rahim ke dohe ( रहीम दास का जीवन परिचय और दोहे अर्थ सहित)
रहीम का पूरा नाम | अब्दुर्रहीम खानखाना |
जन्म | 17 दिसंबर, सन् 1556 ई. में |
जन्म स्थान | लाहोर (वर्तमान पाकिस्तान में) |
मृत्यु और स्थान | 01 अक्टूबर, सन् 1627 ई. में , आगरा, (मुगल साम्राज्य में) |
पिता का नाम | बैरम खाँ |
माता का नाम | सुल्ताना बेगम (जमाल खाँ की बेटी) |
पत्नी का नाम | माहबानो बेगम |
धर्म | इस्लाम |
व्यवसाय | कवि और प्रशासक |
प्रसिद्धि | अकबर के नवरत्नों में से |
विद्याएं | दोहा एवं कविताएं |
साहित्य काल | भक्ति काल |
भाषा | ब्रिज |
प्रमुख रचनाएं | रहीम रत्नावली ,श्रृंगार सतसाई, रहीम सतसई ,मदनाष्टक,बरवै नायिका आदि |
समाधि | अब्दुर्रहीम खान-ए-खाना का मकबरा (दिल्ली) |
रहीम दास जी का नाम अब्दुल रहीम खान-ए-खाना के नाम से भी प्रसिद्ध है। 16वीं शताब्दी में यह भारत के प्रसिद्ध कवि और मुगल दरबार में एक प्रमुख व्यक्ति जाने जाते हैं।
रहीम दास का जीवन परिचय
अब्दुर्रहीम खानखाना रहीम दास जी का पूरा नाम है। इन्हें भारत के प्रसिद्ध संतों और कवियों में से एक जाना जाता है। इन्होंने अपना जीवन भक्ति भाव तरीके से जीया है। रहीम दास जी की कविताएं आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रेरित करने वाली है।
रहीम दास का जन्म सन 1556 ईस्वी में लाहौर में (जो कि अब पाकिस्तान में स्थित है) हुआ था। इनके पिता बैरम खान थे जो सम्राट अकबर के दरबार में कुलीन और सैन्य कमांडर थे। अकबर ने जब रहीम दास के पिता बैरम खान को हज पर भेजा तो शत्रुओं मार्ग में ही इनके पिता बैरम खान की मृत्यु कर दी। रहीम और उसकी मां को अकबर ने महल में बुलाया और स्वयं ही उसकी देखभाल और भरण पोषण और शिक्षा की जिम्मेदारी ली।
रहीम दास अकबर के दरबार में जो नवरत्न थे उनमें से एक थे और अकबर के प्रधान सेनापति और मंत्री भी थे। रहीम दास समृद्ध वातावरण में पले बड़े थे। वह महान वीर योद्धा थे और उन्होंने बड़ी कौशलता के साथ सेना का संचालन करते थे। वह दानवीरता की एक मिसाल थे।
अपने पिता का उच्चतम पद होने के कारण रहीम दास को प्रसिद्ध विद्वानों के मार्गदर्शन में शिक्षित होने का सौभाग्य मिला था। उनके साहित्य भाषाओं में जबरदस्त पकड़ थी जो बाद में उनकी कविताओं में देखने को मिली।
उनकी योग्यता को नजर में रखते हुए अकबर ने इनको अपने दरबार के नवरत्नों में स्थान दे दिया। रहीम दास जी स्वभाव से बड़ी दयालु प्रवृत्ति के थे। मुस्लिम होते हुए भी रहीम दास जी श्री कृष्ण जी के अनन्य भक्त थे और अकबर की मृत्यु होने के दौरान जहांगीर ने इन्हें चित्रकूट में नजरबंद कर दिया था।
इनका केशव और गोस्वामी तुलसीदास जी के साथ बहुत प्रेम था। रहीम दास जी का अंतिम समय काफी कष्टपूर्ण रहा था और सन् 1627 ई. को आगरा में रहीम दास जी का निधन हो गया।
रहीम दास का साहित्यिक योगदान
रहीम दास एक प्रमुख उर्दू और परसी कवि थे उन्होंने17वीं और 18वीं सदियों के बीच भारतीय साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान किए। उन्होंने शायरी के क्षेत्र में अपनी महानता के लिए प्रसिद्धता प्राप्त की।
उनकी रचनाएँ उर्दू साहित्य के स्वर्णमुद्रों में शामिल हैं। इसके अलावा, उन्होंने आपकी शायरी के माध्यम से तथा उन्होंने काव्य रचनाओं के माध्यम से भारतीय समाज के साथ-साथ साहित्य और भाषा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान डाला।
रहीम दास (अब्दुल रहीम ख़ान-ए-एटर) भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण संत कवि थे और उन्होंने हिंदी और उर्दू साहित्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान किया। वे अकबर के दरबार में एक महत्वपूर्ण मंत्री रहे हैं और उन्होंने अपनी कविताओं में भक्ति और समाज के लिए मूल्यों का प्रचार किया।
