Asa di Vaar in hindi

Asa di Vaar

Asa di Vaar in hindi (आसा दी वार )

ॐ सतिगुर प्रसादि ॥

आसा महला ४ छंत घरु ४ ॥

हरि अमित भिंने लोइणा मनु प्रेमि रतंना राम राजे ॥

मनु रामि कसवटी लाइआ कंचनु सोविंना ॥

गुरमुखि रंगि चलूलिआ मेरा मनु तनो भिंना ॥

जनु नानकु मुसकि झकोलिआ सभु जनमु धनु धंना ॥९॥

१७ सतिनामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥

आसा महला १ ॥

वार सलोका नालि सलोक भी महले पहिले के लिखे टुडे अस राजै की धुनी ॥

सलोकु मः १ ॥

बलिहारी गुर आपणे दिउहाड़ी सद वार ॥

जिनि माणस ते देवते कीए करत न लागी वार ॥१॥

महला २ ॥

जे सउ चंदा उगवहि सूरज चड़हि हजार ॥

एते चानण होदिआं गुर बिनु घोर अंधार ॥२॥

मः १ ॥

नानक गुरु न चेतनी मनि

बपुड़े भी तन विचि सुआह ॥३॥

पउड़ी ॥

आपीन्है आपु साजिओ आपीन्है रचिओ नाउ ॥

दुयी कुदरति साजीएं कार आसणु डिठो चाउ ॥

दाता करता आपि तूं तुसि देवहि करहि पसाउ ॥

तूं जाणोई सभसै दे लैसहि जिंदु कवाउ ॥

करि आसणु डिठो चाउ ॥९॥

(छंत) हरि प्रेम बानी मनु मार्या अणियाले अणिया राम राजे ॥

जिसु लागी पीर पिरंम की सो जानै जरिया ॥

जीवन मुकति सो आखीऐ मरि जीवै मरिया ॥

जन नानक सतिगुरु मेलि हरि जगु दुतरु तरिया ॥२॥

सलोकु मः ९ ॥

सचे तेरे खंड सचे ब्रहमंड ॥

सचे तेरे लोअ सचे आकार ॥

सचे तेरे करणे सरब बीचार ॥

सचा तेरा अमरु सचा दीबाणु ॥

सचा तेरा हुकमु सचा फुरमाणु ॥

सचा तेरा करमु सचा नीसाणु ॥

सचे तुधु आखहि लख करोड़ि ॥

सचै सभि ताणि सचै सभि जोरि ॥

सची तेरी सिफति सची सालाह ॥

सची तेरी कुदरति सचे पातिसाह ॥

नानक सचु धिआइनि सचु ॥

जो मरि जमे सु कचु निकचु ॥९॥

मः १ ॥

वडी वडिआई जा वडा नाउ ॥

वडी वडिआई जा सचु निआउ ॥

वडी वडिआई जा निहचल थाउ ॥

वडी वडिआई जाणै आलाउ ॥

वडी वडिआई बुझै सभि भाउ ॥

वडी वडिआई जा पुछि न दाति ॥

वडीवडिआई जा आपे आपि ॥

नानक कार न कथनी जाइ ॥

कीता करणा सरब रजाइ ॥२॥

महला २ ॥

इहु जगु सचै की है

कोठडी सचे का विचि वासु ॥

इकन्हा हुकमि समाइ लए इकन्हा हुकमे करे विणासु ॥

इकन्हा भाणै कढि लए इकन्हा • माइआ विचि निवासु ॥

एव भि आखि न जापई जि किसै आणे रासि ॥

नानक गुरमुखि जाणीऐ जा कर आपि करे परगासु ॥३॥

पउड़ी ॥

नानक जीअ उपाइ कै लिखि नावै धरमु बहालिआ ॥

ओथै सचे ही सचि निबडै चुणि वखि कठे जजमालिआ ॥

थाउ न पाइनि कूडिआर मुह काल्है दोजकि चालिआ ॥

