Bhakti Status or Shayri
प्रेम बिना जो भक्ति है, सो निज दम्भ विचार । उदर भरन के कारने, जन्म गँवायो सार ॥
भक्ति प्रान तें होत है, मन दे कीजै भाव । परमारथ परतीत में,यह तन जाव तो जाव ॥
भक्ति दान मोहि दीजिये, गुरु देवन के देव । और कछु नहिं चाहिए, निसिदिन तुम्हरी सेव ॥
कथा कीरतन कलि विषै, भौसागर की नाव । कह कबीर जग तरन को, नाहीं और उपाव || कथा कीरतन करन की, जाके निसदिन रीति । कह कबीर उस साध से ,निस्चै कीजै प्रीति ॥ कथा कीरतन छोड़ करि, करै जो और उपाय । कह कबीर ता साध के, पास कोई मत जाय ||
भक्ति बिगाड़ी कामिया, इन्द्रिय केरे स्वाद । हीरा खोया हाथ से, जन्म गँवायो बाद || कामी क्रोधी लालची, इनसे भक्ति न होय । भक्ति करे कोई सूरमा, जात वर्ण कुल खोय || जातवर्ण कुल खोय के, भक्ति करो चित्त लाय । कह कबीर सतगुरु मिलें, आवागमन मिटाय ||
एक भगति भगवान जिह प्रानी के नाहि मन ॥ जैसे सूकरु सुआन नानक मानो ताहि तन ॥
मोहिं भक्ति प्रिय सन्तत, अस विचारि सुनु काग | काय वचन मन मम चरण, करेहु अचल अनुराग ॥
भक्ति गेंद चौगान की, भावें कोई ले जाय । कह कबीर कुछ भेद नहीं, कहा रंक कहा राय ॥
कबीर गुरु की भक्ति बिन, धृग जीवन संसार । धुआं का सा धौलहर, जात न लागे बार ||
भक्ति बिना नहीं निस्तरै, लाख करे जो कोय । प्रेम सनेही होय रहै, घर को पहुँचे सोय || भक्ति निसैनी मुक्ति की, सन्त चढ़े सब धाय । जिन जिन मन आलस किया, जन्म जन्म पछताय ॥
सूरा सोई सराहिये, जो लड़े धनी के हेत । पुर्जा पुर्जा होय रहे, तऊ न छाड़े खेत ॥ तीर तुपक से जो लड़े, सो तो सूर न होय माया तज भक्ति करे सूर कहावे सोय कबीर प्याला प्रेम का, बहुत रहे हुलसाय । सिर सौंपे सो पीवसी, नातर पीया न जाय ॥ कबीर हम गुरु रस पिया, बाकी रही न छाक।पाका कलश कुम्हार का, बहुड़ न चढ़सी चाक । जिन सिर सौंपा गुरु को, होय रहा तिस दास । सत कबीर कर जानिए, कटे काल की फास ॥ सेवा फल मांगै नहीं, सेव करे दिन रात । कहे कबीर ता दास पर, काल करे नहीं घात ॥
मान बड़ाई देखकर, भक्ति करे संसार । जब कुछ देखे हीनता, औगुन धरै गंवार || ॥
भक्ति दुहेली गुरु की, नहीं कायर का काम । सीस उतारे हाथ से, सो लैसी सत्तनाम ॥