बाबा मुराद शाह जी एक बड़े घराने से थे। बाबा मुराद शाह जी खुद भी बहुत पढ़े लिखे थे और दिल्ली में एक एस.ई.ओ के पद पर तैनात थे। उनका असल नाम विद्या सागर था।
जहां पे काम करते थे वहीं एक मुस्लिम लड़की भी काम करती थी। बाबा जी को उस लड़की पर रूहानी प्यार हो गया था।एक दिन उस लड़की की शादी तय हो गई और बाबा जी के पास आकर कहने लगी कि आप मेरे साथ शादी करना चाहते हो तो आपको मुस्लिम बनना पड़ेगा।
यह सुनकर बाबा जे ने घर जाने का फैसला किया और वारिस शाह की हीर पढ़ते-पढ़ते नकोदर पहुँच गए।वहां पर वह ऐसे ही एक दिन बाबा जी घर जा रहे थे तो रास्ते में उनको बाबा शेर-ए-शाह जी के दर्शन हुए।
बाबा शेर-ए-शाह जी ने उन्हें आवाज लगाई कि विद्या सागर किधर जा रहे हो बाबा जी ने सोचा कि यह आदमी कोई रूहानी ताकत वाला लगता है।
फिर बाबा जी उनके पास चले गए। बाबा शेर-ए-शाह जी ने कहा कि अगर तुम मुस्लिम बनना चाहते हो तो बाबा मुराद शाह जी के नाम से ही बनोगे। फिर शेर-ए-शाह जी ने कहा जाओ अपने घरवालों से मिलकर आओ।
बाबा जी घर जाकर सबको मिलकर वापिस बाबा शेर-ए-शाह जी के पास आ गए और उनके साथ रहने लगे। बाबा जी को शेर-ए-शाह जी के पास रहकर बहुत सी परीक्षाएं देनी पड़ी। परन्तु वह एक एक करते सारी परीक्षाएं पास करते गए। बाबा जी शेरे शाह जी के सबसे प्यारे बन गए।
ऐसे ही चलता रहा फिर एक दिन बाबा शेर-ए-शाह जी की बहु बेटा उनको वापिस ले जाने के लिए आ गए। फिर बाबा शेर-ए-शाह जी ने अपने बेटे को कहा पहले विद्या सागर जी को पूछ लो ! तब विद्यासागर जी कहते है की यह आपके पिता है मैं क्या कह सकता हूँ आप इनको ले जाना चाहते हो तो ले जा सकते हो।
जब गद्दी पर बैठने की बात आई तो बाबा शेर-ए-शाह जी ने किसी को कहा तब उस आदमी ने कहा मैं एक कबीलदार आदमी हूँ आप विद्या सागर को कह दीजिये।
विद्या सागर जी से जब पूछा तो उन्होंने कहा जैसे आप कहेंगे वैसे ही मैं करूँगा। परन्तु विद्या सागर जी ने कहा की में आपको बहुत याद करूँगा। तब बाबा शेर-ए-शाह जी ने कहा जब भी तुम मुझे याद करोगे में आ जाया करूँगा और आज से तुम्हारा नाम मुराद शाह होगा और तुम लोगो की मुरादें पूरी करोगे।
फिर बाबा जी डेरे पर ही रहने लगे। एक औरत रोज रोटी का डिब्बा लेके जाती थी। एक दिन बाबा जी ने उसे माँ कहकर पुकारा और पुछा की कहाँ जा रही हो ? आगे उस औरत ने जवाब दिया की परसो मेरे बच्चे को फांसी होने वाली है मैं उनके लिए रोटी लेके जा रही हूँ।
इस पर बाबा जी ने कहा वो तो बरी हो चुके है..उस औरत को लगा की वो मजाक कर रहे है। जब वो औरत आगे जाती है तो उसको पुलिस वाला मिलता है और कहता है की आपके बच्चे दो दिन पहले ही बरी हो गए है।
वह औरत फिर बाबा मुराद शाह जी के पास जाती है बाबा जी उस औरत को अपनी माँ की तरह समझते थे। वह हर रोज़ डेरे पर आती और बाबा जी के लिए चाय लेकर आती तथा उनके गंदे कपड़े ले जाती और फिर कपडे साफ़ करके वापिस दे जाती।
एक दिन बाबा जी ने कहा हम तेरे बेटे को इंग्लैंड भेज दे। उस औरत ने कहा बाबा जी हम तो बहुत गरीब लोग है हम कैसे जा सकते है ?
