॥ भजन ॥
तर्ज़ – इक परदेसी मेरा दिल….
टेक – मेरा काम नहीं कुछ सोचने का,
हक है सिर्फ हुकम मानने का ।
1. हानि लाभ को नहीं पहचानू , कल क्या होगा कुछ नहीं जानू ।
मेरे गुरु को ही रहता सब पता, हक है…
2. मेरी नज़र तो सिर्फ जिस्मानी,सतगुरु जानते हैं राज़ रूहानी ।
करते हैं माफ मेरी सारी ख़ता, हक है……….।
3. मेरे हर एक कर्म का ख्याल,करता है मेरा सतगुरु दयाल ।
नहीं और किसी से मेरा वास्ता, हक है……।
4. मेरे हाथ आई हैं हुकम की दातें,छोड़ दी मैंने बाकी सब बातें ।
दास को राहे रास्ता मिल गया,
हक है……।