औगनहार की बेनती सुनो ग़रीब निवाज़।
जे मैं पूत कपूत हूं बहुड़ पिता को लाज ।।
नहीं विद्या नहीं बाहु बल नहीं ख़रचन को दाम ।
‘तुलसी’ मो सम पतित की पत राखो श्री राम ।।
अवसर राखी द्रौपदा संकट ज्यों प्रह्लाद ।
कहन सुनन की कछु नहीं शरण पड़े की लाज ।।
गुरु जी को सिर पर राखिये चलिए आज्ञा माहिं ।
कहे ‘कबीर’ तिस दास को तीन लोक डर नाहिं । ।
जे मैं भुल बिगाड़िया न कर मैला चित्त ।
साहिब गोरा लोड़िए नफर बिगाड़े नित्त ।
आशावन्ती दर खड़ी साहिब न ढोई दे।
भी दरबार न छोड़सां मत शौह मेहर करे ।
गुरु समरथ सिर पर खड़े क्या कमी तोहे दास ।
ऋद्धि-सिद्धि सेवा करे मुक्ति न छोड़े पास ।।
क्या मुख ले विनती करूं लाज आवत है मोहे।
तुम देखत अवगुण करूं कैसे भाऊं तोहे ।।
गुरु गोविन्द दोनों खड़े किसके लागू पाय ।
बलिहारी सत्गुरु अपने जिन मार्ग दिया लखाए ।
गुरां जी को कीजिए दण्डवत् कोटि-कोटि प्रणाम ।
कीट न जाने भृंग को गुरु कर ले आप समान ।।
लेखे गिनत न छूटिए छिन छिन भूलनहार ।
बख़्शनहारा बख़्श लै ‘नानक’ पार उतार ।।
सत्गुरु नाम जहाज़ है चढ़े सो उतरे पार ।
जो श्रद्धा कर सेंवदे सत्गुरु पार उतारन हार ।।
श्री गुरु महाराज की महिमा मो से कहीं न जाये।
महाबली अवतार हैं जल थल रहयो समाये ॥
सत्गुरु मेरा सूरमा करे शब्द की चोट ।
मारे गोला प्रेम का ढाये भ्रम का कोट ।।
फिरत-फिरत प्रभु आयों पड़यो तोहे शरणाए ।
‘नानक’ की प्रभु बेनती अपनी भक्ति लाए।।
भक्ति-दान मोहे दीजिए गुरु देवन के देव ।
और कछु न चाहिए निसदिन तुमरी सेव ।।
गुरु मूर्ति गति चन्द्रमा सेवक नैन चकोर ।
अष्ट पहर निरखत रहूं गुरु मूर्ति की ओर।
पारब्रह्म परमेश्वर पूर्ण सच्चिदानन्द ।
नमस्कार प्रभु आपको सब संतन के अंग संग ।।
मात-पिता सत्गुरु मेरे मैं शरण जाऊं जिसकी ।
गुरु बिन और न दूसरा मैं आस करूं किसकी ।।
जैकारा निस्तारा धर्म का द्वारा झूलेगी ध्वजा बजेगा नगारा ।
सुनकर बोले सो निर्भय, बोल मेरे श्री गुरु महाराज की जै ।।