रहीम का साहित्यिक योगदान निम्नलिखित प्रमुख प्रावणाओं में व्यक्त होता है-
- दोहे रहीम अपनी कविताओं को दोहों की रूप में लिखते थे, जिन्हें “रहीम के दोहे” कहा जाता है। उनके दोहे धार्मिक और सामाजिक संदेशों को सरलता से प्रस्तुत करते थे।
- भक्ति रचनाएँ रहीम दास एक महान भक्तिकाल के साधक भी थे, और उन्होंने राम की भक्ति की रचनाएँ लिखीं। उनकी कविताओं में देवी भगवान की महिमा और उनके भक्ति के भावनात्मक अंश दिखाए जाते हैं।
- समाज के मुद्दे रहीम ने अपनी कविताओं में समाज में उत्थान के मुद्दों पर भी बात की। उन्होंने जाति-व्यवस्था, ‘धर्मिक समुदायों के बीच सौहार्द और व्यक्तिगत नैतिकता के मुद्दों पर अपने दोहों में विचार किए।
- भाषा रहीम का योगदान भाषा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण था। उनकी कविताएं ब्रज भाषा में लिखी गई थीं, जो आम जनता के साथ सांदर्भिक थी, और उन्होंने इसे उनकी दोहों के माध्यम से प्रसिद्ध किया।
रहीम दास का साहित्यिक योगदान भारतीय साहित्य के इतिहास में महत्वपूर्ण है, और उनके काव्य और दोहे आज भी पाठ्यपुस्तकों और साहित्यिक कामों में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त करते हैं।
रहीम दास की प्रमुख रचनाएं
रहीम दास की प्रमुख रचनाएं उनके दोहों और अन्य काव्य ग्रंथों में से कुछ हैं। वे अपने काव्य रचनाओं में भक्ति, नैतिकता, सामाजिक मुद्दे, और मानवता के विभिन्न पहलुओं को प्रकट करते हैं। निम्नलिखित कुछ प्रमुख रचनाएं हैं
- रहीम के दोहे: रहीम के दोहे उनके सबसे प्रसिद्ध काव्य हैं। इनमें वे धार्मिक और नैतिक संदेशों को सरलता से प्रस्तुत करते हैं। ये दोहे भाषा की सुंदरता के साथ लिखे गए हैं और लोगों के दिलों में छू जाते हैं।
- “रामचरितमानस ” में योगदान रहीम दास ने तुलसीदास के ‘रामचरितमानस’ में भी अपने दोहों का संबंध बनाया है। उनके दोहे इस महाकाव्य के अंश के रूप में शामिल हैं और रामायण के कथा को और भी महत्वपूर्ण बनाते हैं।
- “रहीम कृत नीतिशतक”: यह ग्रंथ रहीम दास के नैतिक दृष्टिकोण को प्रकट करता है। इसमें वे नैतिकता, धर्म, और मानवता के मुद्दों पर अपने विचार प्रस्तुत करते हैं।
- भक्तिग्रंथ: रहीम दास की कविताएं और दोहे भक्ति ग्रंथों में भी शामिल हैं, जो राम भक्ति को प्रमोट करने के लिए लिखे गए थे।
रहीम दास के लिखे गए उपन्यास, गीत, और काव्य रचनाएं उनके दरबारी जीवन, भक्तियात्रा, और भारतीय समाज के मुद्दों पर उनके दृष्टिकोण को प्रकट करती हैं, और उन्होंने अपने योगदान के माध्यम से भारतीय साहित्य को अमूल्य धरोहर दी।
रहीम दास की भाषा शैली उनकी कविताओं में विशेषत हिंदी और उर्दू के मिश्रण में ब्रज भाषा के अनुकरण के साथ उनकी भाषा शैली के मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
- ब्रज भाषा का प्रयोग: रहीम दास अपनी कविताओं में ब्रज भाषा का प्रयोग करते थे, जो उनकी कविताओं की पहचान होती है। ब्रज भाषा मुग़ल सम्राट अकबर के दरबार में उपयोग होने वाली भाषा थी और यह भाषा उनकी कविताओं में भी दिखाई देती है।
-2 सरलता: रहीम दास की भाषा शैली बहुत सरल थी, जिससे उनकी कविताएँ आम लोगों तक पहुँचने में सहायक होती थीं। उनके दोहे और कविताएँ सामाजिक और नैतिक संदेशों को सुंदरता और सरलता के साथ प्रस्तुत करती थीं।
- भक्तिपूर्णता: रहीम दास की भाषा शैली में भक्ति के भावनात्मक अंश भी होते थे। वे अपनी कविताओं में राम भक्ति के प्रति अपने गहरे भावनाओं को व्यक्त करते थे।
- व्यक्तिगत अनुभवः रहीम दास की कविताएँ उनके व्यक्तिगत अनुभव के बारे में बताती है।
FAQs. रहीम दास जी के जीवन से जुड़े प्रशन उत्तर
रहीम का जन्म कब और कहां हुआ था?
