Rehras sahib in hindi
हरि जुगु जुगु भगत उपाइआ पैज रखदा आइआ राम राजे ॥ 
हरणाखसु दुसटु हरि मारिआ प्रहलादु तराइआ ॥ 
अहंकारीआ निंदका पिठि देइ नामदेउ मुखि लाइआ ॥ 
जन नानक ऐसा हरि सेविआ अंति लए छडाइआ ॥४॥१३॥२०॥
सलोकु मः १ ॥
दुखु दारू सुखु रोगु भइआ जा सुखु तामि न होई ॥ 
तूं करता करणा मै नाही जा हउ करी न होई ॥१॥
बलिहारी कुदरति वसिआ ॥
तेरा अंतु न जाई लखिआ ॥१॥
 रहाउ ॥
जाति महि जोति जोति महि जाता अकल कला भरपूरि रहिआ ॥ 
तूं सचा साहिबु सिफति सुआल्हिउ जिनि कीती सो पारि पइआ ॥ 
कहु नानक करते कीआ बाता जो किछु करणा सु करि रहिआ ॥२॥
सो दरु रागु आसा महला १
ॐ सतिगुर प्रसादि ॥
सो दरु तेरा केहा सो घरु केहा जितु बहि सरब समाले ॥
वाजे तेरे नाद अनेक असंखा केते तेरे वावणहारे ॥ 
केते तेरे राग परी सिउ कही अहि केते तेरे गावणहारे ॥
गावनि तुधनो पवणु पाणी बैसंतरु गावै राजा धरमु दुआरे ॥
 गावनि तुधनो चितु गुपतु लिखि जाणनि लिखि लिखि धरमु बीचारे ॥
 गावनि तुधनो ईसरु ब्रहमा देवी सोहनि तेरे सदा सवारे ॥
 गावनि तुधनो इंद्र इंद्रासणि बैठे देवतिआ दरि नाले ॥ 
गावनि तुधनो सिध समाधी अंदरि गावनि तुधनो साध बीचारे ॥
गावनि तुधनो जती सती संतोखी गावनि तुधनो वीर करारे ॥
गावनि तुधनो पंडित पड़नि रखीसुर जुगु जुगु वेदा नाले ॥
 गावनि तुधनो मोहणीआ मनु मोहनि सुरगु मछु पइआले ॥
 गावनि तुधनो रतन उपाए तेरे अठसठि तीरथ नाले ॥ 
गावनि तुधनो जोध महाबल सूरा गावनि तुधनो खाणी चारे ॥
 गावनि तुधनो खंड मंडल ब्रहमंडा करि करि रखे तेरे धारे ॥
सेई तुधनो गावनि जो तुधु भावनि रते तेरे भगत रसाले ॥
 होरि केते तुधनो गावनि से मै चिति न आवनि नानकु किआ बीचारे ॥
 सोई सोई सदा सचु साहिबु साचा साची नाई ॥
 है भी होसी जाइ न जासी रचना जिनि रचाई ।।
रंगी रंगी भाती करि करि जिनसी माइआ जिनि उपाई ॥
 करि करि देखे कीता आपणा जिउ तिस दी वडिआई ॥
 जो तिसु भावै सोई करसी फिरि हुकमु न करणा जाई ॥
 सो पातिसाहु साहा पतिसाहिबु नानक रहणु रजाई ॥१॥
आसा महला १ ॥
सुणि वडा आखै सभु कोइ ॥ 
केवडु वडा डीठा होइ ॥ 
कीमति पाइ न कहिआ जाइ ॥
कहणै वाले तेरे रहे समाइ ॥१॥
वडे मेरे साहिबा गहिर ग्मभीरा गुणी गहीरा ॥
 कोइ न जाणै तेरा केता केवडु चीरा ॥१॥
रहाउ ॥
सभि सुरती मिलि सुरति कमाई ॥ 
सभ कीमति मिलि कीमति पाई ॥
गिआनी धिआनी गुर गुरहाई ॥ 
कहणु न जाई तेरी तिलु वडिआई ॥२॥
सभि सत सभि तप सभि चंगिआईआ ॥ 
सिधा पुरखा कीआ वडिआईआ ॥ 
तुधु विणु सिधी किनै न पाईआ ॥ 
करमि मिलै नाही ठाकि रहाईआ ॥३॥
