Guided Meditation – सुमिरण ध्यान करने की सटीक विधि
Guided Meditation in hindi
बैठ कर एकांत में योगी, मन इन्द्रियों को वश करे । भय कामना सभी त्याग कर, परमेश्वर का ध्यान धरे ॥ कुशा हो अथवा मृगछाला, उसके ऊपर वस्त्र बिछावे । समतल स्वच्छ एकांत भूमि में, आसन योगी बनावे ॥ मन स्थिर कर अभ्यास करे विचार सभी अन्य हटावे । अन्तःकरण शुद्धि हेतु, योग अभ्यास में मन लगावे ॥ काया सिर गर्दन अपनी रखे सीधा और स्थिर । नासिका के अग्रभाग पर, ध्यान जमावे योगी प्रतिपल ॥ ब्रह्मचर्य का पालन कर, होवे भय और काम विहीन | अपने मन को वशीभूत कर, सदा रहे ध्यान में लीन ॥
अर्थ –
ध्यानयोगी को चाहिए कि वह भोगबुद्धि से पदार्थों के संग्रह का त्याग कर के, कामना रहित हो कर, अन्तःकरण तथा शरीर को वश में रख कर और एकांत में अकेला रहते हुए अपने मन को निरंतर परमात्मा में लगाए ।
शुद्ध और पवित्र स्थान पर ध्यानयोगी क्रमशः कुश, मृगछाला और पवित्र वस्त्र बिछाये ।
वह आसन न अत्यंत ऊँचा हो और न ही अत्यंत नीचा हो तथा स्थिर हो अर्थात् हिलने-डुलने वाला न हो । ऐसे आसन पर बैठ कर चित्त और इन्द्रियों की क्रियाओं को वश में रखते हुए मन को एकाग्र कर के अन्तःकरण की शुद्धि के लिए ध्यानयोग का अभ्यास करे ।
शरीर, गर्दन और मस्तक को सीधा रखे, शरीर को अचल रखे तथा इधर-उधर न देख कर अपनी नासिका के अग्र भाग पर दृष्टि जमाते हुए अभ्यास करे।
•इस प्रकार अभ्यास करते हुए जिसका अन्तःकरण राग-द्वेष आदि द्वंद्वों से रहित हो गया है, जिसका भय मिट गया है और जो ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने वाला है, ऐसा सावधान योगी मन को र से हटा कर, मेरे स्वरूप में लगाता हुआ, मेरे परायण हो कर अभ्यास करता रहे।
भजन अभ्यास का उद्देश्य – स्मरण रहे इस सहज ध्यान के अभ्यासी का भजन करने का उद्देश्य अपने अन्तःकरण की मलिनताओं को दूर कर उसे पूर्णतया शुद्ध करने का होना चाहिए, अन्य कुछ नहीं क्योंकि अंत-करण के शुद्ध होने पर परमात्म स्वरूप की ज्योति प्रभु कृपा से स्वतः प्रकट हुआ करती है ।
चित्त के मल विक्षेप और आवरण दूर होने पर ही आंतरिक मंजिलों का मार्ग खुल सकता है, उससे पूर्व नहीं । अतः साधक को सभी इच्छाएँ त्याग कर अपना अभ्यास जारी रखना चाहिए।
सर्वप्रथम सभी विषयों से, अपनी इन्द्रियों को ले हटा । फिर मन की सब इच्छाओं से, चित्त को ले उठा ॥ अभ्यास करते हुए धीरे-धीरे, वैराग्य मन में उपजावे । धीर बुद्धि से मन को अपने, परमातम में ठहरावे॥
अस्थिर और चंचल यह मन, जहाँ-जहाँ करे विचरण । वहाँ-वहाँ से उसे हटा कर, परमेश्वर में करे मगन ॥ योगी का मन जब हो जावे निर्मल और कामना रहित । ब्रह्मभूत वह योगी तब रहता, सदा आनन्द सहित ॥
संकल्प से उत्पन्न होने वाली सम्पूर्ण कामनाओं का सर्वथा त्याग कर के और मन से इन्द्रिय समूह को सभी ओर से हटा कर धैर्ययुक्त बुद्धि के द्वारा धीरे-धीरे संसार से उपराम हो जाय और सब जग परिपूर्ण परमात्मा में मन बुद्धि को स्थिर कर के फिर कुछ भी चिंतन न करे।
यह अस्थिर और चंचल मन जहाँ-जहाँ जाय, वहाँ-वहाँ से हटा कर इस को एक परमात्मा में ही लगाये। मन की अस्थिरता और चंचलता को मिटाने का अर्थात् मन को एकाग्र करने का एकमात्र यही उपाय है कि जहाँ-जहाँ मन बाहर जावे वहाँ-वहाँ से हटाकर अपने अंतर में अर्थात् नाम के स्मरण में लगाने का अभ्यास करे।
इस प्रकार निरंतर अभ्यास करते रहने वाले, रजोगुणी वृत्तियों से रहित शान्त मन वाले, पापरहित और ब्रह्म स्वरूप में मन स्थित करने वाले योगी को आत्मिक परम सुख की प्राप्ति होगी।
भजन अभ्यास की विधि
- सब सज्जन आसन लगा कर बैठें, आलस और सुस्ती को त्याग कर । शरीर को सीधा रख कर बैठें।
- सुख आसन में दायाँ पाँव उपर रहे और बायां उसके नीचे । सावधान बैठ कर अपनी अंतर- दृष्टि नाक के अग्र भाग पर रखें। दोनों हाथों को अपने घुटनों पर रख कर ध्यान मुद्रा में बैठें।
- अब स्वासों के जाप में अपनी सुरति को लगाएँ । अजपा जाप में चित्तवृत्ति को लीन करना है।
- सुरति (यानी चित्तवृत्ति की धारा) और निरति (यानी चित्त की अन्तरीव-दृष्टि) दोनों ही आँखों के बराबर और मध्य में रहें। इस प्रकार भ्रूमध्य में ख्याल को लगा कर स्वांसों का जाप करें।
- सावधान हो कर पूरी रुचि और एकाग्रता से यह अभ्यास करें ।
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