Dhianpur Baba Lal dyal ji
श्री ध्यानपुर में ही दर्शनार्थियों को एक भव्य, विशाल द्वार के दर्शन होते हैं। यह सुदर्शनी द्वार के नाम से जाना जाता है। इस सुन्दर द्वार का निर्माण नदी के बारहवें महन्त श्री सुदर्शन दास जी ने सन् 1900 में करवाया था। इस द्वार पर सुदर्शन दास जी, बाबा लाल जी तथा हरिनाम दास जी के सुन्दर चित्र बने हैं।
इसके बाद दर्शनार्थी ‘हरनामदास द्वार पर पहुँचते हैं। इसका निर्माण गद्दी के तेरहवें महन्त श्री द्वारिका दास जी ने सन् 1954 में करवाया था। द्वार पर महन्त श्री हरनाम दास जी का चित्र सुशोभित है। इस द्वार को पार कर लगभग आधी चढ़ाई चढ़ने के पश्चात् दायीं ओर दरबार की गौशाला है, जहाँ स्वस्थ गायों के साथ-साथ बूढ़ी, बीमार गायों की भी देखभाल की जाती है।
गौ-शाला को पार करते ही दर्शनार्थी तीस सीढियाँ चढकर भवन के तीसरे और मुख्य द्वार पर पहुँचते हैं। इस द्वार पर श्री ध्यानदास जी की सुन्दर मूर्ति सुशोभित है।
मुख्य द्वार को पार करते ही सामने ही दायीं तरफ लगंरखाना है जहाँ प्रतिदिन दोनो समय लंगर प्रसाद अत्यन्त प्रेम से बाँटा जाता है। लंगरखाना पार करते ही बाबा लाल जी का भव्य मंदिर है, जहाँ बाबा लाल जी, महन्त द्वारका दास जी, तथा महन्त नारायण दास जी की अत्यंत जीवंत और सुन्दर मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं।
मंदिर के सामने स्थित प्रांगण के दायीं ओर शीशमहल पर जाने के लिये सदियाँ बनी है। किसी समय यह शीशमहल अत्यन्त सुन्दर था। इसमें
अनेक सुन्दर चित्र बने थे, किन्तु अत्यन्त प्राचीन होने के कारण तथा प्राचीन भवन के पुनर्निर्माण के कारण इसके अनेक सुन्दर चित्र खण्डित हो गए थे।
चौदहवी गद्दी के महन्त श्री नारायण दास जी के प्रयत्नों द्वारा शीशमहल की छत गितियों तथा चित्रों का पुनरुत्थान हुआ और अब पुनः यह सुन्दर शीशमहल श्री ध्यानपुर की शोभा बढ़ा रहा है।
दरवार श्री ध्यानपुर के भवन की दीवारों, बाहरी दीवान खाने, चौबारे आदि पर अत्यन्त चित्ताकर्षक काँगडा शैली की चित्रकारी की गई है। इन चित्रों में श्री बावा लाल जी व अन्य संत महात्माओं की ज्ञान चर्चा, महन्त हरिनामदास जी तक की ग्यारह गद्दियों के आचार्यों के चित्र, स्वर्ग-नरक के काल्पनिक चित्र, अर्द्धनारीश्वर चित्र आदि प्रमुख है।
मुख्य द्वार को पार करते ही बाई ओर साधु सन्यासियों के ठहरने का स्थान है और दायीं ओर समाधि स्थल में प्रवेश करने के लिये एक अत्यन्त सुन्दर द्वार निर्मित है। इस द्वार पर बनी हाथियों की सुन्दर मूर्तियों देखने बालों का मन हर लेती है। इस द्वार का निर्माण कार्य तेरहवीं गद्दी के महन्त श्री द्वारका दास जी की देखरेख में संपन्न हुआ था।
द्वार पार करते ही एक पक्के विशाल बरामदे के बीचों-बीच बाबा लाल जी की समाधि है। समाधि स्थल का निर्माण कार्य शाहजहाँ के बेटे दारा शिकोह ने आरंभ करवाया था।
इसके प्रमाण स्वरूप समाधि कक्ष के चारों कोनों में मुगलिया शैली के बने चार गुबंद हैं।
दारा शिकोह समाधि स्थल पर एक बहुत ऊँची मीनार बनवाना चाहता था, परंतु औरंगजेब द्वारा असमय ही दारा शिकोह का वध हो जाने के कारण दारा के मन की यह अभिलाषा पूर्ण न हो सकी। बाद में महन्त श्री द्वारका दास जी ने समाधि स्थल पर अत्यन्त सुन्दर चार मंजिला मीनार का निर्माण करवाया।
समाधि स्थल के समीप ही पीपल का वह अत्यन्त पावन और प्राचीन पेज है जिसके नीचे बैठकर कभी बाबा लाल जी ने तपस्या की थी।
पवित्र ध्यानपुर के प्रांगण में लहलहाता यह पावन वृक्ष आज भी यहाँ आने वाले दर्शनार्थियों के दुख हर उन्हें सुख की ठंडी छांव दे रहा है।
समाधि स्थल पर प्रतिदिन प्रातः साँय आरती होती है। आरती का दृश्य अत्यन्त भव्य तथा चित्ताकर्षक होता है। आसपास रहने वाले भक्त जन तो प्रतिदिन प्रातः समाधि के दर्शन कर उस पर माथा नवाकर और गुरु का आशीर्वाद पाकर ही दिन की शुरुआत करते हैं।
