सावन सोमवार व्रत कथा Sawan Somvar Vrat Katha

सावन सोमवार व्रत कथा

सोमवार का व्रत चैत्र, वैशाख, श्रावण, मार्गशीर्ष, कार्तिक मास में आरम्भ किया जाता है। साधारणतः श्रावण मास में सोमवार व्रत आरम्भ करना चाहिए। व्रत रखनेवाले स्त्री-पुरुष को चाहिए कि सोमवार को प्रातःकाल काले तिल का तेल लगाकर स्नान करे। विधिपूर्वक शिवजी का पूजन करे! ‘मम क्षेमस्थैर्य विजया-रोग्यैश्वर्यावृद्ध्यर्थ सोमव्रतं करिष्ये’ से संकल्प करके शिव पूजन करे।

सावन सोमवार व्रत कथा

‘ओ३म् नमो दश भुजाय त्रिनेत्राय पंचवदनाय शूलिने । श्वेत वृषभारूढाय सर्वौभरण भूषिताय उमदेहार्धस्थाय नमस्तते सर्वभूतये’ से ध्यान करे, अथवा ‘नमः शिवाय’ से शिवजी का ओ३म् नमः शिवायै से उमा-पार्वती जी का, षोडशोपचार पूजन करे।

इन्हीं मन्त्रों का शक्त्यानुसार जप और हवन करे। सोमवार के व्रत को सोलह सोमवार तक करे, फिर उद्यापन करे। इस व्रत के प्रभाव से सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती

है।

सोमवार का व्रत साधारणतया दिन के तीसरे पहर तक होता है। व्रत में फलाहार या पारायण का कोई खास नियम नहीं है किन्तु यह आवश्यक है कि केवल एक ही समय भोजन करना चाहिए। सोमवार के व्रत में भगवान शंकर तथा पार्वतीजी का पूजन करना चाहिए।

सोमवार के व्रत तीन प्रकार के हैं- साधारण प्रति सोमवार, सौम्य प्रदोष और सोलह सोमवार । पूजाविधि तीनों की एक जैसी है। शिव पूजन के पश्चात् कथा सुननी चाहिए। सोमवार, प्रदोषव्रत तथा सोलह सोमवार – तीनों की कथा अलग-अलग है, जो आगे लिखी गयी हैं।

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सोमवार व्रत कथा प्रारम्भ

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एक नगर में एक बहुत धनवान साहूकार रहता था। उसके घर में धन की कमी नहीं थी। परन्तु वह बहुत दुःखी था क्योंकि उसके कोई पुत्र नहीं था । वह इसी चिन्ता में दिन- रात दुःखी रहता था । पुत्र की कामना के लिए वह प्रत्येक सोमवार शिवजी का व्रत और पूजन किया करता था तथा सायंकाल मन्दिर जाकर शिवजी के सामने दीपक जलाया करता था ।

उसके इस भक्तिभाव को देखकर एक समय माता पार्वती ने शिवजी से कहा- “महाराज, यह साहूकार आपका अनन्य भक्त है, सदैव आपका व्रत और पूजन बड़ी श्रद्धा से करता है। आपको इसकी मनोकामना पूर्ण करनी चाहिए।”

शिवजी ने कहा- “हे पार्वती ! यह संसार कर्मक्षेत्र है। किसान खेत में जैसा बीज बोता है वैसी ही फसल काटता है। उसी तरह मनुष्य इस संसार में जैसा कर्म करते हैं वैसा ही फल भोगते हैं।”

माता पार्वती ने अत्यन्त आग्रह से कहा- “महाराज! जब यह आपका अनन्य भक्त है और अगर इसको किसी प्रकार का दुःख है तो उसे आपको अवश्य दूर करना चाहिए। आप तो सदैव अपने भक्तों पर दयालु होते हैं और उनके | दुःखों को दूर करते हैं। यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो मनुष्य आपका पूजन तथा व्रत क्यों करेंगे ?”

