सात दिनों के अंदर सुखी होना चाहते हो ?
विशेषज्ञ से मिलो जैसे की पूर्ण संत
यह बहुत ही अच्छा विषय है जो अनुभव पर आधारित है-
इसे समझने की कोशिश करें देखो यदि हमें कोई छोटी सी बीमारी भी लग जाती है तो वह भी सप्ताह दो सप्ताह बाद ठीक होती है। उसके लिए भी उसी रोग के विशेषज्ञ से मिलो तब जाकर वह बीमारी ठीक होती है।
सात दिनों के अंदर राजा परीक्षित को ज्ञान हुआ था
अब यदि कहा जाये कि आप एक सप्ताह में पूरी तरह से सुखी हो जाओगे संपूर्ण ज्ञान प्राप्त हो जाएगा तो सुनकर बड़ा अजीब सा लगता है। अजीब क्यों लगता है एक विषय आपने सुना होगा इतिहास के पन्नों में कि राजा परीक्षित को यह पता चल जाता है कि उन्हें सातवे रोज उनकी मृत्यु होगी।
अब आप समझिए उन्हें पता चल जाता है कि सात दिनों बाद उनकी मृत्यु होगी और वह गुरु शुकदेव महाराज जी की शरण में जाते हैं और उनसे ज्ञान की गुहार लगाते हैं और वो उनका कहना मानकर उन्हें ज्ञान देते हैं और संपूर्ण ज्ञान उन्हें सात दिनों में करा देते हैं सात दिनों के अंदर उन्हें संपूर्ण ज्ञान करा देते हैं उसके बाद कहते हैं वोह खुद अपनी मृत्यु का स्वागत करते हैं।
अब आप समझिए सात दिनों के अंदर तब हुआ ?
अब क्यों नहीं हो सकता अब भी हो सकता है। कबीर जी कहते हैं कि कोटि जन्मों के पाप हैं जो अपराध है भाई वह बहुत थोड़े समय में कट जाते हैं थोड़े समय महीने दो महीने की बात नहीं कहते।
वह कहते बहुत कम और कितना समय देना है- एक घड़ी व कहते उसकी भी आधी कर लो मैं कहता उसकी भी आधी कर लो अब आप समझिए संत मार्ग ही ऐसा है यहां पर सुखी हुआ जा सकता है। सात दिनों क्या उससे पहले भी सुखी हुआ जा सकता है लेकिन संतमत यदि समझ में आ गया तो।
राजा परीक्षित को समझ में आ गया था कि सच्चाई क्या है।
सुमिरन भजन अपनी दिनचर्या में शामिल करें
हमें अभी समझ नहीं आया है इसीलिए हम परेशान होते हैं।आप समझो हम परेशान होते हैं नाम दान मिलने के बाद भी अभी हमारे अंदर तक कर्ता का भाव है। अभी में हूं यह मैं तो गई नहीं तो सुमिरन भजन क्या होगा और जो सुमिरन भजन कर रहे हैं वह समझ के आएगा बात यहीं पर समझनी चाहिए हर बात मर कोई ना कोई तत्व ज्ञान छुपा होता है सिर्फ समझने की जरूरत है बात एक ही है जो बार-बार दोहराई जाती है।
शब्द को सही तरीके से जपना
बार-बार समझाई जाती है 10 बातें नहीं है अरे एक बात समझाई गई है कि शब्द ही सब कुछ है शब्द ही सब कुछ है परमात्मा भी वही है आत्मा भी वही है सब कुछ वही है और अभी भी हमारा मै का आधार जो है कि मैं मेरे बच्चे मेरी औलाद मेरी दुकान मेरा कारोबार मेरा परिवार मेरा मेरा यह तक तो हमारे अंदर से नहीं गया ये हमे है ये अहंकार है।
यह तो गया नहीं अब आप सोचते हैं कि किसी तरह हमें कोई ऐसी औषधि मिल जाए जिसे हम खा ले और खाने के बाद हम सात दिन हो क्या चलो दो हफ्ते सही चार हफ्ते सही ठीक तो हो जाएं भाई हम में से बहुत सारे लोग ऐसे हैं जिन्हें नाम दान मिले हुए 50 वर्ष से भी अधिक हो गए हैं लेकिन क्या उनकी स्थिति सुधर गई?