ध्यानपुर के आस-पास स्थित गाँवों में बेटियों की डोली भेजने और बहुओं की डोली घर में लाने से पूर्व समाधि पर शीश नवाया जाता है। इसी प्रकार बाबा लाल जी के आशीर्वाद से पैदा हुए शिशुओं को भी समाधि पर लाकर चोला पहनाया जाता है।
बाबा लाल जी की समाधि के बायीं ओर राम मन्दिर है जिसका निर्माण महन्त श्री शीतल दास जी ने करवाया था। इस मन्दिर में भगवान श्री राम, श्री कृष्ण तथा अन्य देवी-देवताओं की सुन्दर मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं। यहीं इसी प्रांगण में एक संग्रहालय भी है जहाँ बाबा लाल जी की पैबंद लगी गोदड़ी’ और ‘खडाउ’ एंव महन्त श्री हरनामदास जी का दुशाला’ रखा है।
समाधि के दायीं ओर पुस्तकालय तथा सत्संग भवन हैं। यहीं भक्तजन प्रातः सायं सत्संग करते हैं तथा गद्दी के वर्तमान महन्त श्री राम सुन्दर दास जी से आशीर्वाद लेते हैं।
समाधि से बायीं ओर आगे जाने पर यात्रियों के ठहरने के लिये कमरे, विस्तर भंडार, चिकित्सालय, आदि हैं। यहीं से सामने संस्कृत विद्यालय का प्रवेश द्वार है। इस विद्यालय में पूरे भारतवर्ष से आए छात्रों को शास्त्री (बी. ए. पाँच वर्ष का पाठ्यक्रम) की शिक्षा निःशुल्क दी जाती है। आज तक यहाँ से अनेक छात्र अपनी शिक्षा पूर्ण कर विद्यालयों, विश्वविद्यालयों आदि में शिक्षण कर स्वावलंबी जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
लाल बाग
बाबा लाल जी की समाधि के बिल्कुल पीछे एक उद्यान है जो लालबाग के नाम से प्रसिद्ध है। इसी बाग में पंक्तिबद्ध पाँच कक्ष है, जिसमें गंदी पर विराजमान ब्रह्मलीन महन्तों की सुन्दर समाधियों बनी है।
पवित्र बावली
ध्यानपुर लालद्वारा के द्वितीय प्रवेश द्वार के समीप स्थित यह बावली चारों ओर से दीवारों से घिरी है। बावली में प्रवेश करने के लिए दो द्वार बने हैं। जल की सतह पर पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ उतरनी पड़ती है। सीढ़ियों उतरते ही एक और कक्ष आता है, जहाँ से बावली के दर्शन होते हैं।
इसी बावली पर बाबा लाल जी की अन्य संतों-मियाँ मीर, हजरत शाह बलावल, मुल्ला शाह बदख्शानी, समद, साईं दास, सिद्धनारायण जी के साथ गोष्ठी हुई थी। कई दिनों तक संतों के चरण इस धरती को पवित्र करते रहे थे। बावली के एक कक्ष की दीवार पर आज भी संतों की गोष्ठी का एक सुन्दर चित्र अंकित है।
इस पवित्र बावली में सतगुरु श्री बाबा लाल जी के अनुयायी व श्रद्धालु शुक्ल पक्ष के शनिवार की रात स्नान के लिये आते हैं। ऐसी मान्यता है कि पवित्र बावली में स्नान करने वाली महिलाओं की हर मनोकामना पूर्ण होती है।
लाल सरोवर
यह सरोवर ध्यानपुर लाल द्वारा सुन्दर भवन से कुछ ही दूरी पर स्थित है। कहते हैं बाबा लाल जी के शिष्यों की परीक्षा लेने के लिए एक फकीर ने इसी सरोवर में सुई फेंककर शिष्यों से सुई ढूँढने का आग्रह किया था। बाबा लाल जी के शिष्यों ने अपने गुरु का स्मरण कर गुरु के पवित्र नाम का उदघोष करते हुए सरोवर के जल में डुबकी लगाई और कुछ ही देर में सुइयों से भरी परात लेकर हाजिर हो गये और बोले- “लो महात्मा,
इसमें से अपनी सुई पहचान लो। यह देखते ही फकीर उस पवित्र और कामिल फकीर बाबा लाल जी के दर्शनों को उतावला हो उठा जिसके शिष्य ही इतनी अलौकिक शक्तियों के स्वामी थे।
यहीं पर बाबा लाल जी के प्रसिद्ध शिष्य श्री जगदीश दास जी की कच्ची समाधि भी बनी हुई है। सरोवर और उसके आसपास का वातावरण अत्यन्त शांत और अलौकिक है। आज भी पवित्र सरोवर के किनारे अनेक साधु-सन्यासी तपस्या रत दिखाई देते हैं।
दरबार श्री ध्यानपुर में प्रतिवर्ष बैसाखी, दीवाली, लोहड़ी, विजय दशमी, गुरु पूर्णिमा और बाबा लाल जी का जन्मोत्सव बड़ी धूम-धाम से मनाए जाते हैं। भारतवर्ष के कोने-कोने से आए लाखों श्रद्धालु हर्षोल्लास के साथ अत्यन्त बढ़-चढ़कर इन उत्सवों में भाग लेते हैं।
इस प्रकार यहाँ आने वाले भक्त, दर्शनार्थी और श्रद्धालु श्री ध्यानपुर सिद्धपीठ की शक्ति, पवित्रता और महिमा का पुण्य प्राप्त कर धन्य हो जाते हैं।
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