भगवान बुद्ध के आशीर्वाद का फल

बुद्ध के आशीर्वाद का फल

गौतम बुद्ध मगध राज्य के एक गांव में ठहरे हुए थे। वहीं सुदास नाम का एक मोची रहता था जिसकी झोपड़ी के पीछे एक पोखर था। एक सुबह सुदास अपने पोखर से पानी लेने गया तो देखा कि वहां कमल का एक बेहद खूबसूरत फूल बेमौसम खिला हुआ था।

उसने अपनी पत्नी को पुकारा, ‘देखो, रात तक पोखर में कहीं एक कली भी न थी, सुबह इतना सुंदर कमल खिला हुआ है।’ सुदास की पत्नी धर्मपरायण थी। उसने सुदास से कहा- ‘हो न हो,बुद्ध जरूर तालाब के निकट से गुजरे होंगे।’

फूल देखकर सुदास ने सोचा कि वह इसे राजा प्रसेनिजत को देगा। इससे उसे मुंह मांगा मूल्य भी मिल जाएगा। सुदास उसे लेकर राजमहल गया। वहां जाते वक्त राजपथ पर उसे एक और सज्जन मिल गए, जिन्होंने एक माशा स्वर्ण देकर वह फूल खरीद लिया।

ठीक उसी वक्त राजा प्रसेनिजत भगवान बुद्ध के दर्शन के लिए जा रहे थे। उन्होंने फूल देखकर उसका मूल्य पूछ तो सुदास ने बताया कि वह तो उसे एक माशा स्वर्ण में पहले ही बेच चुका है। राजा ने कहा कि वह इस फूल के लिए दस माशा स्वर्ण देने के लिए तैयार हैं।

थोड़ी ही देर में फूल का मूल्य दस से बीस माशा हो गया। जब राजा ने फूल का मूल्य चालीस माशा स्वर्ण देने की बात कही, सुदास ने दोनों से क्षमा मांगते हुए फूल वापस ले लिया और एक माशा स्वर्ण उन सज्जन को वापस कर दिया। फिर वह फूल लेकर खुद महात्मा बुद्ध के पास गया और उसे उनके चरणों में अर्पित कर दिया।

बुद्ध ने सुदास से पूछा, ‘क्या चाहते हो?” सुदास बोला, ‘भगवन, पुष्प के बदले में लालच तो बहुत मिला, लेकिन असल कामना मुझे आपके आशीर्वाद की ही है। मैं आपके आशीर्वाद की सुफल समझ गया हूं।

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