पूरण सतगुरु ब्रह्म स्वरूप । महिमा जिनकी अगम अनूप ।। 1 ।।
पारब्रह्म गुरु सुख की खान । पर उपकारी पुरुष महान ।। 2 ।।
गुरु की महिमा अगम अपार । वेद न पावें पारावर ॥ 3 ॥
गुरु समरथ गुरु कर्णधार ।जन जन का करते निस्तार ॥ 4 ॥
वचन गुरु के अमृत वाणी । सुनत आनन्द रस पावे प्राणी ॥ 5 ॥
गुरु का वचन मेटे अज्ञान । बख़्शे नाम रतन धन खान ॥ 6 ॥
सार शब्द गुरु का उपदेश । मन अन्तर के मिटें क्लेश ॥ 7 ॥
जीव ब्रह्म का भेद बतावें । सुरत शब्द का मेल करावें ॥ 8 ॥
गुरु मूरत का करिये ध्यान । गुरु ऊपर जाइये कुर्बान ॥ 9 ॥
सब तीरथ गुरु चरणन माहीं । चरण परस कलिमल धुल जाहीं ॥ 10 ॥
गुरु के चरण राखे उर धार । हिरदै माहिं होये उजियार ॥ 11 ॥
भाग बड़े गुरु दर्शन पाये । जन्म मरण के त्रास मिटाये ॥ 12 ॥
जो गुरु सेवा में चित्त लावे | कलह क्लेश सभी मिट जावे ॥ 13 ॥
गुरु की सेवा सब सुख खान । सेवक पावे दरगह मान ॥ 14 ॥
गुरु आज्ञा में रहे जो कोई । तिस सेवक को दूख न होई ॥ 15 ॥
जप तप संयम करे अनेक । गुरु बिन कबहुँ न होये विवेक ।। 16 ।।
गुरु गोबिन्द एको कर जान । गुरु सम दूजा और न मान ॥ 17 ॥
जिस पर होयें गुरु दयाल । भक्ति धन से करें निहाल ॥ 18 ॥
परमहंस सतगुरु अवतार । चरण कमल पे सद बलिहार ॥ 19 ॥
‘दासनदास’ की एह अरदास । राखो चरण कमल के पास ॥ 20 ॥
।। बोलो जयकारा बोल मेरे श्री गुरु महाराज की जय ॥