सच्चे मन से पुकारो
मीरा जी जब भगवान कृष्ण के लिए गाती थी तो भगवान बड़े ध्यान से सुनते थे। सूरदास जी जब पद गाते थे भी भगवान सुनते थे। और कहां तक कहूं कबीर जी तो यहां तक कह दिया-चींटी के पग नूपुर बाजे वह भी साहब सुनता है।
एक चींटी कितनी छोटी होती है, अगर उसके पैरों में भी घुंघरू बांध दें तो उसकी आवाज को भी भगवान सुनते हैं। यदि आपको लगता है कि आपकी पुकार भगवान नहीं सुन रहे तो ये आपका वहम है या फिर आपने भगवान के स्वभाव को नहीं जाना।। कभी प्रेम से उनको पुकारो तो सही, कभी उनकी याद में आंसू गिराओ तो सही।
मैं तो यहां तक कह सकता हूं कि केवल भगवान ही हैं जो आपकी बात को सुनता है। एक छोटी सी कथा संत बताते हैं- एक भगवान जी के भक्त हुए थे, उन्होंने 20 साल तक लगात भगवद् गीता का पाठ किया।
अंत में भगवान ने परीक्षा लेते हुए कहा- अरे भक्त! तू सोचता है। गीता के पाठ से खुश हूं, तो ये तेरा वहम है। मैं तेरे पाठ से बिल्कुल भी प्रसन्न नहीं हुआ। जैसे ही भक्त ने सुना तो वो नाचने लगा, और झूमने लगा। भगवान अरे। मैंने कहा कि मैं तेरे पाठ करने से खुश नही हूँ और तू नाच रहा है।
वो भक्त बोला- भगवान, आप खुश हो या नहीं हों, ये बात मैं नहीं जानता लेकिन मैं तो इसलिए खुश हूं कि आपने मेरा पाठ कम से कम सुना तो सही, इसलिए मैं नाच रहा हूं। ये होता है भाव…..
थोड़ा सोचिये जब द्रौपदी ने भगवान कृष्ण को पुकारा तो क्या भगवान ने नहीं सुना?
भगवान ने सुना भी और लाज भी बचाई। जब गजेन्द्र हाथी ने ग्राह से बचने के लिए भगवान को पुकारा तो क्या भगवान ने नहीं सुना?
बिल्कुल सुना और भगवान अपना भोजन छोड़कर आए।
कबीर दास जी, तुलसी दास जी, सूरदास जी, हरिदास जी, मीरा बाई जी, सेठजी, भाई नोद्दार जी, राधा बाबा जी, श्री रामसख दास जी और न जाने
कितने संत हुए जो भगवान से बात करते थे और भगवान भी उनकी सुनते थे। इसलिए जब भी भगवान को याद करो उनका नाम जप करो तो ये मत सोचना कि भगवान आपकी पुकार सुनते होंगे या नहीं?
कोई संदेह मत करना, बस हृदय से उनको पुकारना, तुम्हें खुद लगेगा कि हां, भगवान आपकी पुकार को सुन रहे हैं।