रहीम दास का जन्म 17 दिसंबर, सन् 1556 ई. में लाहोर में हुआ था जो अब पाकिस्तान का हिस्स
रहीम की मृत्यु कब और कहां हुई थी ?
रहीम दास की मृत्यु 1 अक्टूबर, सन् 1627 ई. में आगरा में हुई थी।
रहीम के माता पिता का क्या नाम था?
रहीम दास की माता का नाम सुल्ताना बेगम तथा पिता का नाम बेरम खां था।
रहीम दास के गुरु कौन थे?
रहीम दास जी के गुरु मोहम्मद आमीन थे।
रहीम दास जी किसके उपासक थे?
रहीम दास जी मुस्लिम होते हुए भी श्री कृष्ण जी के उपासक (भक्त) थे।
रहीम दास की प्रमुख रचनाएं कौन कौन सी हैं?
ंरहीम दास जी की प्रमुख रचनाएं रहीम रत्नावली, श्रृंगार सतसई, रहीम सतसई, मदनाष्टक, बरवे नायिका भेद आदि ।
रहीम के दोहे
तें रहीम मन आपुनो कीन्हों चारु चकोर । निसि बासर लागो रहे. कृष्णचंद्र की ओर ॥ 1 ॥
अच्युत-चरण-तरंगिणी, शिव सिर- मालति- माल । हरि न बनायो सुरसरी, कीजो इंदव-भाल ॥2॥
अधम वचन काको फल्यो, बैठि ताड़ की छाँह । रहिमन काम न आय है. ये नीरस जग माँह ॥3॥
अन्तर दाव लगी रहे. धुआँ न प्रगटे सोइ । के जिय आपन जानहीं, के जिहि बीती होइ ॥ 4 ॥
अनकीन्हीं बातें करे सोवत जागे जोय ताहि सिखाय जगायबो, रहिमन उचित न होय ॥ 5 ॥
अनुचित उचित रहीम लघु, करहिं बड़ेन के जोर। ज्यों ससि के संजोग तें, पचवत आणि चकोर ॥6॥
अनुचित वचन न मानिए जदपि गुराइसु गाढ़ि ।। है रहीम रघुनाथ ते सुजस भरत को बाढ़ि ॥ 7 ॥
अब रहीम चुप कर रहउ समुझि दिनन कर फेर। जब दिन नीके आइ हैं बनत न लगि है देर ॥8॥
अब रहीम मुश्किल पड़ी. गाढ़े दोऊ काम। साँचे से तो जग नहीं, झूठे मिलें न राम ॥१॥
अमर बेलि बिनु मूल की प्रतिपालत है ताहि । रहिमन ऐसे प्रभुहिं तजि खोजत फिरिए काहि ॥10॥
अमृत ऐसे वचन में रहिमन रिस की गाँस । जैसे मिसिरिदु में मिली, निरस बाँस की फाँस ॥ 11 ॥
अरज गरज मानें नहीं, रहिमन ए जन चारि।
रिनिया, राजा, माँगता, काम आतुरी नारि ॥ 12 ॥
असमय परे रहीम कहि माँगि जात तजि लाज ज्यों लछमन माँगन गये, पारासर के नाज ॥13॥
आदर घटे नरेस टिंग, बसे रहे कछु नाहिं। जो रहीम कोटिन मिते धिग जीवन जग माहिं ॥14 ॥
आप न काहू काम के डार पात फल फूल औरन को रोकत फिरे, रहिमन पेड़ बबूल ॥15॥
आवत काज रहीम कहि गाढ़े बंधु सनेह। जीरन होत न पेड़ ज्यो, थामे बरे बरेह ॥16॥
उरग, तुरंग, नारी नृपति, नीच जाति, हथियार। रहिमन इन्हें संभारिए पलटत लगे न बार॥17॥
ऊगत जाही किरन सो अथवत नाही काँति । त्यों रहीम सुख दुख सबै बढ़त एक ही भाँति ॥18॥
एक उदर दो चोंच है पंछी एक कुरंड कहि रहीम कैसे जिए जुदे जुदे दो पिंड ॥19॥
एक साधे सब सधै सब साधे सब जाय। रहिमन मूलहिं सीवियो फूलै फले अघाय ॥20॥
रहीम दर दर फिरहिं माँगि मधुकरी खाहि । यारो पारी छोड़िये दे रहीम अब नाहि ॥ 21 ॥
ओछी काम बड़े करे तो न बड़ाई हो ज्यों रहीम हनुमंत को गिरधर कहे न कोय ॥22॥
अंजन दियो तो किरकिरी सुरमा दियो न जाय। जिन आंखि सो हरियो रहिमन इति यति जय ॥23॥
अंड न बोड़ रहीम कहि देखि सचिक्कन पान हस्ती ढक्का कुल्हड़िन सहे ते तरुवर आन ॥24॥
कदली, सीप, भुजंग-मुख, स्वाति एक गुन तीन जैसी संगति बैठिए, तैसोई फल दीन ॥25॥
