कविता- पावन करता है रूह को
पावन करता है रूह को सत्पुरुषों का सत्संग।
बना ले इसको अपने जीवन का ज़रूरी अंग ।
कर दर्पण साफ मन का चढ़ा के प्रेम का ।
सतगुरु से सीख ले जीवन को जीने का ढंग ।
2. इक पल साधु के संग से पूर्ण हुए सब काज
पाप जन्मों के धुल गए हैरत में पड़ा धर्मराज ।
हो जाए किरपा जिस पर समझे वही यह राज ।
चरणों में जो गिर गया बन गुरु का मुहताज ।
3. लोहे को सोना कर देना है यह पारस का काम ।
संत बताकर युक्ति जीव को कर लें आप समान ।
देखा नहीं कोई दुनिया में इन जैसा दयावान ।
रख के हाथ दया का करते सबका कल्याण ।
4. अज्ञान अविद्या ममता का सत्संग में हो नाश ।
सत्संग से हों दूर बलाएं मिले चरणों में वास ।
पूजन आराधन व बंदगी करता जो हर स्वांस ।
मालिक के सिवा न रहती उसको कोई आस ।
5. सत्पुरुषों के संग में मिलता प्रेमाभक्ति का दान ।
माया का असर मिट जाए व रूह पावे विश्राम ।
संतों के जो समझे इशारे सँवरें उसके सब काम ।
दुःख हो जाएं काफूर उसे सुख का मिले मुकाम ।