आखण वाला किआ वेचारा ॥ 
सिफती भरे तेरे भंडारा ॥ 
जिसु तू देहि तिसै किआ चारा ॥ 
नानक सचु सवारणहारा ॥४॥२॥
आसा महला १ ॥ 
आखा जीवा विसरै मरि जाउ ॥ 
आखणि अउखा साचा नाउ ॥ 
साचे नाम की लागै भूख ॥ 
उतु भूखै खाइ चलीअहि दूख ॥१॥
सो किउ विसरै मेरी माइ ॥ 
साचा साहिबु साचै नाइ ॥१॥
रहाउ ॥
साचे नाम की तिलु वडिआई ॥ 
आखि थके कीमति नही पाई ॥ 
जे सभि मिलि के आखण पाहि ॥ 
वडा न होवै घाटि न जाइ ॥२॥
ना ओहु मरै न होवै सोगु ॥ 
देदा रहै न चूकै भोगु ॥ 
गुणु एहो होरु नाही कोइ ॥ 
ना को होआ ना को होइ ॥३॥
जेवडु आपि तेवड तेरी दाति ॥ 
जिनि दिनु करि के कीती राति ॥ 
खसमु विसारहि ते कमजाति ॥ 
नानक नावै बाझु सनाति ॥४॥३॥
रागु गूजरी महला ४ ॥
हरि के जन सतिगुर सतपुरखा बिनउ करउ गुर पासि ॥ 
हम कीरे किरम सतिगुर सरणाई करि दइआ नामु परगासि ॥१॥
मेरे मीत गुरदेव मो कउ राम नामु परगासि ॥ 
गुरमति नामु मेरा प्रान सखाई हरि कीरति हमरी रहरासि ॥१॥ 
रहाउ ॥
हरि जन के वड भाग वडेरे जिन हरि हरि सरधा हरि पिआस ॥ 
हरि हरि नामु मिले त्रिपतासहि मिलि संगति गुण परगासि ॥२॥
जिन हरि हरि हरि रसु नामु न पाइआ ते भागहीण जम पासि ॥ 
जो सतिगुर सरणि संगति नही आए धिगु जीवे धिगु जीवासि ॥३॥
जिन हरि जन सतिगुर संगति पाई तिन धुरि मसतकि लिखिआ लिखासि ॥
धनु धंनु सतसंगति जितु हरि रसु पाइआ मिलि जन नानक नामु परगासि ॥४॥४॥
रागु गूजरी महला ५ ॥
काहे रे मन चितवहि उदमु जा आहरि हरि जीउ परिआ ॥ 
सैल पथर महि जंत उपाए ता का रिजकु आगै करि धरिआ ॥१॥
मेरे माधउ जी सतसंगति मिले सु तरिआ ॥ 
गुर परसादि परम पद पाइआ सूके कासट हरिआ ॥१॥ 
रहाउ ॥
जननि पिता लोक सुत बनिता कोइ न किस की धरिआ ॥
सिरि सिरि  रिजकु सम्बाहे ठाकुरु काहे मन भउ करिआ ॥
उडे उडि आवै सै कोसा तिसु पाछै बचरे छरिआ ॥
तिन कवणु खलावै कवणु चुगावै मन महि सिमरनु करिआ ॥३॥ 
सभि निधान दस असट सिधान ठाकुर कर तल धरिया ॥ 
जन नानक बलि बलि सद बलि जाईऐ तेरा अंतु न पारावरिआ ॥४॥५॥
रागु आसा महला ४ सो पुरखु 
ॐ सतिगुर प्रसादि ॥
सो पुरखु निरंजनु हरि पुरखु निरंजनु हरि अगमा अगम अपारा ॥ 
सभि धिआवहि सभि धिआवहि तुधु जी हरि सचे सिरजणहारा ॥ 
सभि जीअ तुमारे जी तूं जीआ का दातारा ॥ 
हरि धिआवहु संतहु जी सभि दूख विसारणहारा ॥ 
हरि आपे ठाकुरु हरि आपे सेवकु जी किआ नानक जंत विचारा ॥१॥
तूं घट घट अंतरि सरब निरंतरि जी हरि एको पुरखु समाणा ॥ 
इकि दाते इकि भेखारी जी सभि तेरे चोज विडाणा ॥ 
तूं आपे दाता आपे भुगता जी हउ तुधु बिनु अवरु न जाणा ॥ 
