मदर टेरेसा का जीवन परिचय
नाम | एग्नेस गोंझा बोयाजिजू |
पिता का नाम | निकोले गोंझा बोयाजिजू |
माता का नाम | द्रानाफिले गोंझा बोयाजिजू |
मदर टेरेसा का जन्म | 26 अगस्त, 1910 |
जन्म स्थान | मेसिडोनियो की राजधानी स्कोप्जे शहर |
भाई बहिन | एक भाई और एक बहन |
मदर टेरेसा एक महान आत्मा थी जिन्होंने अपना सारा जीवन परोपकार और निस्वार्थ भावना से दूसरों के लिए समर्पित किया। मदर टेरेसा एक ऐसी महान शख्सियत थीं जिन्होंने अपने जीवन का अधिकांश भाग लोगों की सेवा और भलाई करने में लगाया। मदर टेरेसा की जीवनी दूसरों के लिए प्रेरणा स्त्रोत थी।
हमारी दुनिया को ऐसे ही महान लोगों की जरूरत है जो मानवता की सेवा को सबसे बड़ा धर्म समझें। मदर टेरेसा भारतीय नहीं थीं फिर भी उन्होंने हमारे भारत देश को अपना जीवन में बहुत कुछ दिया था। आज भी मदर टेसा की सेवाओं का प्रभाव दुनिया में महसूस किया जा सकता है
बेशक मदर टेरेसा शारीरिक रूप से इस दुनिया में नहीं है परंतु आज भी उन्हें दुनिया में मानवता के लिए जो काम किए उन के लिए एक आदर्श माना जाता है।मदर टेरेसा आदर्श की देवी की एक जीती-जागती मिसाल थीं।
मदर टेरेसा का नाम सुनते ही मन में मातृत्व भावनाएं हिलोरे खाने लगती हैं। मदर टेरेसा मानवता के लिए उनकी मां बनकर काम करती थीं। वे दीन-दुखियों की हमदर्द बनकर सेवा करती थीं।
मदर टेरेसा को दया की देवी, दीन हीनों की माँ और मानवता की मूर्ति कहा जाता था। इनके माध्यम से ईश्वरीय प्रकाश को देखा जा सकता था।
मदर टेरेसा जी ने अपने जीवन का लक्ष्य तिरस्कृत, असहाय, पीड़ित, निर्धन, कमजोर लोगों की सेवा को बना लिया था।
मदर टेरेसा जी ने अपाहिजों, अंधों, लूले लंगडो तथा दीन-हीनों की सेवा को अपना धर्म बना लिया था।
मदर टेरेसा का जन्म कब हुआ था जन्म :
मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को मेसिडोनियो की राजधानी स्कोप्जे शहर में हुआ था। उनकी माता का नाम Dranafile गोंझा बोयाजिजू था और पिता का नाम Nikollê गोंझा बोयाजिजू था।मदर टेरेसा का असली नाम एग्नेस गोंझा बोयाजिजू था।
मदर टेरेसा का जन्म एक अल्बेनियाई परिवार में हुआ था। मदर टेरेसा जी के पिता बिजनेसमैन थे और धार्मिक विचारों के व्यक्ति थे। उनके घर के पास जो चर्च था वहां ज्यादातर जाया करते थे और प्रभु यीशु के अनुयाई थे।
जैसे फूलों की एक कली चारों और खुशबू बिखेर देती है। ऐसे ही मदर टेरेसा एक ऐसी कली थीं जिन्होंने दीन-दुखियों की जिंदगी प्यार और खुशियों की खुशबु को भर दिया था।
मदर टेरेसा अपने भाई बहनों से सबसे छोटी थी और उनके उनसे बड़े पांच भाई बहन थे। मदर टेरेसा जब 9 साल की हुई थी तो उनके पिता जी की मृत्यु हो गई थी।
पिता की मृत्यु के बाद मदर टेरेसा के परिवार को आर्थिक तंगी यों का सामना करना पड़ा था।
आर्थिक तंगी होने के बावजूद मदर टेरेसा की मां ने उनको बचपन से ही मिल बांट कर खाना सिखाया वह कहती थी कि जो भी मिलता है उससे मिल बांट कर सबके साथ खाओ। अपनी मां की इसी सीख को मदर टेरेसा हृदय में बिठा लिया।
प्रारंभिक जीवन :
मदर टेरेसा अत्यंत सुंदर, परिश्रमी होशियार एवं अध्ययनशील लडकी थीं। मदर टेरेसा को पढ़ने और गाने का बहुत शौकं था। मदर टेरेसा की आवाज सुरीली होने से मैं अपनी मां और बहन के साथ चर्च में भगवान यीशु की महिमा के गाने गाती थी ।
