अठसठ तीरथ गुरु चरण

अठसठ तीरथ गुरु चरण सन्तों के चरण-शरण की कितनी महत्ता है। इस पर सन्त सहजोबाई जी कथन करती हैं- ॥ दोहा ॥ अठसठ तीरथ गुरु चरन, परबी होत अखण्ड | सहजो ऐसा धाम नहिं, सकल अण्ड ब्रह्मण्ड | अर्थात् सृष्टि में जितने भी तीर्थ पाये जाते हैं,वे सब वस्तुतः सन्त-महापुरुषों के चरणों में ही स्थित … Read more

गुरु क्या है?जब खुशकिस्मती से पूरे गुरु मिल जायेंगे फिर सब..

गुरु क्या है? इस बात के समझने में अक्सर आदमियों की समझ का रुख़ गलती की तरफ़ रहता है। वे गुरु को साधारण मनुष्यों की तरह ख्याल करते हैं। वे समझते जैसे हम इन्सान हैं ऐसे ही गुरु भी एक इन्सान है। मगर ऐसा समझना सख्त गलती में दाखिल है। जो लोग गुरु के मुतल्लिक … Read more

भगवान बुद्ध के आशीर्वाद का फल

बुद्ध के आशीर्वाद का फल गौतम बुद्ध मगध राज्य के एक गांव में ठहरे हुए थे। वहीं सुदास नाम का एक मोची रहता था जिसकी झोपड़ी के पीछे एक पोखर था। एक सुबह सुदास अपने पोखर से पानी लेने गया तो देखा कि वहां कमल का एक बेहद खूबसूरत फूल बेमौसम खिला हुआ था। उसने … Read more

संत दादू दयाल की सहन‍शीलता की कथा

संत दादू दयाल की सहन‍शीलता एक दरोगा संत दादू की ईश्वर भक्ति और सिद्धि के बारे सुनकर बहुत प्रभावित था। उन्हें गुरु मानने की इच्छा से यह उनकी खोज में निकल पड़ा। लगभग आधा जंगल पार करने के बाद दरोगा को केवल धोती पहने एक साधारण-सा व्यक्ति दिखाई दिया। यह उसके पास जाकर बोला, ‘क्यों … Read more

धार्मिक मान्यताओं का पर्व होली

मान्यताओं का पर्व होली प्रकृति सदा एक रंग में अपनी खूबसूरती को कैद कर नहीं रखती। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। विभिन्न मौसम उसे अनेक रंगों में रंग देते हैं। भारतवर्ष में कभी लोहड़ी आती है तो कभी रोशनी का पर्व दीपावली तो कभी बसतो रंग की बसंत पंचमी आती है। रंगो, उल्लास, उमंग, संगीत … Read more

धनुर्धर अर्जुन कौन था ?

धनुर्धर अर्जुन अर्जुन कुंती का पुत्र था। इसके पिता का नाम पाण्डु था, लेकिन वास्तविक पिता तो इसका इंद्र था, कुंती माता को वरदान से इंद्र से अर्जुन, धर्म से युधिष्ठिर, पवन से भीम और माद्री को अश्विनी कुमारों से नकुल और सहदेव पुत्र रूप में प्राप्त हुए| अर्जुन इंद्र के समान ही प्रतापी और … Read more

द्रुपद से द्रोण का प्रतिशोध

द्रुपद से द्रोण जब पाण्डव तथा कौरव राजकुमारों की शिक्षा पूर्ण हो गई तो उन्होंने द्रोणाचार्य को गुरु दक्षिणा देना चाहा। द्रोणाचार्य को द्रुपद के द्वारा किये गये अपने अपमान का स्मरण हो आया और उन्होंने राजकुमारों से कहा, “राजकुमारों! यदि तुम गुरुदक्षिणा देना ही चाहते हो तो पाञ्चाल नरेश द्रुपद को बन्दी बना कर … Read more

लौहजंघ की कथा

लौहजंघ इस पृथ्वी पर भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि मथुरा नगरी है। वहां रूपणिका नाम की एक वेश्या रहती थी। उसकी मां मकरदंष्ट्रा बड़ी ही कुरूप और कुबड़ी थी। वह कुटनी का कार्य भी करती थी। रूपणिका के पास आने वाले युवक उसकी मां को देखकर बड़े दुखी होते थे।एक बार रूपणिका पूजा करने मंदिर में … Read more

भगवान विष्णु का स्वप्न

भगवान विष्णु एक बार भगवान नारायण वैकुण्ठलोक में सोये हुए थे। उन्होंने स्वप्न में देखा कि करोड़ों चन्द्रमाओं की कांति वाले, त्रिशूल डमरू धारी, स्वर्णा भरण भूषित, सुरेन्द्र- वन्दित,सिद्धि सेवित त्रिलोचन भगवान शिव प्रेम और आनन्दातिरेक से उन्मत्त होकर उनके सामने नृत्य कर रहे हैं। उन्हें देखकर भगवान विष्णु हर्ष से गद्गद् हो उठे और … Read more

भीष्म प्रतिज्ञा

भीष्म एक बार हस्तिनापुर के महाराज प्रतीप गंगा के किनारे तपस्या कर रहे थे। उनके रूप-सौन्दर्य से मोहित हो कर देवी गंगा उनकी दाहिनी जाँघ पर आकर बैठ गईं। महाराज यह देख कर आश्चर्य में पड़ गये तब गंगा ने कहा, “हे राजन्! मैं जह्नु ऋषि की पुत्री गंगा हूँ* और आपसे विवाह करने की … Read more

परशुराम

परशुराम मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जिनका सादर नमन करते हों, उन शस्त्रधारी और शास्त्रज्ञ भगवान परशुराम की महिमा का वर्णन शब्दों की सीमा में संभव नहीं। वे योग, वेद और नीति में निष्णात थे, तंत्रकर्म तथा ब्रह्मास्त्र समेत विभिन्न दिव्यास्त्रों के संचालन में भी पारंगत थे, यानी जीवन और अध्यात्म की हर विधा के महारथी ।विष्णु … Read more