माता पार्वती का ऐसा आग्रह देख शिवजी कहने लगे- “हे पार्वती! इसके कोई पुत्र नहीं है इसी चिन्ता में यह अति दुःखी रहता है। इसके भाग्य में पुत्र न होने पर भी मैं इसको पुत्र की प्राप्ति का वर देता हूँ। परन्तु वह पुत्र केवल 12 वर्ष तक जीवित रहेगा। इसके पश्चात् वह मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा। इससे अधिक मैं इसके लिए कुछ नहीं कर सकता।”

माता पार्वती और भगवान् शिव का यह वार्त्तालाप साहूकार सुन रहा था। इससे उसको न तो प्रसन्नता हुई और न ही दुःख हुआ। वह पूर्व की तरह शिवजी का व्रत और पूजन करता रहा।

कुछ समय बाद साहूकार की स्त्री गर्भवती हुई और दसवें महीने उसके गर्भ से अति सुन्दर पुत्र उत्पन्न पुत्र हुआ। साहूकार के घर में बहुत खुशी मनाई गई। परन्तु साहूकार तो यह जानता था कि उसकी केवल बारह वर्ष की आयु है, इसलिए उसने अधिक प्रसन्नता

प्रकट नहीं की और न ही किसी को यह भेद ही बताया।

जब वह बालक ११ वर्ष का हो गया तो बालक की माता ने उसके पिता से उसका विवाह करने के लिए कहा। साहूकार ने कहा- “अभी मैं इसका विवाह नहीं करूंगा। मैं | अपने पुत्र को काशी पढ़ने के लिए भेजूंगा।” साहूकार ने बालक के मामा को बुलाकर उसको बहुत-सा धन देकर कहा- ‘तुम इस बालक को काशी पढ़ने के लिये ले जाओ और रास्ते में जिस स्थान पर भी जाओ यज्ञ करते, ब्राह्मणों को भोजन कराते तथा दक्षिणा देते हुए जाना।”

दोनों मामा-भांजे यज्ञ करते, ब्राह्मणों को भोजन कराते तथा दक्षिणा देते काशी जी की ओर चल पड़े। रास्ते में एक शहर पड़ा। उस शहर में राजा की कन्या का विवाह था। परन्तु जो राजकुमार विवाह कराने के लिए आया था वह एक आँख से काना था।

उसके पिता राजा को इस बात की बड़ी चिन्ता थी कि कहीं राजकुमार को देख राजकुमारी तथा उसके माता-पिता विवाह में किसी प्रकार की अड़चन पैदा न कर दें।

जब उसने सेठ के अति सुन्दर लड़के को देखा तो मन में विचार किया कि क्यों न द्वाराचार के समय इस लड़के से वर का काम चलाया जाये। ऐसा मन में विचार कर राजकुमार के पिता ने उस लड़के और उसके मामा से बात की। वे राजी हो गये।

फिर उस साहूकार के लड़के को वर के कपड़े पहनाकर तथा घोड़ी पर बैठाकर कन्या के द्वार पर ले गये। सभी कार्य प्रसन्नता से पूर्ण हो गया। राजकुमार के पिता ने सोचा कि यदि विवाह कार्य भी इसी लड़के से करा लिया जाए तो क्या बुराई है?

ऐसा विचार कर लड़के और उसके मामा से कहा-यदि आप फेरों और कन्यादान के काम को भी करा दें तो आपकी बड़ी कृपा होगी। मैं इसके बदले आपको बहुत सारा धन दूंगा। दोनों ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया।

विवाह कार्य बहुत अच्छी तरह से सम्पन्न हो गया। सेठ का पुत्र जिस समय जाने लगा तो उसने राजकुमारी की चुन्दड़ी के पल्ले पर लिख दिया- तेरा विवाह मेरे साथ हुआ परन्तु जिस राजकुमार के साथ तुमको भेजेंगे वह एक आँख से काना है। मैं काशी जी पढ़ने जा रहा हूँ।”

सेठ के लड़के के जाने के पश्चात् राजकुमारी ने जब अपनी चुंदड़ी पर ऐसा लिखा हुआ पाया तो उसने काने राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया। उसने अपने माता- पिता को सारी बात बता दी और कहा कि यह मेरा पति नहीं है। मेरा विवाह इसके साथ नहीं हुआ। जिसके साथ मेरा विवाह हुआ है वह तो काशी पढ़ने गया है। राजकुमारी के