नहीं सुधरी कारण क्या था कि वह संतमत को सही तरह से समझ नहीं पाए नाम के स्मरण में लग गए नाम को जपने में लग गए लेकिन उसके बाद भी यह नहीं जाना कि नाम जपने के साथ-साथ हमें समझना क्या चाहिए था वो नहीं समझा अगर वो समझ जाते तो शायद सुखी हो गए होते ध्यान रखना सुख का संबंध यदि दिमाग में यह गलतफहमी पाली हुई है कि सुख का संबंध इस संपत्ति से है धन से है तो कभी सुखी नहीं रह सकते।
ध्यान रखिए वही व्यक्ति सुखी रहता है जो सिर्फ और सिर्फ अपनी आत्मा का सत्य समझता है और सत्य यह जो आत्मा है वो परमात्मा का अंश है और वह परमात्मा हमें जो नामधारी हैं उन्हें शब्द रूप में समझाया जाता है कि यह शब्द ही परमात्मा है।
जिसने उस शब्द के साथ अपने आप को जोड़ा है वही इस सत्य को समझ सकता है वह नहीं जिसने में को समझा हुआ है मैं तो कभी खत्म हो ही नहीं सकती भाई।
शब्द का अभ्यासी शब्द का पारखी सब कुछ शब्द को सौंपकर हर कार्य करता है। उसके पास जो कुछ भी है चाहे मकान है दुकान है बीवी बच्चे जो कुछ है सब कुछ शब्द का है परमात्मा का है गुरु का है यह वो ध्यान करता है- इस चीज को महसूस करता है ऐसे नहीं कि केवल कहना कहना और महसूस करने में बहुत बड़ा फर्क है। जो महसूस करता है कि सब कुछ मालिक का है शब्द का है ये शरीर भी है ना यह भी शब्द का है।
निष्काम भाव से सब कार्य करने
मेरा कुछ नहीं है ये कैसे निष्काम भाव से कोई भी हमारे अंदर किसी भी चीज की आसक्ति ना रहे पत्नी से कोई आसक्ति ना हो बच्चों से कोई आसक्ति ना हो दुकान कर रहे हो दुकान से कोई आसक्ति ना हो नौकरी करते हो नौकरी से आसक्ति ना हो अब लोग कहेंगे कैसी बातें कर रहे हो अगर आसक्ति नहीं होगी।
यह नहीं पता चलेगा यह नहीं ध्यान रखेंगे कि नौकरी कर रहे हैं ऐसे धन मिलेगा उससेहमारी जरूरतें पूरी होंगी तो फिर कैसे मैं उन्हें समझा देता हूं उन्हें बतला देता हूं और उन्हें समझ जाना चाहिए कि भाई यहसब कुछ अपने आप हो रहा है तुम्हें क्या करने की जरूरत है तुम्हें करने की जरूरत नहीं है।
अपने आप हो रहा है तुम कुछ करोगे तुम्हें अपने आप उसका प्रतिफल प्राप्त होगा तुम्हें मांगने की जरूरत नहीं है।
वो व्यक्ति जो निष्काम भाव से नाम जपता है वो बड़ा है वही सत्य को समझ सकता है तो सबसे पहला ज्ञान यही है कि भाई सब कुछ शब्द का है परमात्मा का है यह सोचकर निष्काम भाव के साथ भक्ति करो जो भक्ति कर रहे हो जैसी भी भक्ति कर रहे हो निष्काम भाव से करो।
जो निष्काम भाव से भक्ति करता है। नाम जपने बैठते हो मन नहीं लगता ध्यान करने बैठते हो ध्यान नहीं लगता भजन करने बैठते हो भजन नहीं बनता कोई अन्य बाहरी भक्ति करते हो वहां भी जाते हो?