कमला थिर न रहीम कहि यह जानत सब कोय। पुरुष पुरातन की बधू, क्यों न चंचला होय ॥26॥
कमला थिर न रहीम कहि तखत अथम जे कोप प्रभु की सो अपनी कहे, क्यों न फजीहत होय ॥27॥
करत निपुनई गुन बिना, रहिमन निपुन हजूर । मानहु टेरत बिटप यदि मोहि समान को क्रूर ॥28॥
करम हीन रहिमन लखो पैसो बड़े घर चोर चिंतत ही बड़ लाभ के जागत हे गौ भोर ॥29॥
कहि रहीम इक दीप ते प्रगट सबै दुति होय। तन सनेह कैसे दुरे, हग दीपक जरु दोष ॥30॥
कहि रहीम धन बढ़ घंटे जात धनिन की यात घंटे बड़े उनको कहा, पास बेचि जे खात ॥31॥
कहि रहीम में जगत से प्रीति गई दे देर। रह रहीम नर नीच में स्वास्थ स्वास्थ हेर ॥32॥
कहि रहीम संपति संगे बनत बहुत बहु रीत बिपति कसोटी जे कसे ते ही साँचे मीत ॥33
कहु रहीम केतिक रही केतिक गई बिहाय ,माया ममता मोह परि अंत चले पछिताय ।।34।।
कह रहीम कैसे निभे बेर केर को संग। वे डोलत रस आपने उनके फाटत अंग ॥35॥
कह रहीम कैसे बने, अनहोनी है जाय। मिला रहे ओ ना मिले, तासों कहा बसाय ॥36॥
कागद को सो पूतरा, सहजहि में घुलि जाय। रहिमन यह अचरज लखो, सोऊ खेचत बाय ॥37॥
काज पर कछु और है, काज सरे कछु और। रहिमन भँवरी के भए नदी सिरावत मोर ॥38॥
काम न काहू आवई मोल रहीम न लेई । बाजू टूटे बाज को साहब चारा देई ॥39॥
कहा करों बैकुठले कल्प वृच्छ की छाँह । रहिमन दाख सुहावनो जो गल पीतम बाह ॥40॥
काह कामरी पामरी जाड गए से काज रहिमन भूख बुताइए कैस्यो मिले अनाज ॥41॥
कुटिलन संग रहीम कहि साधू बचते नाहिं। ज्यों नेना सेना करें उरज उमेठे जाहि ॥ 42॥
कैसे निवहै निबल जन करि सबलन सौ गेर। रहिमन बसि सागर बिषे करत मगर सो वेर ॥43।।
कोउ रहीम जनि काहु के द्वार गये पछिताय। संपत्ति के सब जात हैं विपति सबे से जाय ॥ 44।।
कौन बड़ाई जलधि मिलि गरा नाम भी धीम केहि की प्रभुता नहि घटी पर घर गये रहीम ।।45।।
खरच बढ्यो, उद्यम घट्यो, नृपति निठुर मन कीन, कह रहीम कैसे जिए, थोरे जल की मीन ।।46 ॥
खीरा सिर ते काटिए, मलियत नमक बनाय, रहिमन करूए मुखन को, चहियत इहै सजाय ।।47॥
खैंचि चढ़नि, ढीली ढरनि, कहहु कौन यह प्रीति । आज काल मोहन गही, बंस दिया की रीति ॥48 ॥
गरज आपनी आपसो रहिमन कही न जाए। जैसे कुल की कुलवधु, पर घर जाए लजाए ।।50 ।।
रहीम दास के दोहे अर्थ सहित
रहिमन मनहि लगाई कै देखि लेहु किन कोय नर को बस करिबो कहा नारायराा बस होय
अर्थः– किसी काम को मन लगा कर करने से सफलता निश्चित मिलती है। मन लगा कर भक्ति करने से आदमी को क्या भगवान को बस में किया जा सकता है।
- “जो रहीम ओछो बढै, तौ अति ही |इतराय प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ों टेढ़ों जाय.”
अर्थ:- लोग जब प्रगति करते हैं तो बहुत इतराते हैं। वैसे ही जैसे शतरंज के खेल में ज्यादा फ़र्जी बन जाता हैं तो वह टेढ़ी चाल चलने लता हैं।
3. कहि रहीम धन बढि घटे जात धनिन की बात,घटै बढै उनको कहा घास बेचि जे खात ।
अर्थ:-धनी आदमी को गरीब या धन की कमी होने पर बहुत कष्ट होता है-
लेकिन जो प्रतिदिन घास काट कर जीवन निर्वाह करते हैं – उन पर धन के घटने बढने का कोई असर नही होता है।
