ण योगदान के रूप में माने जाते हैं।

अटल बिहारी वाजपेयी का परिवार

अटल बिहारी वाजपेयी की पत्नी का नाम

कौशल्या वाजपेयी

अटल बिहारी वाजपेयी के पुत्र का नाम

प्रेम कुमार वाजपेयी

अटल बिहारी वाजपेयी की पुत्रीओं के नाम

नमिता भट्ट सुमित्रा कॉल सुषमा स्वराज

अटल बिहारी वाजपेयी जी अपने परिवार के साथ एक मानवीय और सामाजिक बंधन में जुड़े रहे उनका परिवार भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है।

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