क्या आप जानते हैं आत्मा की अवस्थाएँ कौन कौन सी होती है ?

हमारी आत्मा की अवस्थाएँ

क्या आप जानते हैं –

कि वेदादि ग्रंथों में हमारी आत्मा की पाँच अवस्थाएँ वर्णित हैं— (1) जागृत, (2) स्वप्न, (3) सुषुप्ति, (4) तुरीय, (5) तुरीयातीत, इसके आगे सर्वोपरि ‘परमहंस अथवा ब्राह्मी पद है।

कि आत्मा अपनी छटी ब्राह्मी अवस्था में शुद्ध चेतन रूप होकर पूर्ण परब्रह्म में अद्वैत हो जाती है। यही जीवन्मुक्ति की सहज अवस्था है ।

कि ब्राह्मी अवस्था से पूर्व अन्य पाँच अवस्थाओं शुद्ध चेतन आत्मा ऊपर सूक्ष्म या अति सूक्ष्म आवरण विद्यमान रहते हैं ।

कि सभी आवरणों को पार करके ही आत्मा जीवन्मुक्ति की अवस्था को पाकर अपने अंशी परब्रह्म के साथ मिल कर एकरूप हो सकती है।

कि जागृत, स्वप्न और सुषुप्ति ये तीन अवस्थाएँ तीन स्थूल आवरण हैं। तुरीय और तुरीयातीत ये दो अवस्थाएँ समाहित अवस्था में अति सूक्ष्म और गहन सूक्ष्म आनन्दमय अवस्थाएँ हैं ।

कि श्री आरती पूजा, सत्संग और सेवा ये तीन साधन निरंतर करते रहने से मन से मलिनता के आवरण दूर होने लगते हैं और सुमिरण व ध्यान के ये दो साधन करते रहने पर अन्तःकरण के सूक्ष्म आवरण दूर होते हैं। अंत में शुद्ध चेतन आत्मा अपनी ब्राह्मी अवस्था में स्थित हो जाती है।

कि जब हम अपने पूरे होश में होकर क्रियाशील होते हैं तो इसे जागृत अवस्था कहा जाता है । पाँच कर्मेन्द्रिय और पाँच ज्ञानेन्द्रिय द्वारा पूरे होश में रहकर क्रिया करने से हम अपने वर्तमान में स्थित होने लगते हैं। मानव मन का पूरे होश सहित वर्तमान में स्थित होना मन की सहज और स्वस्थ अवस्था है।

कि मानव मन नींद की प्रारंभिक अवस्था में अपने विचारों और अनुभवों के अनुसार जब कुछ स्वप्न देखता है तो इसे आत्मा की दूसरी ‘स्वप्न अवस्था ‘ कहा गया है। सत्संग के द्वारा अपने विचार पवित्र करने पर ‘स्वप्न अवस्था’ भी शुद्ध होने लगती है।

कि स्वस्थ शरीर से जब स्वस्थ मन गहरी नींद में खो जाता है तो इसे आत्मा की तीसरी ‘सुषुप्ति अवस्था’ कहा जाता है इसमें स्थित होकर मनुष्य पूर्ण विश्राम और किंचित् आनन्द की अनुभूति करता है।

कि आत्मा की चौथी तुरीय अवस्था सुमिरण और ध्यान की साधना निरंतर करते रहने से प्राप्त होती है । यह तुरीय अवस्था ध्यान की निर्विचार स्थिति में अनुभव की जाती है जो कि परम शान्ति और परम आनन्द प्रदान करने वाली अवस्था है।

कि आत्मा की पाँचवीं तुरीयातीत अवस्था आनन्द और विश्रान्ति का गहन अनुभव है। इस अवस्था का शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। इस अवस्था में भक्त और भगवंत का नाता विद्यमान रहता है। भक्त या साधक भगवंत के अलौकिक स्वरूप का पूर्ण अनुभव करता है । इस अवस्था का आनन्द भी वर्णनातीत है।

कि आत्मा की अंतिम अवस्था ‘ब्राह्मी अवस्था ‘ कही गई है, जो शुद्ध चेतन आत्मा की शुद्ध चेतन ब्रह्म के साथ अद्वैत स्थिति है जो सभी साधनाओं का जीवन्मुक्ति रूप फल है।

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