तूं पारब्रहमु बेअंतु बेअंतु जी तेरे किआ गुण आखि वखाणा ॥ 
जो सेवहि जो सेवहि तुधु जी जनु नानकु तिन कुरबाणा ॥२॥
हरि धिआवहि हरि धिआवहि तुधु जी से जन जुग महि सुखवासी ॥ 
से मुकतु से मुकतु भए जिन हरि धिआइआ जी तिन तूटी जम की फासी ॥ 
जिन निरभउ जिन हरि निरभउ धिआइआ जी तिन का भउ सभु गवासी ॥
जिन सेविआ जिन सेविआ मेरा हरि जी ते हरि हरि रूपि समासी ॥ 
से धंनु से धंनु जिन हरि धिआइआ जी जनु नानकु तिन बलि जासी ॥३॥
तेरी भगति तेरी भगति भंडार जी भरे बिअंत बेअंता ॥
तेरे भगत तेरे भगत सलाहनि तुधु जी हरि अनिक अनेक अनंता ॥ 
तेरी अनिक तेरी अनिक करहि हरि पूजा जी तपु तापहि जपहि बेअंता ॥ 
तेरे अनेक तेरे अनेक पड़हि बहु सिम्रिति सासत जी करि किरिआ खटु करम करता ॥ 
से भगत से भगत भले जन नानक जी जो भावहि मेरे हरि भगवंता ॥४॥
तूं आदि पुरखु अपर्मपरु करता जी तुधु जेवडु अवरु न कोई ॥
तूं जुगु जुगु एको सदा सदा तूं एको जी तूं निहचलु करता सोई ॥ 
तुधु आपे भावै सोई वरतै जी तूं आपे करहि सु होई ॥ 
तुधु आपे स्रिसटि सभ उपाई जी तुधु आपे सिरजि सभ गोई ॥ 
जनु नानकु गुण गावै करते के जी जो सभसै का जाणोई ॥५॥१॥
आसा महला ४ ॥
तूं करता सचिआरु मैडा सांई ॥ 
जो तउ भावै सोई थीसी जो तूं देहि सोई हउ पाई ॥१॥ 
रहाउ ॥
सभ तेरी तूं सभनी धिआइआ ॥
जिस नो क्रिपा करहि तिनि नाम रतनु पाइआ ॥ 
गुरमुखि लाधा मनमुखि गवाइआ ॥ 
तुधु आपि विछोड़िआ आपि मिलाइआ ॥१॥
तूं दरीआउ सभ तुझ ही माहि ॥ 
तुझ बिनु दूजा कोई नाहि ॥ 
जीअ जंत सभि तेरा खेलु ॥ 
विजोगि मिलि विछुड़िआ संजोगी मेलु ॥२॥ 
जिस नो तू जाणाइहि सोई जनु जाणै ॥ 
हरि गुण सद ही आखि वखाणै ॥
जिनि हरि सेविआ तिनि सुखु पाइआ ॥ 
सहजे ही हरि नामि समाइआ ॥३॥
तू आपे करता तेरा कीआ सभु होइ ॥ 
तुधु बिनु दूजा अवरु न कोइ ॥ 
तू करि करि वेखहि जाणहि सोइ ॥ 
जन नानक गुरमुखि परगटु होइ ॥४॥२॥
आसा महला १ ॥
तितु सरवरड़े भईले निवासा पाणी पावकु तिनहि कीआ ॥
पंकजु मोह पगु नही चालै हम देखा तह डूबीअले ॥१॥
मन एकु न चेतसि मूड़ मना ॥ 
हरि बिसरत तेरे गुण गलिआ ॥१॥ 
रहाउ ॥ 
ना हउ जती सती नही पड़िआ मूरख मुगधा जनमु भइआ ॥ 
प्रणवति नानक तिन की सरणा जिन तू नाही वीसरिआ ॥२॥३॥
आसा महला ५ ॥ 
भई परापति मानुख देहुरीआ ॥ 
गोबिंद मिलण की इह तेरी बरीआ ॥
अवरि काज तेरै कितै न काम ॥ 
मिलु साधसंगति भजु केवल नाम ॥१॥
सरंजामि लागु भवजल तरन कै ॥ 
जनमु ब्रिथा जात रंगि माइआ कै ॥१॥ 
रहाउ ॥ 
जपु तपु संजमु धरमु न कमाइआ ॥ 
सेवा साध न जानिआ हरि राइआ ॥ 
कहु नानक हम नीच करमा ॥ 