मंदिर में खड़े हो किसी अन्य स्थान में खड़े हो। वहां भी जाकर भाई तरह-तरह से परमात्मा को पुकारते हो तरह-तरह से उसके आगे फरियाद करते हो लेकिन फिर भी मन नहीं लगता भक्ति सफल नहीं होती।
इसीलिए क्योंकि वहां भी निष्काम भाव से कोई भक्ति नहीं की जा रही है बैठते ही भक्ति करते ही बस यह आ जाता है कि यह मांग लो यह मांग लो यह मांग लो यह मिल जाए यह पूरा हो जाए अरे भाई तुम्हारी किस्मत है जो हमारी किस्मत में है हमें मिलेगा हमें मांगने की जरूरत नहीं है वो वैसे भी मिलेगा।
नाम जपना
हमारी किस्मत में यदि एक दाना भी है तो वह दाना हमसे कोई छीन नहीं सकता। यदि नहीं है तो कितनी भी कोशिश करके देख लो व मिल नहीं सकता। अरे गुरु से नाम दान मिलने के बाद अगर सही तरह से उस नाम को जपो नाम का स्मरण करो। बारबार एक नाम को दोहराना ही तो है जब समय मिले तब जपो मैं कहता हूं निष्काम भाव से नाम को जपो यह समझकर सारे कर्म करो कि भाई जो मैं कर्म कर रहा हूं- यह सब परमात्मा को समर्पित है इस कर्म सेजो फल उत्पन्न होगा।
फल जो भी हो चाहे मेरे मन के अनुरूप हो चाहे मन के विपरीत हो मैं उसे स्वच्छा से ग्रहण करूं कर रहा हूं जो कर रहा है वह शांति प्रद जीवन जी रहा है उसी के अंदर किसी तरह का कौतुहल नहीं है वह शांत है पूरी तरह से शांत है।
उसकी स्थिति कैसे हुई केवल केवल अंतर में इस धारणा को बिठाना कि जो कुछ हो रहा है उस कुल मालिक की मर्जी से हो रहा है। हमारी और आपकी कोई हस्ती नहीं कि हम उसे बदल सके ।
हम इतना कर सकते हैं केवल कि हम नाम जप सकते हैं। इस कलयुग में नाम जपना सबसे बड़ी भक्ति है ध्यान रखिए सबसे बड़ी भक्ति नाम जपो पूरी सच्ची ईमानदारी के साथ नाम जपो नाम जपते समय मन को प्रसन्न रखो।
सात दिन तो बहुत दूर है भाई उससे पहले ही जीवन का सार समझ आ जाता है कि यह जो सब कुटुंब कबीला दिखाई दे रहा है। यह नाते जो सामने दिखाई दे रहे हैं। जो हमने हाठ हवेली खड़ी की है यह जो शरीर है जिस पर हम इतना इतरा रहे हैं। मिट्टी का ढेरा है और कुछ नहीं उस युग में शुकदेव महाराज जी ने राजा परीक्षित को ज्ञान कराया इस कलयुग में वक्त के पूरे संत सदगुरु हमें ज्ञान देते हैं।
हमें चाहिए कि वक्त के पूरे संत सदगुरु की शरण ली जाए वो जो बताए उसे सर माथे रखो और उसी का अनुसरण करो यदि वह कहते हैं कि नाम जपो – तो नाम जपो वो कहते हैं कि अमृत वेला में उठकर नाम जपो तो उसी अमृत वेला रात्रि के तीसरे पहर उठकर नाम जपने का अभ्यास करो।
वो कहते हैं कि जीवन सादा और ऊंचे विचार वाला रखो तो वैसा ही जीवन जियो यह नहीं कि झूठ का जीवन जियो जैसे हम लोग जीते हैं। हम तो इस शान और शौकत की जिंदगी जी रहे हैं। देखा देखी का जीवन जी रहे हैं।
अपने सतगुरु और इष्ट को ध्यान में रखकर नाम जप करना
नाम जपना ऐसा नहीं जो नाम जपा है उसका सारा दिन एहसास रखो कि हमने नाम जपा है। दिन में भी जब भी समय मिले नाम जपो जितना अधिक नाम जपोगे उससे फैला हुआ ख्याल एकत्रित होता है और जो सुषुम्ना नाड़ी है वो जागृत हो जाती है।
यहां पर ध्यान में गुरु का रूप आने लगता है जैसे जैसे गुरु का स्वरूप आता है फैला हुआ। ख्याल टिकने लगता है जब फैला हुआ ख्याल टिकने लगता है तो जो आत्मा है जो मन की कैद में है जो इंद्रियों के पीछे पीछे भागी फिरती है वो नौ द्वारों की बजाय ऊपर की ओर उठना शुरू कर देती है।
यहीं से तो शुरुआत है यहींवो आनंद है जो कहते हैं सात दिनों में वो ज्ञान हो जाता है वो भक्ति प्राप्त हो जाती है जो लाख यत्न करने पर भी प्राप्त नहीं होती ।
कितना साधारण सा काम है आप देखिए सात दिनों से पहले ही मैं कहता हूं यह अनुभव हो जाता है कि हम बे मतलब में हम इतना परेशान हो रहे थे कभी बच्चे की शादी को लेकर कभी कारोबार को लेकर।
जब जो होना है वो होकर रहेगा हमारी किस्मत में जो है वो हमें मिलेगा हमसे कोई नहीं छीन सकता गुरु नाम जपने से हमें अंतर में शक्ति मिलती है हमारी आत्मा को ताकत मिलती है मन जो इतना विषय विकारों में लिप्त है वो मन जागृत होता है उस मन को गुरु नाम की चाबुक से काबू में लाया जा सकता है चुपचाप अजपा जाप जपते हुए मन में धीरे-धीरे नाम का स्मरण करते रहो।
आनन्द का अर्थ क्या है – इस शब्द ने हर प्राणी में हलचल मचा रखी है
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