12 साल की उम्र में एक धार्मिक यात्रा पर गई जिससे मदर टेरेसा को छोटी सी उम्र में ही यह अनुभव हो गया था कि उन्होंने अपना समस्त जीवन मानव सेवा में बीताना है।
उन्होंने सामान्य वस्त्रों को त्याग दिया और नीली किनारी वाली साडी पहनने का निश्चय किया। उसी समय से मदर टेरेसा मानवता की सेवा के काम में जुट गई।
मदर टेरेसा जब 12 साल की हुई उन्होंने नन बनने का निश्चय कर लिया। 18 साल की होने पर उन्होंने कोलकाता के आइरेश नौरेटो नन मिशनरी में शामिल होने का सोचा।
प्रतिज्ञा लेने के बाद से वह सेंट मैरी हाईस्कूल कलकत्ता में अध्यापिका बन गईं थीं।
मदर टेरेसा जी बीस साल तक अध्यापक पद पर कार्य करती रहीं और फिर प्रधान अध्यापक पद पर भी बहुत ईमानदारी से कार्य किया।
परंतु उनका ध्यान बेसहारों गरीबों अपाहिजों बुजुर्गों की और था। झोपड़ियों में रहते देख लोगों के दर्द ने मदर टेरेसा को बेचैन कर दिया।
मदर टेरेसा एक त्याग की चलती-फिरती देवी थीं। वह एक छोटे से घर में रहती थी और घर में कभी चप्पल नहीं पहनती थी नंगे पैर रहती थी। छोटे से घर में एक छोटा सा कमरा था जिसमें वे रहती थी और उसी छोटे से कमरे में अपने अतिथियों से मिलती थी।
उस कमरे में एक मेज और एक कुर्सी को रखा था। मदर टेरेसा जी जिस भी व्यक्ति से मिलती थीं सभी से प्रेमभाव और विनम्रता से वार्तालाप किया करती थीं। टेरेसा सभी की बातों को ध्यान से सुनती थीं।
मदर टेरेसा का व्यवहार बहुत ही विनम्र था। उनकी बातों में सज्जनता और विनम्रता झलकती साफ साफ दिखाई देती थी।
मदर टेरेसा जी की मुस्कान बड़ी गहरी थी जो उनकी ह्रदय की गहराई से निकलती थी। सारा कार्य समाप्त होने के बाद जो उनके पास पत्र आया करते थे उन पत्रों को पढ़ती थी।
उनका ये विश्वास था कि सारी बुराईयाँ घर से ही पैदा होती हैं। यदि घर में प्रेम हो होगा तो सभी के अंदर प्रेम उजागर और पैदा होगा।
वे शांति और प्रेम ज्यादा महत्व देती थीं।
भारत आगमन : मदर टेरेसा का भारत आना व उनके द्वारा किए गए कार्य ( Mother teresa service in india )
6 जनवरी, 1929 को मदर टेरेसा आयरलैंड से कलकत्ता में लोरेटो कान्वेंट पहुंची थीं।
इसके बाद उन्होंने पटना से होली फैमिली हॉस्पिटल से आवश्यक नर्सिंग ट्रेनिंग पूरी की और सन् 1948 को वापस कलकत्ता आईं थीं।
बच्चों को पढ़ाने के लिए 1948 में उन्होंने एक स्कूल खोला। स्कूल खोलने के बाद उन्होंनेमिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की थी।
मदर टेरेसा जी ने सन् 1952 में कलकत्ता में निर्मल ह्रदय और निर्मला शिशु भवन के नाम से भी आश्रम खोले। निर्मल ह्रदय आश्रम का काम बीमारी से पीड़ित रोगियों की सेवा करना था।
निर्मला शिशु भवन आश्रम में वह अनाथ और बेघर बच्चों की सहायता के लिए वे पीड़ित रोगियों व गरीबों की खुद सेवा का कार्य किया करती थीं।
मदर टेरेसा जी ने भारत में सबसे पहले डार्जिलिंग में सेवा का कार्य करना शुरू कर दिया था।
सन् 1929 से लेकर 1948 तक वे निरक्षकों को पढ़ाने का काम निस्वार्थ भाव से किया। वे बच्चों को पढ़ाने में अधिक रूचि लेती थीं। मदर टेरेसा बच्चों के साथ मां जैसा बच्चों से प्रेम करती थीं।
सेवा कार्य : एक नया बदलाव ( how did mother teresa’s life change )