- यह न रहीम सराहिए लेन देन की प्रीति प्रानन बाजी राखिए हार होय कै जीति ।
अर्थ:- रहीम उस प्रेम की सराहना मत करो जिसमें लेन देन का भाव हो । प्रेम कोई खरीद बिक्री की चीज नही है।
प्रेम में वीर की तरह प्राणों के न्यौछावर करने की बाजी लगानी पड़ती है- उसमें विजय हो या हार – उसकी परवाह नही करनी पड़ती है।
- होय न जाकी छाँह ढिग फल रहीम अति दूर,बढिहू सो बिन काज की तैसे तार खजूर
अर्थ:-तार और खजूर के बृक्ष न छाया देते हैं और नहीं उनके फल आसानी से तोड़े जा सकते हैं कयोंकि उनके फल बहुत दूर होते हैं। उनके बहुत बढने और उँचाई से किसी को लाभ नहीं होता। ऐसी उच्चता व्यर्थ है।
- रहि मांगत बडेन की लघुता होत अनूप बलि मरब मांगन को गये धरि बाबन को रूप
अर्थ:-मांगने के समय बड़े लोगो की लघुता भी | सुन्दर लगती है। जब भगवान बलि के पास बौना बामन रूप ले कर मांगने गये तो उनका रूप तेज अत्यंत सुन्दर था ।छोटे काम करने में भी बड़े लोगों का महत्व कम नही होता ।
- एक उदर दो चोंच है पंछी एक कुरंड, कहि रहीम कैसे जिए जुदे जुदे दो पिंड
अर्थ:-कारंडव पक्षी को एक पेट और दो चोंच है। इसलिये वह पेट भरने के लिये निश्चिंत है। लेकिन रहीम कहते हैं कि अगर किसी को दो पेट और एक चोंच हो तो वह कैसे जीवित रह सकेगा कमाने बाला रहीम एक और कई पेट। वह आर्थिक तंगी से बेहाल हो गया है।
- रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ ।
अर्थ:-आँसू आँख से बाहर निकलते हैं और दिमाग की पीड़ा प्रकट करते हैं, रहीम दास कहते है कि ठीक वैसे ही घर से निकाला गया ही घर के भेद खोलेगा।
- भावी काहू ना दही दही एक भगवान भावी ऐसा प्रवल है कहि रहीम यह जान ।
अर्थ:-हानी से कोई नही बच सकता। इसने इश्वर को भी नही छोड़ा है। भावी बहुत प्रवल होता है-इसे कोई नही बदल सकता है।
- “दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं. जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के नाहिं”
अर्थः- रहीम कहते हैं की कौआ और कोयल रंग में एक समान काले होते हैं।जब तक उनकी आवाज ना सुनायी दे तब तक उनक पहचान नहीं होती लेकिन जब वसंत रुतु आता हैं तो कोयल की मधुर आवाज से दोनों में का अंतर स्पष्ट हो जाता हैं।
- रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राख गोय,सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय ।
अर्थ:-रहीम दास कहते हैं कि आपके मन की उदासी को अपने मन के भीतर ही छुपाये रखे, क्योंकि दूसरों की उदासी को सुनने के बाद लोग इठला भले ही लेते है लेकिन उसे बाँट कर कम करने वाले बहुत कम लोग होते हैं ।
- चिंता बुद्धि परखिये टोटे परख त्रियाहि सगे कुबेला परखिये ठाकुर गुनो कियाहि ।
अर्थ:-बुद्धि की परीक्षा चिंता होने पर और पत्नी की परीक्षा आर्थिक तंगी के समय होती है। सगे संबंधियों की परीक्षा दुर्दिन के समय और मालिक स्वामी की परीक्षा कष्ट के समय की जाती है।
- बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय,औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय ।
