बूझो तो जाने

बूझो तो जाने – दोहा

सांझ पड़ी दिन ढल गया, बाघन घेरी गाय ।

गाय बिचारी न मरै, बाघ न भूखा जाय ॥ (कबीर वाणी)

भावार्थ – वृद्धावस्था-रूपी सांझ आते ही जीवनरूपी सूर्य ढलने लगा तो काल रूपी बाघ सिर पर आ खड़ा हुआ और जीवन-रूपी गाय को घेर कर उसका शिकार कर गया । इस प्रकार आत्मा रूपी गाय अविनाशी होने से न मरी और बाघ को भी प्राण रूपी आहार मिल जाने से वह भूखा नहीं रहा ।

सोचिए, इस संसार क्षेत्र में जीवन और मृत्यु का खेल कितना आश्चर्यजनक है। इस आश्चर्य लीला का पात्र अज्ञानी जीव सदा से बना है और इसी चक्र में भटक रहा है। गुरुज्ञान से अज्ञानी जीव का अज्ञान दूर हो तो ही जीवन्मुक्ति संभव है।

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