सन् 1931 में उन्होंने अपना नाम बदलकर टेरेसा रखा था। सन् 1946 में ईश्वरीय प्रेरणा से उन्होंने मानव के कष्टों को दूर करने की पृतिज्ञा ली थी।
10 सितंबर 1946 को मदर टेरेसा को एक एहसास हुआ की जब वह इस दिन कोलकाता से दार्जिलिंग जा रही थी तभी प्रभु यीशु की मदर टेरेसा से बात हुई और भगवान विष्णु ने उसे कहा कि अपना अध्यापन काम छोड़कर कलकत्ता चली जाओ और वहां के गरीब लाचार और बीमार लोगों की सेवा का कार्य करो।
शुरू में मदर टेरेसा मरते हुए जो लोग अपना इलाज नहीं करा सकते थे ऐसे गरीबों की खोज में शहर भर में घूमती थीं।तब उनके पास सिर्फ एक से ₹2 रुपए होते थे।
पहले तो ये क्रिकलेन में रहती थीं लेकिन बाद में वे सर्कुलर रोड पर रहने लगीं थीं। अब यह एक है और ये इमारत मदर हॉउस के नाम से पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है।
मदर टेरेसा जी एक संगठन की शुरुआत की जिसमें उन्होंने अपने बहनों और भाईयों के सहयोग से गरीबों की भलाई के लिए नि:शुल्क और निस्वार्थ कार्य किया था।
अब यह संगठन एक विश्व व्यापी संगठन बन चुका है। अपनी आत्मा की आंतरिक आवाज सुनने के बाद 10 सितंबर, 1946 को उन्होंने अपने प्रधान अध्यापक पद को छोड दिया । गरीब और बेसहारा लोगों के लिए सेवा कार्य करने का फैसला किया।
मदर टेरेसा ने पटना में नर्सिंग का प्रशिक्षण लिया । उन्होंने कलकत्ता की गलियों में घूम-घूम कर सत्यदया,प्रेम परोपकार के मिशन को प्रारंभ किया था।
मदर टेरेसा जी कमजोर छोड़े हुए लोग और मरते हुए लोगों को सहारा देने के लिए हमेशा तैयार रहती देती थीं। टेरेसा जी ने कलकत्ता निगम से एक जमीन का टुकड़ा माँगा और उस पर एक धर्मशाला को स्थापित किया।
उन्होंने इस छोटी सी शुरुआत के बाद गरीब, बेसहारा और अपाहिजों के लिए 98 स्कूटर, 425 मोबाईल डिस्पेंसरीज, 102 कुष्ठ रोगी दवाखाना, 48 अनाथालय और 62 ऐसे घर बनाये थे जिसमें बेसहारा और दरिद्र लोग रह सकें।
मिशनरीज ऑफ चैरिटी :
मदर टेरेसा ने मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की । जिसे 7 अक्टूबर 1950 को रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा मान्यता दी थी।
मदर टेरेसा जी की मशीनरीज संस्था ने सन् 1996 तक लगभग 125 देशों में 755 निराश्रित गृह खोल लिए थे।
इनसे लगभग 5 लाख लोगों की भूख मिटाई जाने लगी थी।मदर टेरेसा जी सुबह से लेकर शाम तक अपनी मशीनरी बहनों के साथ व्यस्त रहा करती थीं ।
मदर टेरेसा जी ने 13 मार्च, 1997 को मशीनरीज ऑफ चैरिटी का मुखिया पद छोड़ दिया था जिसके कुछ महीनों बाद उनकी मृत्यु हो गई थी।
मदर टेरेसा जी की मृत्यु के समय तक मशीनरीज ऑफ चैरिटी में 300 संस्थाएं और 4000 सिस्टर काम करती थी।ये समाजसेवा संस्थाएं संसार के 123 देशों में काम करती थी।
सम्मान और पुरस्कार :
मदर टेरेसा जी को सन् 1931 को 23वां पुरस्कार मिला था। उन्हें शांति पुरस्कार और टेम्पलेटन फाउंडेशन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
- नोबेल शांति पुरस्कार (Nobel Peace Prize): मदर टेरेसा जी को 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया। इस पुरस्कार के जरिए उन्हें उनकी मानवता की सेवा और गरीबों, बीमारों और असहाय लोगों के प्रति किये जाने वाले योगदान की मान्यता मिली।