माता-पिता ने अपनी कन्या को विदा नहीं किया और बारात वापस चली गयी।

उधर सेठ का लड़का और उसका मामा काशी पहुँच गए। वहाँ जाकर उन्होंने यज्ञ करना और लड़के ने पढ़ना शुरू कर दिया। जब लड़के की आयु बारह साल की हो गई, उस दिन उन्होंने यज्ञ रचा रखा था।

लड़के ने अपने मामा से कहा-“मामाजी, आज मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं है।” मामा ने कहा- “अन्दर जाकर सो जाओ।” लड़का अन्दर जाकर सो गया और थोड़ी देर में उसके प्राण निकल गए। जब उसके मामा ने आकर देखा कि उसका भानजा मृत पड़ा है तो उसको बड़ा दुःख हुआ।

उसने सोचा कि अगर मैं अभी रोना पीटना मचा दूंगा तो यज्ञ का कार्य अधूरा रह जाएगा। अतः उसने जल्दी से यज्ञ का कार्य समाप्त करवाकर ब्राह्मणों के जाने के बाद रोना-पीटना शुरू कर दिया। संयोगवश उसी समय शिव-पार्वती उधर से जा रहे थे।

जब उन्होंने जोर-जोर से रोने की आवाज सुनी तो पार्वती जी कहने लगीं- “महाराज! कोई दुखिया रो रहा है इसके कष्ट को दूर कीजिए। “जब शिव-पार्वती वहाँ पहुँचे तो उन्होंने पाया कि वहाँ एक लड़का मृत पड़ा था।

माता पार्वती कहने लगीं- ‘महाराज यह तो उसी सेठ का लड़का है जो आपके वरदान से उत्पन्न हुआ था।’ शिवजी ने कहा-‘हे पार्वती! इसकी आयु इतनी ही थी वह यह भोग चुका।

“तब पार्वती जी ने कहा- “हे महाराजा इस बालक को और आयु दो नहीं तो इसके माता पिता तड़प-तड़पकर मर जाएँगे।” माता पार्वती के बार-बार आग्रह करने पर शिवजी ने उसको जीवन का वरदान दिया। शिवजी की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया। शिवजी और पार्वती कैलाश पर्वत को चले गए।

शिक्षा पूर्ण होने पर वह लड़का और उसका मामा, उसी प्रकार यज्ञ करते, ब्राह्मणों को भोजन कराते तथा दक्षिणा देते अपने घर की ओर चल पड़े। रास्ते में उसी शहर में आए।

जहाँ उस लड़के का वहाँ की राजकुमारी से विवाह हुआ था। वहाँ आकर उन्होंने यज्ञ आरम्भ कर दिया। उस लड़के के श्वसुर वहाँ के राजा ने उसको पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी बहुत आवभगत की। बहुत से दास-दासियों सहित आदरपूर्वक अपनी राजकुमारी और जमाई को विदा किया।

जब वे अपने शहर के निकट आए तो मामा ने कहा कि मैं पहले तुम्हारे घर जाकर तुम्हारे माता-पिता को खबर कर आता हूँ।

जब उस लड़के का मामा घर पहुँचा तो उसने देखा कि लड़के के माता-पिता घर की छत पर बैठे थे। उन्होंने यह प्रण कर रखा था कि यदि हमारा पुत्र सकुशल लौट आया तो हम राजी-खुशी नीचे आ जाएँगे, नहीं तो छत से गिरकर अपने प्राण दे देंगे।

उस लड़के के मामा ने आकर जब यह समाचार दिया कि आपका पुत्र आ गया है तब उनको विश्वास नहीं आया। उसके मामा ने शपथपूर्वक कहा कि आपका पुत्र अपनी पत्नी तथा बहुत सारा धन साथ लेकर आया है तो सेठ प्रसन्नता से भर उठा।

सेठ-सेठानी आनन्दपूर्वक नीचे आए। बाहर आकर उन्होंने अपने पुत्र तथा उसकी पत्नी का भरपूर स्वागत किया। सभी प्रसन्नता के साथ रहने लगे।

जो कोई सोमवार के व्रत को धारण करता है अथवा इस कथा को पढ़ता या सुनता है उसके सब दुख दूर होकर उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं तथा इस लोक में नाना प्रकार के सुख भोगकर अन्त में सदाशिव के लोक को प्राप्त होता है।

सावन सोमवार व्रत कथा पीडीएफ (sawan somvar vrat katha PDF)

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