सरणि परे की राखहु सरमा ॥२॥४॥
कबयो बाच बेनती ॥ चौपई ॥ 
हमरी करो हाथ दै छा || 
पूरन होइ च्ति की इछा ॥ 
तव चरनन मन रहै हमारा ॥ 
अपना जान करो प्रतिपारा ॥३७७॥
हमरे दुशट सभै तुम घावहु ॥ 
आपु हाथ दै मोहि बचावहु ॥
सुखी बसै मोरो परिवारा ॥ 
सेवक स्खिय सभै करतारा ॥३७८॥
मोछा निजु कर दै करियै ॥ 
सभ बैरिन कौ आज संघरियै ॥ 
पूरन होइ हमारी आसा ॥ 
तोरि भजन की रहै पियासा ॥३७९॥
तुमहि छाडि कोई अवर न धयाऊं ॥ 
जो बर चहों सु तुमते पाऊं ॥
सेवक स्खिय हमारे तारियहि ॥ 
चुन चुन श्तु हमारे मारियहि ॥३८०॥
आपु हाथ दै मुझे उबरियै ॥ 
मरन काल त्रास निवरियै ॥ 
हूजो सदा हमारे प्छा ॥ 
स्री असिधुज जू करियहु छा ॥३८१॥
राखि लेहु मुहि राखनहारे ॥ 
साहिब संत सहाइ पियारे ॥
दीनबंधु दुशटन के हंता ॥ 
तुमहो पुरी चतुरदस कंता ॥३८२॥
काल पाइ ब्रहमा बपु धरा ॥ 
काल पाइ शिवजू अवतरा ॥ 
काल पाइ करि बिशन प्रकाशा ॥ 
सकल काल का कीया तमाशा ॥३८३॥
जवन काल जोगी शिव कीयो ॥ 
बेद राज ब्रहमा जू थीयो ॥
जवन काल सभ लोक सवारा ॥ 
नमशकार है ताहि हमारा ॥३८४॥
जवन काल सभ जगत बनायो ॥ 
देव दैत ज्छन उपजायो ॥ 
आदि अंति एकै अवतारा ॥ 
सोई गुरू समझियहु हमारा ॥३८५॥
नमशकार तिस ही को हमारी ॥ 
सकल प्रजा जिन आप सवारी ॥
सिवकन को सवगुन सुख दीयो ॥ 
श्लुन को पल मो बध कीयो ॥३८६॥
घट घट के अंतर की जानत ॥ 
भले बुरे की पीर पछानत ॥ 
चीटी ते कुंचर असथूला ॥ 
सभ पर क्रिपा द्रिशटि करि फूला ॥३८७॥
संतन दुख पाए ते दुखी ॥ 
सुख पाए साधन के सुखी ॥
एक एक की पीर पछाने ॥ 
घट घट के पट पट की जानै ॥३८८॥
जब उदकरख करा करतारा ॥
प्रजा धरत तब देह अपारा ॥
जब आकरख करत हो कबहूं ॥ 
तुम मै मिलत देह धर सभहूं ॥३८९॥
जेते बदन स्रिशटि सभ धारै ॥
आपु आपुनी बूझि उचारै ॥ 
तुम सभ ही ते रहत निरालम ॥ 
जानत बेद भेद अरु आलम ॥३९०॥
निरंकार त्रिबिकार त्रिल्मभ ॥ 
आदि अनील अनादि अस्मभ ॥ 
ताका मूडूह उचारत भेदा ॥ 
जाको भेव न पावत बेदा ॥३९१॥
ताकौ करि पाहन अनुमानत ॥
महां मूडूह कछु भेद न जानत ॥ 
महांदेव कौ कहत सदा शिव ॥ 
निरंकार का चीनत नहि भिव ॥३९२॥
आपु आपुनी बुधि है जेती ॥ 
बरनत भिंन भिंन तुहि तेती ॥ 
तुमरा लखा न जाइ पसारा ॥ 
किह बिधि सजा प्रथम संसारा ॥३९३॥
एकै रूप अनूप सरूपा ॥
रंक भयो राव कहीं भूपा ॥ 
अंडज जेरज सेतज कीनी ॥ 
उतभुज खानि बहुरि रचि दीनी ॥३९४॥
कहूं फूलि राजा है बैठा ॥ 
कहूं सिमटि भयो शंकर इकैठा ॥ 
सगरी त्रिशटि दिखाइ अच्मभव ॥ 
आदि जुगादि सरूप सुय्मभव ॥३९५॥
अब छा मेरी तुम करो ॥