अर्थ:-अपने भीतर के दंभ को दूर करके ऐसी मीठी बातें करनी चाहिए जिसे श्रवण कर के खुद को और दूसरों को शांति और ख़ुशी हो।
- जो मरजाद चली सदा सोई तो ठहराय जो जल उमगें तार तें सो रहीम बहि जाय ।
अर्थः-व्यक्ति को परम्परा से चली आ रही मर्यादाओं के मुताबिक हीं चलना चाहिये। जो जल या नदी अपनी सीमा में बहती है – वह कल्याणकारी है ।परंतु जो अपनी सीमाको तोड़कर बहती है वह लोगों को बहा ले जाती है और नुकसान करती है।
- वरू रहीम कानन बसिय असन करिय फल तोय, बंधु मध्य गति दीन ह्वै बसिबो उचित न होय –
अर्थः-जंगल में बस जाओ और जंगली फल फूल पानी से निर्वाह करो लेकिन उन भाइयों के बीच मत रहो जिनके साथ तुम्हारा सम्पन्न जीवन बीता हो और अब गरीब होकर रहना पड़ रहा हो।
- धनि रहीम जलपंक को लघु जिय पियत अघाय, उदधि बडाई कौन है जगत पियासो जाय ।
अर्थ:-कीचड़ युक्त जल धन्य है जिसे छोटे जीव जन्तु भी पीकर तृप्त हो जाते हैं। समुद्र का कोई बड़प्पन नहीं कयोंकि संसार की प्यास उससे नही मिटती है। सेवाभाव वाले छोटेलोग हीं अच्छे हैं।
- रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय,सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय
अर्थ:-रहीम जी कहते हैं की अपने मन की पीड़ा को अपने मन के अंदर ही छिपाकर रखना चाहिए क्योंकि आपकी पीड़ा को सुनकर लोग इठला भले ही लेते हों पर बांटने वाला कोई नही होता।
- रहिमन धोखे भाव से मुख से निकसे,राम पावत पूरन परम गति कामादिक कौ धाम
अर्थ:-यदि कभी धोखे से भी भाव पूर्वक मुँह से राम का नाम लिया जाये तो उसे कल्याणमय परम गति प्राप्त होता है भले हीं वह काम क्रोध लोभ मोह पाप से कयों न ग्रस्त हो।
- दादुर मोर किसान मन लग्यौ रहै धन,मांहि पै रहीम चातक रटनि सरवर को कोउ नाहिं
अर्थ:-दादुर मोर एवं किसान का मन हमेशा बादल वर्षा मेघ के प्रेम में लगा रहता है। किंतु चातक को स्वाति नक्षत्र में बादल के लिये जो प्रेम रहता है वैसा इन तीनों को नही रहता है । चातक अनूठे प्रेम का प्रतीक है।
20. दिब्य दीनता के रसहि का जाने जग अंधु,भली बिचारी दीनता दीनबंधु से बंधु
अर्थ:-गरीबी में बहुत आनंद है। यह संसार में धन के लोभी अंधे नही जान सकते हैं। रहीम को अपनी गरीबी प्रिय लगती है कयोंकि तब उसने गरीबों के सहायक दीनबंधु भगवान को पा लिया है।
- रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार । रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ताहार ।
अर्थ:-यदि हार टूट जाये तो उन हीरो को धागे में पीरों लेना चाहिये, वैसे ही यदि आपके प्रियजन आपसे सौ बार भी रूठे तो उन्हें मना लेना चाहिये।
- रहिमन तीन प्रकार ते हित अनहित पहिचानि,पर बस परे परोस बस परे मामिला जानि ।
अर्थ:- जब व्यक्ति दूसरों पर आश्रित हो गया हो; जब कोई हितैसी पड़ोस में बस गया हो और जब कोई मुकदमा में फंस गया हो और इन परिस्थितियों में कोई सहायता करे तो उसे सच्चा हितैशी मानना चाहिये।
- रहिमन राज सराहिए ससि सम सुखद जो होय ,कहा बापुरो भानु है तपै तरैयन खोय ।
अर्थ:- उस शासन की सराहना करनी चाहिये जिसमें छोटे साधारण लोग भी इज्जत और सुख से जीवन जी सकते हों।
