ॐ जय श्री जगतारण, स्वामी जय श्री जगतारण । शुभ मग के उपदेशक, यम त्रास निवारण ॥ ॐ जय ०
(1)
परमारथ अवतार जगत में,गुरु जी ने है लीन्हा;
मेरे स्वामी जी ने है लीन्हा ।हम जैसे भागियन को, गृह दर्शन दीन्हा ॥ ॐ जय ०
(2)
कलि कुटिल जीव निस्तारण को, प्रभु सन्त रूप धर के; स्वामी सन्त रूप धर के । आतम को दर्शावत, मल धोये हैं मन के ।। ॐ जय ०
(3)
आप पाप त्रय – ताप गये,जो गुरु शरणी आये;
मेरे स्वामी शरणी आये । गुरु जी से लाल अमोलक, तिस जन ने पाये ॥ ॐ जय ०
(4)
सहज-समाधि, अनाहत – ध्वनि जप अजपा बतलाये; स्वामी अजपा बतलाये ।प्राणायाम की लहरें, मेरे मन भाये ॥ ॐ जय ०
(5)
हरि किरपा कर जन्म दियो,जग मात पिता द्वारे;
स्वामी मात पिता द्वारे । उनसे अधिक गुरु जी हैं, भवनिधि से तारें ॥ ॐ जय
(6)
तले की वस्तु गगन ठहरावे, गुरु के शब्द शर से ;
सतगुरु के शब्द शर से । सो सूरा सो पूरा, बल में वह बरते ।। ॐ जय ०
(7)
तत् — स्नेह, प्रेम की बाती, योग अगन जिन के; स्वामी योग अगन जिन के । आरती लायक सो जन, जो हैं शुद्ध मन के ॥ ॐ जय ०
(8)
श्री परमहंस सतगुरु जी की आरती, अष्टपदी रच के; ‘साहिबचन्द’ ने गाई, पद रज सज कर के ॥ ॐ जय ०
सरलार्थ
ॐ – हे सर्वरक्षक !
टेक-ऐ संसार को भव से तराने वाले इष्टदेव मालिक! आपकी जय हो। आप सत्य-पथ अर्थात् मोक्ष मार्ग का उपदेश करनेवाले हैं और महाकाल के भय से छुड़ानेवाले हैं।
(1)
आपने परोपकार के लिए ही इस संसार में अवतार धारण किया है। हम जैसे भाग्यशाली (जो जीव सद्गुरु की चरण-शरण को प्राप्त कर चुके हैं) जीवों को घर बैठे ही श्री दर्शन देकर कृतार्थ किया है अर्थात् हम जीवों को भूलोक पर दर्शन देकर हमें भाग्यशाली बनाया हैं।
(2)
कलियुग के कठोर (छल-कपट) स्वभाव वाले जीवों का उद्धार करने के लिए आप सन्त स्वरूप में आए हैं। मन की मलिनताओं को दूर कर आत्मा का साक्षात्कार (निज स्वरूप का दर्शन) कराते हैं।
(3)
जो जीव सद्गुरु की चरण-शरण ग्रहण कर लेता है वह आधिदैविक, आधिभौतिक, आध्यात्मिक तीनों तापों से मुक्त हो जाता है। वह सेवक सद्गुरुदेव जी से अमूल्य नाम-शब्द रूपी लाल को प्राप्त कर लेता है।
(4)
सहज समाधि, अनाहत ध्वनि और अजपा जाप, यह तीनों युक्तियाँ (सुरत-शब्द-योग) सद्गुरुदेव जी पूर्ण रूप से बतलाते हैं जिससे कि आन्तरिक ज्योति के दर्शन होते हैं। इसके साथ साथ प्राणायाम अर्थात् श्वास ऊपर ले जाना पुनः नीचे लाना की विधि सिखाते हैं।
जब यह प्राणायाम उचित रूप से आरम्भ हो जाता है तो मन आनन्द की लहरों में झूम उठता है। यही लहरें आपके दासों को बहुत प्रिय लगती हैं।
(5)
परमेश्वर ने कृपा करके हमें माता-पिता के घर में जन्म दिया था परन्तु आप तो उनसे भी अधिक उपकारी हमें मिल गये जो जन्म-मरण से जीव को छुड़ा देते हैं।
(6)
जो साधक पिण्ड देश में रमी हुई सुरति को गुरुदेव जी के दिये हुए शब्द रूपी बाण के द्वारा ब्रह्माण्ड देश में स्थिर कर लेता है वह शूरवीर है, पूर्ण है और शक्तिशाली बनकर सब कार्य करता है।
(7)
तत्-स्नेह = ज्ञान रूपी तेल, प्रेम रूपी बत्ती और सुरत-शब्द-योग की अग्नि के द्वारा जिन्होंने अपने अन्दर दीपक जला लिया है और जिनका मन निर्मल हो गया है वे ही अपने सद्गुरुदेव जी की आन्तरिक आरती उतारने के योग्य हैं।
(8) श्री परमहंस सद्गुरुदेव जी की यह आठ पदों की आरती दासानुदास साहिबचन्द ने उनकी चरण-धूलि को मस्तक पर चढ़ा करके गाई है।