Shri Guru Mahima lyrics -श्री आनंदपुर की आनंदमयी श्री गुरु महिमा

Shri Guru Mahima lyricsश्री गुरु महिमा

॥ श्लोक ॥

साकार रूपं परमात्मनः हे

आत्मस्थितं तत् तव दर्शनं श्रीः ।

आनन्दसिन्धौ स्मरणं त्वदीशः

मधुरोपदेशं शं ते दयालोः ॥

चरणारविन्दे कोटिः प्रणामः

बद्धाञ्जलिभ्यो इव प्रार्थनैषा ।

वरदायकः यत् हस्तः त्वदीयः

शिरसा सदैव दृष्टि: कृपालोः ॥

अर्थात् हे श्री परमहंस दयाल जी महाराज! आप निराकार परमात्मा के साकार स्वरूप हैं। आपके पावन दर्शन करने से जीव आत्मस्थित हो जाता है, (आपके) स्मरणमात्र से मन आनन्द के महासागर में हिलोरें लेने लगता है, (आपके) मधुर उपदेश पर आचरण करने से आत्मकल्याण होता है।

आपके परम पुनीत चरणारविन्दों में कोटि-कोटि साष्टांग दण्डवत् प्रणाम करके करबद्ध यह प्रार्थना है कि हे दीनबन्धो! आपका वरद हस्त दीन के शीश पर रहे और आप मुझ दास पर अपनी कृपादृष्टि सदैव बनाये रखें।