जिसमें सभी सूर्य की भाँति चमक सकें और चाँद की तरह शीतलता और सुख प्राप्त कर सकें।जहां लोगों को किसी तरह की तपिश कष्ट न हो।
- रहिमन ऑटा के लगे बाजत है दिन रात ।घिउ शक्कर जे खात है तिनकी कहाँ विसात
अर्थ:-ढोल नगाड़ा आदि पर जब ऑटे का लेप लगा दिया जाता है तो उससे मधुर स्वर निकलता है जो मालिक का घी शक्कर खा रहा है उन्हें तो हमेशा मालिक के मन मुताबिक हाँ में हाँ मिलाने के सिवा अन्य कोई चारा नही है ।
- कागद को सो पूतरा सहजहि में घुलि,जाय रहिमन यह अचरच लखो सोउ खैचत बाय ।
अर्थ:-कागज पानी में आसानी से तुरंत घुल जाता है और घुलते घुलते भी पानी के अंदर से भी हवा को खीचता है।
मनुष्य का शरीर भी इसी प्रकार मरते समय भी माया मोह और घमंड को नही छोड़ता है।
- ससि सुकेस साहस सलिल मान सनेह रहीम।बढ़त बढ़त बढि जात है घटत घटत घटि सीम
अर्थ:-चाँद सुन्दर बाल साहस जल प्रतिश्ठा और स्नेह धीरे धीरे बढ़ जाता है औरधीरे धीरे कम भी हो जाता है। इन्हें बढाने की कोशिश करनी चाहिये लेकिन घमंड होने से इनमें क्रमशः कमी आने लगती हैं।
- रहिमन यह तन सूप है लीजै जगत,पछोर हलुकन को उडि जान दै गरूक राखि बटोर
अर्थ:-यह संसार अन्न का भंडार और शरीर एक सूप के समान है जो हल्की चीजों को उड़ा देता है और भारी वस्तुओं को बटोर कर रख लेता है । महत्वहीन वस्तुओं और विचारों को उड़ जाने दो और महत्वपूर्ण तथ्यों का संग्रह करो ।
28. रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाये टूटे से फिर ना जुटे जुटे गांठ परि जाये ।
अर्थ:-प्रेम के संबंध को सावधानी से निभाना पड़ता है । थोड़ी सी चूक से यह संबंध टूट जाता है । टूटने से यह फिर नहीं जुड़ता है और जुड़ने पर भी एक कसक रह जाती है।
- वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग । बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी को रंग ।।
अर्थ:-रहीम दास जी कहते है कि धन्य है वो लोग, जिनका जीवन सदा परोपकार के लिए बीतता है, जिस तरह फूल बेचने वाले के हाथों में खुशबू रह जाती है । ठीक उसी प्रकार परोपकारियों का जीवन भी खुश्बू से महकता रहता है ।
- मानो कागद की गुड़ी चढी सुप्रेम अकास,सुरत दूर चित खैचई आइ रहै उर पास ।
अर्थ:-प्रेम भाव कागज के पतंग की तरह धागा के सहारा से आकाश तक चढ जाता है। प्रेमी को देखते हीं वह चित्त को खींच लेता है और प्रेम हृदय से लग जाता है।
- बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय |
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय ॥
अर्थ:-रहीमदास जी इस दोहे में कहते हैं जिस प्रकार फटे हुए दूध को मथने से मक्खन नहीं निकलता है । उसी प्रकार प्रकार अगर कोई बात बिगड़ जाती है तो वह दोबारा नहीं बनती।
- आबत काज रहीम कहि गाढे बंधु सनेह जीरन होत न पेड़ ज्यों थामें बरै बरेह ।
अर्थ:-दुख के समय अपने प्रिय भाई बंधु स्नेही हीं काम आते हैं। बरगद के वृक्ष को कोई गिराने लगता है तो उसके सजातीय बृक्ष हीं उसे गिरने से रोक लेते हैं और वह पुनः बढने फलने लगता है।