स्खिय उबारि अस्खिय स्घरो ॥ 
दुशट जिते उठवत उतपाता ॥ 
सकल मलेछ करो रण घाता ॥३९६॥
जे असिधुज तव शरनी परे ॥
 तिन के दुशट दुखित है मरे ॥ 
पुरख जवन पगु परे तिहारे ॥ 
तिन के तुम संकट सभ टारे ॥३९७॥
जो कलि को इक बार धिऐहै ॥
ता के काल निकटि नहि ऐहे ॥ 
छा होइ ताहि सभ काला ॥ 
दुशट अरिशट टरे ततकाला ॥३९८॥
क्रिपा द्रिशाटि तन जाहि निहरिहो ॥ 
ताके ताप तनक महि हरिहो ॥
रिद्धि सिद्धि घर मों सभ होई ॥ 
दुशट छाह छै सके न कोई ॥३९९॥
एक बार जिन तुमैं स्मभारा ॥
काल फास ते ताहि उबारा ॥ 
जिन नर नाम तिहारो कहा ॥ 
दारिद दुशट दोख ते रहा ॥४००॥
खड़ग केत मैं शरनि तिहारी ॥ 
आप हाथ दै लेहु उबारी ॥ 
सरब ठौर मो होहु सहाई ॥ 
दुशट दोख ते लेहु बचाई ॥४०१॥
क्रिपा करी हम पर जगमाता ॥
ग्रंथ करा पूरन सुभ राता ॥ 
किलबिख सकल देह को हरता ॥ 
दुशट दोखियन को छै करता ॥४०२॥
स्री असिधुज जब भए दयाला ॥
पूरन करा ग्रंथ ततकाला ॥ 
मन बांछत फल पावै सोई ॥
दूख न तिसै बिआपत कोई ॥४०३॥
आडिल  ॥
सुनै गुंग जो याहि सु रसना पावई ॥ 
सुनै मूडूह चित लाइ चतुरता आवई ॥ 
दूख दरद भौ निकट न तिन नर के रहै ॥ 
हो जो याकी एक बार चौपई को कहै ॥४०४॥
चौपई ॥
स्मबत स्त्रह सहस भजैि ॥
अरध सहस फुनि तीनि कहिजै ॥ 
भाद्रव सुदी अशटमी रवि वारा ॥
तीर सतुद्रव ग्रंथ सुधारा ॥४०५॥
इति स्री चरित्र पख्याने त्रिया चरित्रे मंत्री भूप स्मबादे चार सौ चार चरित्र समापतम सतु सुभम सतु ॥४० ७१३४॥ 
अफजूं ॥ 
पांइ गहे जब ते तुमरे तब ते कोऊ आंख तरे नही आनियो ॥ 
राम रहीम पुरान कुरान अनेक कहें मति एक न मानियो ॥ 
सिम्रिति सासत्र बेद सभै बहु भेद कहै हम एक न जानियो ॥ 
स्री असिपानि क्रिपा तुमरी करि मै न कहियो सभ तोहि बखानियो ॥८६३॥
दोहरा ॥
सगल दुआर को छाडि के गहियो तुहारो दुआर ॥ 
बांहि गहे की लाज असि गोबिंद दास तहार ॥८६४॥
रामकली महला ३ अनंदु ॐ सतिगुर प्रसादि 
अनंदु भइआ मेरी माए सतिगुरू मै पाइआ ॥ 
सतिगुरु त पाइआ सहज सेती मनि वजीआ वाधाईआ ॥ 
राग रतन परवार परीआ सबद गावण आईआ ॥ 
सबदो त गावहु हरी केरा मनि जिनी वसाइआ ॥ 
कहै नानकु अनंदु होआ सतिगुरू मै पाइआ ॥१॥
ए मन मेरिआ तू सदा रहु हरि नाले ॥ 
हरि नालि रहु तू मंन मेरे दूख सभि विसारणा ॥
अंगीकारु ओहु करे तेरा कारज सभि सवारणा ॥ 
सभना गला समरथु सुआमी सो किउ मनहु विसारे ॥ 
कहै नानकु मंन मेरे सदा रहु हरि नाले ॥२॥
साचे साहिबा किआ नाही घरि तेरै ॥ 
घरि त तेरै सभु किछु है जिसु देहि सु पावए ॥ 
सदा सिफति सलाह तेरी नामु मनि वसावए ॥
 नामु जिन कै मनि वसिआ वाजे सबद घनेरे ॥ 