तेरै नाइ रते से जिणि गए हारि गए सि ठगण वालिआ ॥

लिखि नावै धरमु बहालिआ ॥२॥

(छंत) हम मूरख मुगध सरणागती मिलु गोविन्द रंगा राम राजे ॥

गुरि पूरै हरि पायआ हरि भगति इक मंगा ॥

मेरा मनु तनु सबंदि विगास्या जपि अनत तरंगा ॥

मिलि संत जना हरि पायआ नानक सतसंगा ॥३॥

सलोक मः १ ॥

विसमादु नाद विसमादु वेद ॥

विसमादु जीअ विसमादु भेद ॥

विसमादु रूप विसमादु रंग ॥

विसमादु नागे फिरहि जत ॥

विसमादु पउणु विसमादु पाणी ॥

विसमादु अगनी खेडहि विडाणी ॥

विसमादु धरती विसमादु खाणी ॥

विसमादु सादि लगहि पराणी ॥

विसमादु संजोगु विसमादु विजोगु ॥

विसमादु भुख विसमादु भोगु ॥

विसमादु सिफति विसमाद् सालाह ॥

विसमाद् उझड विसमाद् राह ॥

विसमाद् नेर्डे विसमाद् दूरि ॥

विसमाद् देखै हाजरा हजूरि ॥ वेखि

विडाणु रहिआ विसमादु ॥

नानक बुझणु पूरै भागि ॥१॥

मः १ ॥

कुदरति दिसै कुदरति सुणीऐ कुदरति भउ सुख सारु ॥

कुदरति पाताली आकासी कुदरति सरब आकारु ॥

कुदरति वेद पुराण कतेबा कुदरति सरब वीचारु ॥

कुदरति खाणा पीणा पैन्हणु कुदरति सरब पिआरु ॥

कुदरति जाती जिनसी रंगी कुदरति जीअ जहान ॥

कुदरति नेकीआ कुदरति बदीआ कुदरति मानु अभिमानु ॥

कुदरति पउणु पाणी वैसंतरु कुदरति धरती खाकु ॥

सभ तेरी कुदरति तूं कादिरु करता पाकी नाई पाकु ॥

नानक हुकमै अंदरि वेखै वरतै ताको ताकु ॥२॥ पउड़ी ॥

आपीन्दै भोग भोगि कै होइ भसमड़ि भउरु सिधाइआ ॥

वडा होआ दुनीदारु गलि संगलु घति चलाइआ ॥

अगै करणी कीरति वाचीऐ बहि लेखा करि समझाइआ ॥

थाउ न होवी पउदीई हुणि सुणीऐ किआ रूआइआ ॥

मनि अंधै जनमु गवाइआ ॥३॥

(छंत) दीन दयाल सुनि बेनती हरि प्रभ हरि रायआ राम राजे ॥

हउ मागउ सरनि हरि नाम की हरि हरि मुखि पायआ ॥

भगति वछलु हरि बिरदु है हरि लाज रखायआ ॥

जनु नानकु सरणागती हरि नामि तरायआ ॥४॥९॥८॥

सलोक मः १ ॥

भै विचि पवणु वहै सदवाउ ॥

भै विचि चलहि लख दरी आउ ॥

भै विचि अगनि कठै वेगारि ॥

भै विचि धरती दवी भारि ॥

भै विचि इंदू फिरै सिर भारि ॥

भै विचि राजा धरम दुआरु ॥

भै विचि सूरजु भै विचि चंदू ॥ कोह करोड़ी चलत न अंतु ॥

भै विचि सिध बुध सुर नाथ ॥

भै विचि आडाणे आकास ॥

भै विचि जधि महावल सूर ॥

भावाचे आवाह जवाह पूर ॥

सगलिआ भउ लिखिआ सिरि लेखु ॥

नानक निरभउ निरंकारु सचु एकु ॥१॥

मः १ ॥

नानक निरभउ निरंकारु होरि केते राम रवाल ॥

केतीआ कन्ह कहाणीआ केते बेद बीचार ॥

केते नचहि मंगते गिडि मुडि पूरहि ताल ॥