- “आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि।ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि ॥”
अर्थ:-रहीम कहते हैं कि – ज्यों ही कोई किसी से कुछ मांगता है त्यों ही आबरू, आदर और आंख से प्रेम चला जाता है। इसलिए सम्मान बनाए रखना है तो कभी किसी से कुछ न मांगे।
- कह रहीम कैसे बनै अनहोनी है जाय ।मिला रहै औना मिलै तासो कहा बसाय ।
अर्थः-जब समय ठीक नही रहता है तो कुछ भी ठीक नही रह पाता है। बात बनते बनते बिगड़ जाती है। अनहोनी हो जाती है। नही होने वाली बात भी हो जाती है। लगता है वह इच्छित वस्तु मिल जायेगी लेकिन वह नही मिलती है।
- कहि रहीम संपति सगे बनत बहुत बहु रीत,विपति कसौटी जे कसे तेई सांचे मीत
अर्थ:-संपत्ति रहने पर लोग अपने सगे संबंधी अनेक प्रकार से खोज कर बन जाते हैं। लेकिन विपत्ति संकट के समय जो साथ देता है वही सच्चा मित्र संबंधी है।
- सबै कहाबै लसकरी सब लसकर कह जाय।रहिमन सेल्ह जोई सहै सो जागीरे खाय ।
अर्थ:-सेना के सभी लोग सैनिक कहे जाते हैं। सभी मिलकर हीं लड़ाई करते हैं परन्तु जो सैनिक तमाम कष्टो को सह कर राजा को विजय दिलाते हैं उन्हीं की इज्जत होती है और इनाम जागीर दी जाती है।
- दोनों रहिमन एक से जौं लों बोलत नाहि जान परत हैं काक पिक ऋतु बसंत के माँहि
अर्थ:-कौआ और कोयल दोनों काले एक जैसे देखने में होते है जब तक वे बोलते नही हैं- पता करना कठिन है। लेकिन बसंत ऋतु में कोयल की कूक और कौआ का कॉव कॉव करने पर उनका भेद खुल जाता है। बाहरी रूप रंग से ब्यक्ति की पहचान कठिन है पर भीतरी आवाज से सबों का असलियत पता चल जाता है।
38. चाह गई चिंता मिटी मनुआ बेपरवाह । जिनको कुछ नहीं चाहिए, वे शाहों के शाह।
अर्थ जिन लोगों को कुछ नहीं चाहिए वो लोग राजाओं के राजा हैं, क्योंकी उन्हें ना तो किसी चीज की चाह हैं, ना ही चिन्ता और मन तो पूरा बेपरवाह हैं।
39. रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सुन । पानी गये न ऊबरे, मोटी मानुष चुन ॥
अर्थ : इस दोहे में रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है, पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में है जब इसका मतलब विनम्रता से है। रहीम कह रहे हैं की मनुष्य में हमेशा विनम्रता होनी चाहिये। पानी का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है जिसके बिना मोटी का कोई मूल्य नहीं। पानी का तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे से जोड़कर दर्शाया गया है। रहीमदास का ये कहना है की जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोटी का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी यानी विनम्रता रखनी चाहिये जिसके बिना उसका मूल्यहास होता है।
- मन मोटी अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय ।फट जाये तो न मिले, कोटिन करो उपाय ।।
अर्थ : मन, मोती, फूल, दूध और रस जब तक सहज और सामान्य रहते हैं तो अच्छे लगते हैं लेकिन अगर एक बार वो फट जाएं तो
कितने भी उपाय कर लो वो फिर से सहज और सामान्य रूप में नहीं आते।
कबीर दास के दोहे अर्थ सहित, जीवन परिचय | kabir ke dohe