कहै नानकु सचे साहिब किआ नाही घरि तेरै ॥३॥
साचा नामु मेरा आधारो ॥ 
साचु नामु अधारु मेरा जिनि भुखा सभि गवाईआ ॥ 
करि सांति सुख मनि आइ वसिआ जिनि इछा सभि पुजाईआ ॥ 
सदा कुरबाणु कीता गुरू विटहु जिस दीआ एहि वडिआईआ ॥ 
कहै नानकु सुणहु संतहु सबदि धरहु पिआरो ॥ 
साचा नामु मेरा आधारो ॥४॥
वाजे पंच सबद तितु घरि सभागै ॥ 
घरि सभागै सबद वाजे कला जितु घरि धारीआ ॥
पंच दूत तुधु वसि कीते कालु कंटकु मारिआ ॥ 
धुरि करमि पाइआ तुधु जिन कउ सि नामि हरि कै लागे ॥ 
कहै नानकु तह सुखु होआ तितु घरि अनहद वाजे ॥५॥
अनदु सुणहु वडभागीहो सगल मनोरथ पूरे ॥ 
पारब्रहमु प्रभु पाइआ उतरे सगल विसूरे ॥ 
दूख रोग संताप उतरे सुणी सची बाणी ॥ 
संत साजन भए सरसे पूरे गुर ते जाणी ॥ 
सुणते पुनीत कहते पवितु सतिगुरु रहिआ भरपूरे ॥
बिनवंति नानकु गुर चरण लागे वाजे अनहद तूरे ॥४०॥१॥
मुंदावणी महला ५ ॥
थाल विचि तिंनि वसतू पईओ सतु संतोखु वीचारो ॥ 
अम्रित नामु ठाकुर का पइओ जिस का सभसु अधारो ॥ 
जे को खावै जे को भुंचे तिस का होइ उधारो ॥ 
एह वसतु तजी नह जाई नित नित रखु उरि धारो ॥ 
तम संसारु चरन लगि तरीऐ सभु नानक ब्रहम पसारो ॥१॥
सलोक महला ५ ॥
तेरा कीता जातो नाही मैनो जोगु कीतोई ॥
मै निरगुणिआरे को गुणु नाही आपे तरसु पइओई ॥
तरसु पइआ मिहरामति होई सतिगुरु सजणु मिलिआ ॥
नानक नामु मिलै तां जीवां तनु मनु थीवै हरिआ ॥१॥
पउड़ी ॥
तिथे तू समरथु जिथै कोइ नाहि ॥ 
ओथै तेरी रख अगनी उदर माहि ॥ 
सुणि कै जम के दूत नाइ तेरै छडि जाहि ॥ 
भउजलु बिखमु असगाहु गुर सबदी पारि पाहि ॥
भउजलु बिखमु असगाहु गुर सबदी पारि पाहि ॥ 
जिन कउ लगी पिआस अम्रितु सेइ खाहि ॥ 
कलि महि एहो पुंनु गुण गोविंद गाहि ॥ 
सभसै नो किरपालु सम्हाले साहि साहि ॥ 
बिरथा कोइ न जाइ जि आवै तुधु आहि ॥९॥
रागु गूजरी वार महला ५ १७ सतिगुर प्रसादि ॥
सलोकु मः ५ ॥
अंतरि गुरु आराधणा जिहवा जपि गुर नाउ ॥ 
नेत्री सतिगुरु पेखणा स्रवणी सुनणा गुर नाउ ॥ 
सतिगुर सेती रतिआ दरगह पाईऐ ठाउ ॥ 
कहु नानक किरपा करे जिस नो एह वथु देइ ॥ 
जग महि उतम काढीअहि विरले केई केइ ॥१॥ मः ५ ॥
रखे रखणहारि आपि उबारिअनु ॥ 
गुर की पैरी पाइ काज सवारिअनु ॥
होआ आपि दइआलु मनहु न विसारिअनु ॥ 
साध जना के संगि भवजलु तारिअनु ॥ 
साकत निंदक दुसट खिन माहि बिदारिअनु ॥ 
तिसु साहिब की टेक नानक मनै माहि ॥ 
जिसु सिमरत सुखु होइ सगले दूख जाहि ॥२॥
Rehras Sahib in hindi pdf
आनन्द का अर्थ क्या है – इस शब्द ने हर प्राणी में हलचल मचा रखी है