है मानुष का धर्म यही प्रारब्ध की चिन्ता को छोड़े – ssdn bhajan

भजन – है मानुष का धर्म यही प्रारब्ध की चिन्ता को छोड़े

तर्ज – जब जब होता नाश धर्म का

टेक- है मानुष का धर्म यही प्रारब्ध की चिन्ता को छोड़े

प्रभु भक्ति में मन को लगाकर मार्ग अपना सुगम करे

1. परम पिता परमेश्वर ने जबसे इन्सान को जन्म दिया प्रारब्ध का भोग है उसका पहले से तैयार किया परन्तु यह आश्चर्य कि प्राणी को इसका आभास नही उसके चित को पलभर भी आता प्रभु पर विश्वास नही होता चिन्ता का शिकार मन में अनिश्चय नही घरे प्रभु भक्ति में मन को..

2. कोई कमी नही रहती है कुदरत के भण्डारे में इस पर भी इन्सान अगर यह सोचे अपने बारे में बुद्धि और चतुराई कारण मेरी रोजी चलती है। इस प्रकार से सोचे प्राणी यह तो सरासर गल्ती है करे भजन अभ्यास जीव और प्रारब्ध से नही डरे प्रभु भक्ति में मन को……

3. बुद्धि और चतुराई से ही लोग अगर रोजी पाते फिर भोले अन्जान प्राणी बस भूखे ही रह जाते सीधे सादे लोग यहा ना रोजी इस ढंग से पाते है बड़े – बड़े होशियार लोग आश्चर्य चक्ति रह जाते है मिलता है प्रारब्ध भोग नर निश्चय और विश्वास था प्रभु भक्ति में मन को लगाकर..

4. प्रभु तो सब जन पर अपना गैबी भण्डार लुटाते है दुष्ट और नास्तिक तक भी प्रभु से रोजी को पाते हैं ऐसे लोगो पर भी प्रभु जब नजर मेहर कर सकते है फिर वो भला प्रेमी को क्योंकर भूखा रख सकते है लाजिम है इन्सान बन्दगी मालिक की दिन रात करे प्रभु भक्ति में मन को लगाकर..

5. परमेश्वर का भजन करे और फिर भी भूखा रह जाएं बात है अनहोनी बुद्धि कैसे विश्वास यह कर पाये प्रभु भक्ति में प्रेमी जो दिन रात मग्न हो जाते है रोजी लिए फरिश्ते उनके पीछे पीछे आते है यह है कौल फकीरों के प्रेमी जन इस पर ध्यान धरे । प्रभु भक्ति में मन को लगाकर…

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