तब बाबा जी ने कहा मैंने आपको माँ कहा है अपने बेटों को कहो दिल्ली में जाकर एक आदमी से मिलो और वो बाहर चले जाएंगे। उस औरत के दोनों बेटे दिल्ली जाकर उस आदमी से मिलते है और फिर कुछ समय बाद इंग्लैंड चले जाते है।
ऐसे ही समय निकलता जाता है बाबा मुराद शाह जी हमेशा नंगे पाँव चलते थे। बाबा शेर-ए-शाह जी ने इन्हे कहा था जिस दिन तेरे पैरों में काँटा चुभेगा समझ लेना में इस दुनिया से चला गया हूँ।
एक दिन चलते चलते रस्ते में बाबा मुराद शाह जी के पाँव में काँटा चुभ गया। बाबा मुराद शाह जी से अपने गुरु का विछोड़ा सहन नहीं हो रहा था और वो भी जल्द ही 28 साल की उम्र में ही दुनिया छोड़ गए।
बाबा मुराद शाह जी ने 24 साल की उम्र में फकीरी शुरू की और 28 साल की उम्र में ही दुनिया छोड़कर चले गए।
बाबा मुराद शाह जी मंत्र
जय साई दी
जय साईया दी
जय लाडी साई
Dera baba murad shah nakodar | डेरा बाबा मुराद शाह नकोदर
नकोदर पीरों फकीरों की धरती हैं। नकोदर में स्थित बाबा मुराद शाह जी का डेरा एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। मुराद शाह डेरे में बाबा मुराद शाह की जी की दरगाह है । कह साईं गुलाम शाह जी बाबा मुराद शाह जी के पास अक्सर आते रहते थे और उनसे पीरों फकीरों की कथाएं सुनते थे कुछ समय बाद बाबा मुराद शाह जी इस दुनिया को अलविदा कह गए उसके बाद साई लाडी शाह जी को गद्दी नशीन बना दिया गया ते हैं कोई भी इस दरगाह में माथा टेकने आता है तो सबकी मुरादें को पूरी हो जाती है। मौजूदा समय में इस दरगाह के गद्दीनशीन पंजाब के प्रसिद्ध गायक गुरदास मान जी हैं। वही इस डेरे को पूरी मैनेजमेंट और तकनीक के साथ संभालते हैं।
साल में दो बार बाबा मुराद शाह में मेला लगता है। मेले में बड़े-बड़े सूफी गायक यहां पर बुलाई जाते हैं जो कव्वालियां और सेमी रिलीजियस सॉन्ग गाते हैं। मेले के दिनों में यहां पर बहुत ज्यादा भीड़ होती है । उन दिनों सुबह से रात तक यहां पर माथा टेकने वालों का तांता लगा रहता है ।
हर वीरवार को यहां पर इतनी भीड़ होती है कि दूर-दूर से देश-विदेशो से हर तरह के लोग यहां पर माथा टेकने आते हैं।
बाबा मुराद शाह जी का डेरा सूफी डेरा है। या डेरा जालंधर के नकोदर शहर में स्थित है। बाबा मुराद शाह जी बाबा शेरे शाह के शिष्य बन गए थे। शेरे शाह जी बाबा मुराद शाह जी के गुरु थे वह ज्यादातर एकांत में रहना पसंद करते थे और वारिस शाह की लिखी हुई किताबे ही पढ़ते थे।
बाबा मुराद शाह जी 24 साल की उम्र में ही फकीरी शहंशाह बन गए थे। वह 28 साल में उन्होंने फकीरी भेष धारण कर अपने गुरु के साथ ही रहने लगे थे।
कैसे पहुंचे मुराद शाह डेरे में-
इंटरनेट खोज:
डेरा बाबा मुराद शाह के बारे में अधिक जानकारी और संपर्क विवरण ढूंढने के लिए आप इंटरनेट का सहारा ले सकते हैं। उनकी वेबसाइट, सामाजिक मीडिया पेज या अन्य ऑनलाइन स्रोतों पर विवरण मौजूद हो सकते हैं।
बाबा मुराद शाह साइट पर जाने के लिए दिए हुए क्लिक करें – https://babamuradshah.com/
baba murad shah location
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संपर्क सूची:
यदि डेरा का कोई संपर्क सूची उपलब्ध हो, तो आप उसे देख सकते हैं और डेरा में संपर्क करने के लिए दिए गए विवरणों का उपयोग कर सकते हैं।
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