- भारत रत्न (Bharat Ratna): वर्ष 1980 में मदर टेरेसा जी को भारत रत्न, भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान, संदिग्धता के बावजूद, सरकार द्वारा प्रदान किया गया।
- बीटीसी (Blessed Teresa of Calcutta): 2003 में मदर टेरेसा जी को पोप यूहान पॉलस द्वितीय द्वारा बीटीसी (Blessed Teresa of Calcutta) घोषित किया गया। यह उन्हें कैथोलिक चर्च की महिला सेंट का गौरव दिलाता है।
- भारतीय सांस्कृतिक स्वर्ण पुरस्कार: 1980 में मदर टेरेसा जी को भारतीय सांस्कृतिक स्वर्ण पुरस्कार से भी सम्मानित किया
मदर टेरेसा जी को उनकी सेवाओं के लिए सेविकोत्तम की पदवी से भी सम्मानित किया गया था।
मदर टेरेसा जी को मानवता की सेवा के लिए अनेक अंतर्राष्ट्रीय सम्मान और पुरस्कार मिले हैं।
मदर टेरेसा जी को सन् 1962 में उनकी समाजसेवा और जनकल्याण की परोपकार और निष्काम भावना के आधार पर उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
नोबल प्राइज फाउंडेशन ने मदर टेरेसा को सन् 1979 में मदर टेरेसा को संसार के सर्वोच्च पुरस्कार नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया था।
यह पुरस्कार उन्हें शांति के लिए उनकी प्रवीणता के लिए दिया गया था। मदर टेरेसा को सन् 1980 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान के रूप में भारत रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया था।
मदर टेरेसा जी को सभी पुरस्कारों से जो भी राशी प्राप्त हुई थी उसे उन्होंने मानव के कार्यों में लगा दिया था।
मृत्यु
1983 में मदर टेरेसा को पहली बार दिल का दौरा पड़ा।
तब मदर टेरेसा रोम में पॉप जॉन पॉल द्वितीय से मिलने के लिए गई हुई थीं।
फिर 1989 में उन्हें दूसरी बार दिल का दौरा पड़ा था।
धीरे-धरे उम्र बढ़ने के साथ उनका स्वास्थ्य भी बिगड़ रहा था। 5 सितंबर, 1997 मदर टेरेसा को कलकत्ता में तीसरी बार जब दिल के दौरा पड़ा तो उनकी मृत्यु हो गई ।
उपसंहार
जिस प्रकार मदर टेरेसा जी ने दीन-दुखियों गरीबों अपाहिजों और रोगियों की सेवा की थी उनके कार्य को देखकर पॉप जॉन पॉल द्वितीय ने 19 अक्टूबर, 2003 को रोम में मदर टेरेसा जी को धन्य घोषित कर दिया।
मदर टेरेसा जी बेशक हमारे साथ नहीं हैं परंतु उनकी मशीनरी आज भी समाजसेवा के कामों में लग कर सेवा कर रही है हुई है।
मदर टेरेसा का सभी यही संदेश था कि हमें एक-दूसरे से इस प्रकार प्रेम करना चाहिए जैसे भगवान हम सबसे करते है।
तभी हम अपने विश्वास में, देश में, घर में और अपने ह्रदय में शांति को ला सकते हैं। जनता ने उनका दिल खोलकर सम्मान किया। इतना सब होने के बाद भी उनमे घमंड का लेष भी नहीं था।
मदर टेरेसा त्याग और बलिदान की साक्षात मूर्ति थी।उन्होंने अपना सारा जीवन मानव सेवा के कार्य के लिए अर्पण कर दिया।
मदर टेरेसा जी में प्रेम और करुणा घुट घुट कर भरी हुई थी। ज्यादातर लोगों को उनको देखने से ही हौसला और राहत मिल जाती थी जिस कारण लोगों को अपने दुख गम सारे भूल जाते थे।
उन्होंने अपने सेवा कार्यों का ऐसा आदर्श स्थापित किया जिससे वह लोगों के दिलों में राज करने लगी थी। इसी कारण है कि आज भी मदर टेरेसा जी का नाम आदर,प्रेम और श्रद्धा से लिया जाता है।