विनती – श्री नंगली साहिब

औगनहार की बेनती सुनो ग़रीब निवाज़।

जे मैं पूत कपूत हूं बहुड़ पिता को लाज ।।

नहीं विद्या नहीं बाहु बल नहीं ख़रचन को दाम ।

‘तुलसी’ मो सम पतित की पत राखो श्री राम ।।

अवसर राखी द्रौपदा संकट ज्यों प्रह्लाद ।

कहन सुनन की कछु नहीं शरण पड़े की लाज ।।

गुरु जी को सिर पर राखिये चलिए आज्ञा माहिं ।

कहे ‘कबीर’ तिस दास को तीन लोक डर नाहिं । ।

जे मैं भुल बिगाड़िया न कर मैला चित्त ।

साहिब गोरा लोड़िए नफर बिगाड़े नित्त ।

आशावन्ती दर खड़ी साहिब न ढोई दे।

भी दरबार न छोड़सां मत शौह मेहर करे ।

गुरु समरथ सिर पर खड़े क्या कमी तोहे दास ।

ऋद्धि-सिद्धि सेवा करे मुक्ति न छोड़े पास ।।

क्या मुख ले विनती करूं लाज आवत है मोहे।

तुम देखत अवगुण करूं कैसे भाऊं तोहे ।।

गुरु गोविन्द दोनों खड़े किसके लागू पाय ।

बलिहारी सत्गुरु अपने जिन मार्ग दिया लखाए ।

गुरां जी को कीजिए दण्डवत् कोटि-कोटि प्रणाम ।

कीट न जाने भृंग को गुरु कर ले आप समान ।।

लेखे गिनत न छूटिए छिन छिन भूलनहार ।

बख़्शनहारा बख़्श लै ‘नानक’ पार उतार ।।

सत्गुरु नाम जहाज़ है चढ़े सो उतरे पार ।

जो श्रद्धा कर सेंवदे सत्गुरु पार उतारन हार ।।

श्री गुरु महाराज की महिमा मो से कहीं न जाये।

महाबली अवतार हैं जल थल रहयो समाये ॥

सत्गुरु मेरा सूरमा करे शब्द की चोट ।

मारे गोला प्रेम का ढाये भ्रम का कोट ।।

फिरत-फिरत प्रभु आयों पड़यो तोहे शरणाए ।

‘नानक’ की प्रभु बेनती अपनी भक्ति लाए।।

भक्ति-दान मोहे दीजिए गुरु देवन के देव ।

और कछु न चाहिए निसदिन तुमरी सेव ।।

गुरु मूर्ति गति चन्द्रमा सेवक नैन चकोर ।

अष्ट पहर निरखत रहूं गुरु मूर्ति की ओर।

पारब्रह्म परमेश्वर पूर्ण सच्चिदानन्द ।

नमस्कार प्रभु आपको सब संतन के अंग संग ।।

मात-पिता सत्गुरु मेरे मैं शरण जाऊं जिसकी ।

गुरु बिन और न दूसरा मैं आस करूं किसकी ।।

जैकारा निस्तारा धर्म का द्वारा झूलेगी ध्वजा बजेगा नगारा ।

सुनकर बोले सो निर्भय, बोल मेरे श्री गुरु महाराज की जै ।।

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