swami vivekanand ji
महान विचारक और नोबल पुरस्कार विजेता श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने कहा था “आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानन्द जी का अध्ययन कीजिए। उनमें सब कुछ सकारात्मक है, नकरात्मक कुछ भी नहीं।”
swami vivekanand ji ka bachpan
बचपन- स्वामी विवेकानन्द का जन्म कोलकाता में पिता विश्वनाथ दस और माता भुवनेश्वरी देवी के घर सोमवार, 12 जनवरी 1863 (पौष कृष्ण सप्तमी, विक्रम सम्वत 1991. युगाब्द 4965) मकर सक्रान्ति के दिन हुआ था।
विश्वनाथ दन उच्च न्यायालय में अटॉनी-एट-लॉ थे। वे एक विचारक, अति उदार, गरीबों के प्रति सहानुभूति रखने वाले धार्मिक व सामाजिक विषयों में व्यावहारिक और रचनात्मक दृष्टिकोण रखने वाले व्यक्ति थे। माता सरल व अत्यन्त धार्मिक स्वभाव की महिला थी।
नरेन्द्रनाथ दत्त उत्साही, तेजस्वी बालक था, जिसे बचपन से ही संगीत खेल-कूद और मैदानी गतिविधियों में रूचि थी। उनके माता उन्हें रामायण, महाभारत की कहानिया सुनाते , जो उनके मन पर अमिट छाप छोड़ जाती थीं।
उत्साह, गरीबों के प्रति दया परिव्राजक संन्यासी का आकर्षण आदि उनके जन्मजात लक्षण थे। बचपन से ही नरेन्द्र नाथ सभी प्रश्नों का सन्तोषजनक उत्तर मांगते थे।
एक बार एक वृद्ध ने उनसे कहा, ‘इस पेड़ पर मत चढ़ो। यदि ऐसा करोगे तो पेड़ पर बैठा भूत तुम्हें खा जायेगा। यह देखने के लिए नरेन्द्रनाथ पूरी शाम उस पेड़ पर बैठा रहा कि क्या सचमुच में वहां भूत है?
जब वह केवल चौदह वर्ष के थे तो दत्त परिवार को कुछ वर्षों के लिए रायपुर में रहना पड़ा, जहां आसपास कोई विद्यालय नहीं था किशोर नरेन्द्रनाथ को अपने माता पिता को प्रकृति के साथ रहने का पर्याप्त समय मिला।
किसी पड़ोसी के उकसाने पर नरेन्द्रनाथ ने अपने पिता से पूछा, मेरे लिए आपने क्या सम्पत्ति रखी है? पिता उसे दर्पण के सामने ले गये और कहा, “तुम स्वयं देखो, सुगठित शरीर तेजस्वी आँखें, निडर मन और पैनी-बुद्धि-क्या यह मेरी दो हुई सम्पत्ति नहीं है?
बचपन से ही इस तरह के संस्कारों ने नरेन्द्रनाथ को युवावस्था तक पहुँचाया था। युवक नरेन्द्रनाथ ने दर्शन, संगीत और व्यायाम में अपनी पहचान बना ली। महाविद्यालय में पाश्चात्य विचारधारा के अध्ययन ने उनके मन में तर्क करने का स्वभाव वाला बना दिया।
एक ओर तो उनमें जन्मजात अध्यात्म की प्रवृत्ति और धार्मिक परम्पराओं में विश्वास एवं सम्मान था तो दूसरी ओर तर्फ करने के स्वभाव के साथ कुशाग्र प्रतिभा। इन दोनों का संघर्ष मात्र होने के कारण उनकी विज्ञासा का समाधान उन्हें रामकृष्ण परमहंस से हुआ तथा उनका दर्श करने से नरेन्द्रनाथ से वे स्वामी विवेकानन्द बन गये ।
swami vivekanand ke vachan
स्वामी विवेकानंद ने कहा –
- जब तक तुम स्वयं अपने में विश्वास नहीं करते. परमात्मा में तुम विश्वास नहीं कर सकते।
- धर्म वह वस्तु है, जिससे पशु मनुष्य तक और
- मनुष्य परमात्मा तक उठ सकता है।
- स्वामीजी ने अमेरिका में कहा- जो देश अपनी सभ्यता पर इतना अहंकार करता है, उसमें प्रत्याशित आध्यात्मिकता कहाँ है।
- अगर स्वाद की इन्द्रिय को ढील दी, तो सभी इन्द्रियाँ बेलगाम दौड़ेंगी।
- ज्ञान, भक्ति, योग और कर्म ये चार मार्ग मुक्ति की ओर ले जानेवाले हैं। हर एक को उस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जिसके लिए वह योग्य है, लेकिन इस युग में कर्मयोग पर विशेष बल देना चाहिए।
- धर्म कल्पना की चीज नहीं, प्रत्यक्ष दर्शन की चीज है। जिसने एक भी महान् आत्मा के दर्शन कर लिये वह अनेक पुस्तकी पण्डितों से बढ़कर है।
- जब तक भौतिकता नहीं जाती, तब तक आध्यात्मिकता तक नहीं पहुंचा जा सकता।
- हम हमेशा अपनी कमजोरी को शक्ति बताने की कोशिश करते हैं, अपनी भावुकता को प्रेम कहते हैं अपनी कायरता को धैर्य, इत्यादि।
- जब अहंकार, दुर्बलता आदि देखो, तो अपनी आत्मा से कहो: यह तुम्हें शोभा नहीं देता। यह तुम्हारे योग्य नहीं।
- हर एक में परमात्मा है, बाकी सब तो सपना है, छलना है।
- कोई भी मत जो तुम्हे ईश्वर प्राप्ति में सहायता देता है, अच्छा धर्म ईश्वर को प्राप्ति है।
- मनुष्य पशुता, मनुष्यता और देवत्व का मिश्रण है।
- सामाजिक प्रगति शब्द का उतना ही अर्थ है, जितना गर्म बर्फ या अँधेरा प्रकाश।अन्ततः सामाजिक प्रगति जैसी कोई चीज नहीं।
- वस्तुएँ अधिक अच्छी नहीं बनतीं, हम उनमें परिवर्तन करके अधिक अच्छे बनते हैं
- मैं सत्य के लिए हूँ। सत्य मिथ्या के साथ कभी मैत्री नहीं कर सकता। चाहे सारी दुनिया मेरे विरुद्ध हो जाए, अन्त में सत्य ही जीतेगा।
- सुख आदमी के सामने आता है, तो दुःख का मुकुट पहनकर तो उसका स्वागत करना चाहिए।