राधारानी का स्वप्न में दर्शन देना श्री कृष्णदास बाबा जी को

राधारानी का स्वप्न में दर्शन देना – श्रीकृष्णदास बाबा जी (रनवारी) उस दिन जब यह आश्चर्यजनक घटना घटी, सिद्ध श्रीजगन्नाथ दास बाबा और उनके शिष्य श्रीबिहारीदास बाबा रनवारी में श्रीकृष्णदास बाबा के निकट ही एक कुटिया में ठहरे हुए थे। शेष रात्रि में श्री जगन्नाथदास बाबा ने बिहारीदास बाबा को पुकारते हुए कहा- ‘बिहारी ! … Read more

ब्रज के भक्त श्री नित्यानन्द दास बाबा जी का श्री कृष्ण प्रेम

ब्रज के भक्त श्रीनित्यानन्ददास बाबाजी (ब्रह्मकुण्ड) का श्री कृष्ण प्रेम रागानुगीय सिद्ध महात्माओं में गोवर्धन के सिद्ध श्रीकृष्णदास बाबा के शिष्य श्रीनित्यानन्ददास बाबा थे अद्वितीय। उनकी मनोगति थी गङ्गा के प्रवाह के समान अविच्छिन्ना-स्वप्न, जागरण और सुषुप्ति तीनों अवस्थाओं में एक-सी ! जागरण में वे रहते गम्भीर, निःस्पन्द, और समाधिस्थ। आहार-विहार और शौचादि कृत्य के … Read more

नन्दगांव के महात्मा और पुजारी का भूत | श्री कृष्ण लीला

नन्दगांव के महात्मा और पुजारी का भूत बहुत दिन हुए नन्दीश्वर के निकट यशोदाकुण्ड के पास एक गुफा में एक महात्मा भजन करते थे। दिन डूबने से थोड़ी देर पहले गुफा से निकलते थे। शौचादि कर मधुकरी के लिए गाँव में जाते थे। जो कुछ मिल जाता था उससे उदरपूर्ति कर फिर गुफा के भीतर … Read more

नाम जप का प्रभाव श्रीदुर्लभदास बाबा जी की कथा | वृन्दावन संत

नाम जप का प्रभाव श्रीदुर्लभदास बाबाजी (गोविन्दकुण्ड) श्रीगोविन्दकुण्ड में जब श्रीमनोहरदास बाबाजी ने रहना प्रारम्भ किया, उस समय कुण्ड के उत्तरी तट पर श्रीदुर्लभदास बाबाजी भजन करते थे। वृन्दावन में प्लेग का प्रकोप हुआ। दुर्लभदास एक दिन दोपहर की कड़ी धूप में एक नीम के वृक्ष के नीचे बैठे थे। हाथ में माला थी, नाम … Read more

जब ठाकुर जी ग्वाल बाल के साथ दर्शन देने आये – श्री जय कृष्णदास बाबाजी (काम्यवन)

जब ठाकुर जी ग्वाल बाल के साथ दर्शन देने आये – श्री जय कृष्णदास बाबाजी (काम्यवन) भक्त को भगवान् को खोजना नहीं पड़ता। भगवान् स्वयं उसे खोज लेते हैं। भक्त जितना भगवान् के दर्शन की इच्छा करता है, उससे कहीं अधिक भगवान् उसके दर्शन के लिए उतावले रहते हैं। भक्त जितना भगवान् को प्राप्त कर … Read more

कैसे श्री जगन्नाथ भगवान श्री वृन्दावन आए -श्री हरिदास बाबाजी

जगन्नाथ भगवान – श्रीहरिदास बाबाजी (वृन्दावन) कैसे प्रकट हुए बांकेबिहारी जी त्रिलोकी में जितने स्थान हैं सब त्रिलोकपति श्री भगवान् के हैं। वे अपने आंशिक परमात्मस्वरूप से सर्वत्र विराजमान हैं। पर उन्हें ब्रजभूमि जितनी प्रिय है उतनी और कोई भूमि प्रिय नहीं है। वे स्वयंरूप से यहाँ सदा विराजमान हैं; पर उनके अन्य रूपों को … Read more