आजादी की खुशी
राजू को पढ़ना, स्कूल जाना, खेलना, नई- नई चीजें खाना सब पसंद है, पर सबसे ज्यादा पसंद है-मिट्ठू से बोलना उसे चुरा पानी देना उसे देख-देखकर खुश होना।
मिट्टू-जी हां, उसके पिंजरे में बंद एक सुंदर-सा तोता। स्कूल से आते ही उसे संभालता, वक्त टाटा कहना नहीं भूलता।
एक दिन गजब हो गया। किसी कारण से पिजरे का दरवाजा बंद नहीं रहा और मिट्टू मियां उड़ गए। राजू स्कूल से आया। जब उसे यह पता चला कि मिट्टू अब घर में नहीं है तो उसने घर सिर पर उठा लिया यानी शोर करना, रोना-धोना शुरू कर दिया। घर के लोग उसे मनाने में लग गए। वह किसी तरह मान ही नहीं रहा था। आखिर पापा ने कहा, “अगले चौबीस घंटे के भीतर तुम्हारे पिंजरे में एक मिट्टू होगा।
कल ऑफिस जाते समय में वह खाली पिंजरा ले
जाऊंगा। वापस आऊंगा तब इसमें एक तोता होगा।
अब मान जाओ।”
यह सुन कर कुछ देर बाद उसकी नाराजगी का पारा नीचे उतर गया।
अगले दिन ऐसा ही हुआ। शाम को जब पापा आए तो उसमें एक तोता था। देखने में बिल्कुल वैसा हो, जैसा राजू का मिट्टू था इसलिए इस तोते को भी मिट्टू नाम मिल गया। दो-तीन दिन में राजू और मिट्टू हिल-मिल गए।
चौथे दिन फिर गजब हो गया। उस दिन 15 अगस्त था। राजू स्कूल में उत्सव मनाकर जल्दी घर आ गया। मिट्टू के साथ खेलने लगा। उसे खाने के लिए ताजा हरी मिर्च दी। पानी की उसकी कटोरी में आरओ का पानी डाला और उसके साथ बातें करने लगा। राजू के सामने ही झटके के साथ पिंजरे का दरवाजा खुल गया।
राजू अभी हैरान हो हो रहा था कि मिट्ठू बाहर आया और घर में इधर-उधर उड़ने लगा। तो यह बात है। दरवाजे में कोई गड़बड़ है। यही अपने आप खुल जाता है इसलिए
शायद पहले वाला मिठू गया था।
यह पिंजरा लेकर मिट्टू को पकड़ने इधर-उधर दौड़ने लगा पर कैसे पकड़े, राजू तो दौड़ रहा था, मिट्टू उड़ रहा था। उड़ता-उड़ता मिट्टू घर के ऊपर चला गया तो राजू भी सोबियां चढ़ कर छत पर पहुंच गया।
“पिंजरा दिखा-दिखाकर, पिजरे में हरी मिर्च दिखाकर मिट्ट को बुला रहा था। मिट्ठू तो अपनी आजादी का पर्व मनाने में जुटा था। कभी इधर उड़ता तो कभी उधर कभी किसी मुंडेर पर बैठा रहता तो कभी घर के पास के पेड़ पर वह नीचे आने का नाम नहीं ले रहा था।
कुछ देर बाद मिट्ट उड़ता- उड़ता आया, पर दादाजी द्वारा पक्षियों के लिए, रखे गए पानी के बर्तन से पानी पीने लगा। यह देखकर राजू बोला, “बहुत खूब मेरा दिया शुद्ध पानी नहीं पिया, यह सोधे नल से आया पानी, पक्षियों द्वारा जूठा किया पानी पीकर खुश हो रहा है। लगता है अब यहां-वहां बिखरे अनाज के दाने भी खाएगा।” ऊपर वाली छत पर दादाजी कभी- कभी पक्षियों के लिए दाने भी बिखेरते थे।
मिट्टू तो एक बार भी नीचे नहीं आया पर राजू का गुस्सा नीचे आने लगा। वह समझ गया कि मनुष्य हो या पक्षी, आजादी से बड़ा सुख कुछ नहीं होता। पिजरे से बाहर आकर मिट्टू ने जो आजाद उड़ने की इधर- उधर उड़कर खुशी दिखाई, वह बैठे-बिठाए मिलने वाले चुग्गा-पानी से बहुत बड़ी खुशी लगी।
राजू ने अपने हाथ में पकड़े पिंजरे को देखा और छत के एक कोने में जमा कबाड़ में फेंक दिया। मिट्टू की तरफ देखकर उसने वैसे ही हाथ हिलाया, जैसे स्कूल में अन्य दोस्तों को ‘हैप्पी इंडिपेंडेंस डे’ कहते हुए हाथ हिलाया था और खुशी-खुशी छत से नीचे उतरने लगा।