श्री

॥ दोहा ॥।

परमहंस गुरुदेव जी, निराकार साकार ।

जिनकी पद नख ज्योति से आलोकित संसार ।।

परम पुरुष पूरण धनी, आनन्द घन सुख रूप ।

सर्वारम्भ में पूजिये, पावन चरण अनूप ॥

॥ चौपाई ॥

सतगुरु सच्चिदानन्द स्वामी। अगम अगोचर पुरुष अनामी ॥

परम दयालु महा उपकारी । त्रिगुणातीत जगत हितकारी ॥

पूरब पुन्न फलें समुदाई । सतगुरु मिलें परम सुखदाई ॥

सतगुरु शरणी जो भी आये | प्रेम भाव से शीश झुकाये ॥

जीव को भक्ति पथ दर्शाते। किरपा कर सुख रूप बनाते ।।

देकर सत्य नाम की दीक्षा। सुमिरण की फिर देते शिक्षा॥

सुरत को अन्तर्मुखी बनाते ।भक्ति प्रेम की ज्योत जगाते ॥

मिट जाये मन का अंधियारा ।घट भीतर हो तब उजियारा ॥

॥ दोहा ॥

तम अज्ञान मिटाये कर, दीन्हा आतम ज्ञान ।

सत मारग दिखलाइया,सतगुरु परम सुजान ॥

॥ चौपाई ॥

गुरु की आज्ञा धुर से आई ।जो है बहुत अमोलक भाई॥

गुरु की आज्ञा मानै जोई । ताको विघन न लागै कोई ॥

गुरु की आज्ञा फँद छुड़ावै ।मानुष मुक्त रूप बन जावै ।।

हित चित्त से जो धारै कोई । गुरु प्रसन्नता पावै सोई ॥

सतगुरु वचन से उपजै ज्ञाना । बीसों-बिसवे हो कल्याना ॥

यम की चाल चलै नहिं कोई ।शरणागत जो गुरु का होई ॥

गुरु की ओट सदा उर धारी । रक्षा करते बन महतारी ॥

गुरु सम दूजा को हितकारी । शरण पड़े की विपदा टारी ॥

॥ दोहा ॥

ऐसे सतगुरुदेव पर, जाइये सद बलिहार ।

पल पल क्षण क्षण गाइये,सतगुरु के उपकार ॥

॥ चौपाई ॥

सतगुरु ऐसा कर्म कमायें ।बन पारस निज रूप बनायें ॥

भीतर के सब मेटें दोषा । सहजे पाये चित्त सन्तोषा ॥

गुरु पद रज जो मस्तक लाये ।सोया अपना भाग्य जगाये॥

चरणामृत नित पान जो करता । काल का उस पर वश न चलता ॥

सत्य धरम की रीति सिखाते । निःस्वारथ हित प्रीति बढ़ाते ॥

मधुर वचन अमृत बरसायें । जीव हृदय मरु को सरसायें ॥

सतगुरु जी ने कीन्ही दाया ।निज भक्तन को आन जगाया ॥

करने जीवों का निस्तारा । भक्ति मुक्ति का खोला द्वारा ॥

दोहा ॥

श्री आनन्दपुर की धरा,तीरथ धाम बनाय ।

सतसंग सेवा नाम का,डंका दिया बजाय ॥

॥ चौपाई ॥

भक्ति पथ दर्शावन हेतू ।प्रकटाया जो भव का सेतू ॥

विश्व शान्ति का केन्द्र बनाया । भक्ति प्रेम का पंथ चलाया ॥

तीर्थ महान जगत विख्याता । श्री सतगुरु इसके निर्माता ॥

फहराई निज धवल पताका । दसों दिशा फैला यश जाका ।।

अड़सठ तीरथ गुरु के चरणी ।जाकी महिमा जाय न वरणी ॥

भक्ति की यहाँ सुरसरि धारा ।आतम आनन्द ब्रह्म विचारा ॥

गुरु तीरथ जो मज्जन करता ।तन मन पावन उसका बनता ॥

भव तरने का साधन दीन्हा ।भक्ती मार्ग सुगम अति कीन्हा ॥

॥ दोहा ॥

श्री आरती-पूजा, सत्संग, सेवा,सुमिरण और ध्यान ।

श्रद्धा सहित सेवन करे, निश्चय हो कल्याण ॥

॥ चौपाई ॥

श्रद्धा सहित श्री आरती पूजन ।प्रातः सायं करे नित वन्दन ॥

शाश्वत आनन्द शान्ति पाये । निश्चय सुख में रहे समाये ॥

बड़भागी सतसंग में आये । हंस गति सोइ सहजे पाये ॥

सतसंगति फल अति शुभ मूला । गुरुमुख नहिं लागे भव शूला ॥

गुरु सेवा अहंकार मिटावै । सेवक – पद कोई जन पावै ॥

कर निष्काम भाव दृढ़ सेवा । पाइये चार पदारथ’ मेवा ॥

स्वाँसों की वीणा पर साजै । मधुर नाम की सरगम बाजै ॥

सुरत शब्द के संग मिलावे । आतम रस को गुरुमुख पावै ॥

॥ दोहा ॥

सतगुरु के चरणार से, जोड़ सुरत की डोर |

पल पल ध्यान लगाइये, जैसे चन्द्र चकोर ॥

॥ चौपाई ॥

जाके मस्तक लिखे विधाना । भेटहिं सतगुरु कृपानिधाना ॥

गुरु दर्शन फल गुरुमुख पावै । सहजे आतम रूप लखावै ॥

सतगुरू मिलन वसंत समाना । अति आनन्द, न जाये बखाना ।।

मन मन्दिर में गुरु को बसाओ ।तिलक पुष्प और हार चढ़ाओ ॥

सतगुरु को पुनि चँवर झुलाओ । श्रद्धा से नित शीश झुकाओ ॥

भक्ति प्रेम के दीप जगाओ । घट में परम प्रकाश फैलाओ ॥

सतगुरु को नित भोग लगाओ । सीत प्रसाद’ स्नेह हित पाओ ॥

प्रेम सहित मिल महिमा गाओ । गुरु पूजा कर भाग मनाओ ॥

॥ दोहा ॥

सात द्वीप नौ खंड में, सतगुरु सम नहिं देव ।

जिनकी किरपा से मिले, परमारथ का भेव।।

॥ चौपाई ॥

दिव्य स्वरूप सकल सुखकारी । सतगुरु भक्ति के भंडारी ॥

शीतल शान्त महा वैरागी । संगति पाये परम अनुरागी ॥

सतगुरु सकल ब्रह्मण्ड के स्वामी । रहिये सदा सदा अनुगामी ॥

हिरदय दृढ़ गुरु चरण भरोसा । भक्ति कमाये अति सहरोसा ॥

सेवक मन की मति को त्यागे । गुरु की मति में रहे अनुरागे ॥

तिस पर सतगुरु होयँ दयाला । भक्ती धन से करें निहाला ॥

तिस गुरुमुख के कारज रासा । गुरु चरणन में मिले निवासा ।।

भक्तिमान लागै गुरु प्यारा ।लोक सुखी परलोक सँवारा ।।

॥ दोहा ॥

सतगुरु की महिमा अनन्त,किस विधि गाई जाय ।

अगम अगोचर पारब्रह्म, सन्त रूप धरि आय ॥

॥ चौपाई ॥

सतगुरु सत्य रूप अविनाशी । मंगलकारी सहज सुखराशी ॥

परमारथ पथ के उन्नायक’ । सदा हितैषी परम सहायक ॥

चित्त गुरु चरणन दृढ़ करि राखो । प्रीत-प्रसाद मधुर अति चाखो ॥

प्रीत का बन्धन गुरु संग बाँधो । पल पल गुरु से आशिष माँगो ।।

ब्रह्म मुहूर्त नित उठ जाओ । गुरु चरणन का ध्यान लगाओ ॥

श्री गुरु महिमा जो नित गाये । आतम सुख को सहजे पाये ॥

गुरु किरपा काटै भव रोगा । अति दुर्लभ पाइये संजोगा ॥

गुरु परमेश्वर एकै होई । जानै विरला गुरुमुख कोई ॥

॥ छंद ॥

संस्कारी जीव ही,सतगुरु शरण में आते हैं ।

आज्ञा को शिरोधार्य कर, भक्ति के धन को पाते हैं ।

ऐसे विरले प्यारे गुरुमुख, भव के तट जब जाते हैं

गुरु नाम की नौका बिठा, निजधाम को ले जाते हैं

स्वामी सच्चिदानन्द सतगुरु, अलख रूप लखाते हैं ।

अंश अपने अंशी से मिल, एकरूप हो जाते हैं ॥

दान निज भक्ति का देकर, सतगुरू हरषाते हैं ।

जयकार बोलें मिल के सारे. ‘दास’ बलि बलि जाते हैं ॥

ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः

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