नेक कमाई

नेक कमाई की ताकत

नेक कमाई

एक दिन आपने श्री वचन फ़रमाये कि नेक कमाई बहुत फलती-फूलती है। एक कथा है कि मारवाड़ के किसी गाँव में एक पठान और एक ब्राह्मण आपस में अच्छे मित्र थे।

खर्च आदि की तंगी से दुःखी होकर रोज़गार की खोज में दोनों ही दिल्ली चले गये। पठान ने तो शाही बावरचीख़ाने (राजकीय भोजनालय) में नौकरी कर ली

जहाँ तनख्वाह के अलावा कई प्रकार के बढ़िया पदार्थ खाने को मिलते थे।

इसके अलावा कुछ ऊपर से भी पुरस्कार आदि के रूप में आमदनी हो जाती थी। इसलिये वह पठान थोड़े ही समय में खूब मोटाताज़ा भी हो गया और उसने कुछ धन भी जोड़ लिया।

ब्राह्मण बेचारा किसी धर्मात्मा मंत्री के यहाँ भोजन पकाने की नौकरी पर लग गया। मंत्री महोदय कुछ दस्तकारी करते थे और उससे जो कुछ कमाते, उस पर ही उनकी रसोई चलती थी।

इस वजह से उनकी रसोई में सिर्फ़ एक तरह की ही दाल-रोटी बना करती थी। ब्राह्मण को तनख्वाह भी हर महीने नहीं मिल पाती थी और भोजन भी स्वास्थ्यप्रद नहीं था। इसलिये वह दुबला-पतला हो गया।

 जब कभी दोनों मित्र आपस में मिलते, तो पठान उस ब्राह्मण से मज़ाक करता कि तुमने कैसे कंजूस के यहाँ नौकरी कर ली है, क्या तुम्हें और कहीं अच्छी जगह पर नौकरी नहीं मिलती?

यह सुनकर ब्राह्मण चुप हो जाता। लेकिन अपने दिल में वह ब्राह्मण उस धर्मात्मा मंत्री की नौकरी में कुछ ऐसी शान्ति का अनुभव करता था जो उसे सन्तुष्ट बनाये रखती थी।

नेक कमाई में बहुत ताकत है

पठान ने जब खूब धन एकत्र कर लिया, तो वहाँ से छुट्टी लेकर अपने घर जाने का विचार किया। जाने का दिन : पक्का करके उसने ब्राह्मण को भी खबर दे दी कि अगर तुम्हारा विचार हो, तो मेरे साथ चलो।

जब चलने का दिन आया, तो ब्राह्मण ने मंत्री महोदय से विनती की कि हुजूर! मेरा एक मित्र घर जा रहा है, यदि आज्ञा हो, तो बच्चों के लिये कुछ भेज दूं।

मंत्री ने अपनी जेब में हाथ डाला, तो संयोग से दो ही पैसे मिले। उसने वही दो पैसे निकालकर ब्राह्मण को दे दिये। बेचारा गरीब ब्राह्मण मालिक से क्या कह सकता था!

‘कहरे-दरवेश बर जान दरवेश’ अर्थात् फ़क़ीर का गुस्सा अपनी जान पर ही होता है। वह ब्राह्मण भी अपना गुस्सा और किस पर निकालता? दो पैसे लेकर चुप हो रहा।

फिर सोचा कि जाकर मित्र से मिल तो लूँ। बाज़ार से गुज़र रहा था कि अनार बिकते दिखायी पड़े। दिल में ख़्याल आया कि मारवाड़ में अनार बिल्कुल नहीं होते, इसलिये यही भेज देने चाहिये।

दो पैसे से 10-12 अनार मिल गये।

वह ले जाकर उसने अपने मित्र को दे दिये और सब किस्सा उसे सुना दिया।

सफ़र करते-करते पठान मारवाड़ पहुँचा, तो किसी बड़े नगर में रात को ठहरा। वहाँ सराय में चोरों ने उसका सब धन-नाल लूट लिया।

अनार एक कपड़े में बँधे हुए झूटी पर टंगे हुए थे, उन पर किसी की नज़र न पड़ी। बेचारा जब सुबह उठा, तो अपना धन-माल न पाकर बहुत दुःखी हुआ कि अब क्या करे और कि – घर पहुँचे?

नेक कमाई के अनार ने ठीक किया सेठ का बेटा

संयोग की बात कि उस नगर के एक बड़े धनवान् सेठ का इकलौता बेटा बहुत बीमार था और किसी भयानक रोग से बहुत पीड़ित था।

हक़ीम ने बतलाया कि अगर इसको अनार के दाने खिलाये जायें, तो इसके जीवन की आशा है, वरना नहीं। सेठ ने नगर में घोषणा करवा दी कि जो व्यक्ति अनार लाकर देगा, उसे बहुत कुछ रुपया और उसका पसंदीदा सामान दिया जायेगा।

इस मौके को ग़नीमत पठान ने समझा और जल्दी-से उसने वे अनार ले जाकर सेठ को दे दिये। जब वे अनार उस लड़के को खिलाये गये, तो मालिक की मौज से वह स्वस्थ हो गया।

उस सेठ ने उन अनारों के बदले में उस पठान को बहुत-सा धन और उसका माँगा हुआ सामान दिया। उन रुपयों में से कुछ रुपये खर्च करते हुए वह पठान अपने घर पहुँचा। जितना धन शेष बचा था, वह सब ब्राह्मण के घरवालों को दे दिया।

मार्ग की तकलीफ़ों और धन के मिलने का सब हाल चिट्ठी में लिखकर दिल्ली में ब्राह्मण के पास भेज दिया और यह भी लिख दिया कि अब तुमको नौकरी करने की ज़रूरत नहीं है। भरपूर धन मिल गया है, घर वापस चले आओ।

ब्राह्मण द्वारा सारी बात मंत्री महोदय को बताना

उस ब्राह्मण ने सारी बात मंत्री महोदय को बतलाकर विनती की कि वे दो पैसे आपने कैसे दिये थे कि जिनके बदले इतना धन प्राप्त हो गया?

उन्होंने उत्तर दिया कि मैं शाही ख़ज़ाने (राजकोष) के रुपये-पैसे को अपने घरेलू उपयोग में बिल्कुल नहीं लाता, अपने मेहनत और दस्तकारी से जो पैसा बनता है, उसी से काम चलाता हूँ।

तुमने बहुत ही ईमानदारी से मेरे यहाँ काम किया था, इसलिये मैं नहीं चाहता था कि शाही ख़ज़ाने से तुमको तनख्वाह दी जाये। सो मैंने अपनी मेहनत की कमाई में से ही दो पैसे दे दिये थे।

लेकिन मैं इस बात को भी जानता था कि ये दो पैसे तुम्हारे पूरे जीवन के लिये पर्याप्त होंगे। अब अगर तुम घर जाना चाहो, तो बहुत ख़ुशी से जा सकते हो।

जब उन मंत्री महोदय से ब्राह्मण विदा लेकर अपने घर पहुँचा, तो पठान ने उन रुपयों के लिये, जो सफ़र में उसने ख़र्च किये थे, माफ़ी माँगी।

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