बाजारी बाजार महि आइ कढहि बाजार ॥

गावहि राजे राणीआ बोलहि आल पताल ॥

लख टकिआ के मुंदडे लख टकिआ के हार ॥

जितु तनि पाईअहि नानका से तन होवहि छार ॥

गिआनु न गलीई ढूढीऐ कथना करड़ा सारु ॥

करमि मिलै ता पाईए होर हिकमति हुकमु खुआरु ॥२॥

पउड़ी ॥

नदरि करहि जे आपणी ता नदरी सतिगुरु पाइआ ॥

एहु जीउ बहुते जनम भरमिआ ता सतिगुरि सबदु सुणाइआ ॥

सतिगुर जेवडु दाता को नही सभि सुणिअहु लोक सबाइआ ॥

सतिगुरि मिलिऐ सचु पाईआ जिन्ही विचहु आपु गवाइआ ॥

जिनि सचो सचु बुझाइआ ॥४॥

(उंत) आसा महला ४ ॥

गुरमुखि ढूंढि ढूंढेद्या हरि सजनु लधा राम राजे ॥

कंचन कायआ कोट गड विचि हरि हरि सिधा ॥

हरि हरि हीरा रतनु है मेरा मनु तनु विधा ॥

धुरि भाग वडे हरि पायआ नानक रसि गुधा ॥१॥

सलोक मः १ ॥

घड़ीआ सभे गोपीआ पहर कंन्ह गोपाल ॥

गहणे पउणु पाणी वैसंतरु चंदु सूरजु अवतार ॥

सगली धरती मालु धनु वरतणि सरब जंजाल ॥

नानक मुसै गिआन विहूणी खाइ गइआ जमकालु ॥१॥ मः १ ॥

वाइनि चेले नचनि गुर पैर हलाइनि फेरन्हि सिर ॥

उडि उडि रावा झाटै पाइ ॥

वेखै लोकु हसै घरि जाइ ॥

रोटीआ कारणि पूरहि ताल ॥

आपु पछाड़हि धरती नालि ॥

गावनि गोपीआ गावनि कान्ह ॥

गावनि सीता राजे राम ॥

निरभउ निरंकारु सचु नामु ॥

जा का कीआ सगल जहानु ॥

सेवक सेवहि करमि चडाउ ॥

भिंनी रैणि जिन्हा मनि चाउ ॥

सिखी सिखिआ गुर वीचारि ॥

नदरी करमि लघाए पारि ॥

कोलू चरखा चकी चकु ॥

थल वारोले बहुतु अनंतु ॥

लाटू माधाणीआ अनगाह ॥

पंखी भउदीआ लैनि न साह ॥

सूऐ चाडि भवाईअहि जंत ॥

नानक भउदिआ गणत न अंत ॥

बंधन बंधि भवाए सोइ ॥

पड़ऐ किरति नचै सभु कोइ ॥

नचि नचि हसहि चलहि से रोइ ॥

उडि न जाही सिध न होहि ॥

नचणु कुदणु मन का चाउ ॥

नानक जिन्ह मनि भउ तिन्हा मनि भाउ ॥२॥

पउड़ी ॥

नाउ तेरा निरंकारु है नाइ लइऐ नरकि न जाईऐ ॥

जीउ पिंडु सभु तिस दा दे खाजै आखि गवाईऐ ॥

जे लोडहि चंगा आपणा करि पुंनहु नीचु सदाईऐ ॥

जे जरवाणा परहरै जरु वेस करेदी आईऐ ॥

को रहै न भरीऐपाईऐ ॥५॥

(छंत) पंथु दसावा नित खड़ी मुंध जोबनि बाली राम राजे ॥

हरि हरि नामु चेताय गुर हरि मारगि चाली ॥

मेरै मनि तनिनाम आधारु है हउमै बिख जाली ॥

जन नानक सतिगरु मेलि हरि हरि मिल्या बनवाली ॥२॥

सलोक मः १ ॥

मुसलमाना सिफति सरीअति पड़ि पड़ि करहि बीचारु ॥

बंदे से जि पवहि विचि बंदी वेखण कउ दीदारु ॥

हिंदू सालाही सालाहनि दरसनि रूपि अपारु ॥

तीरथि नावहि अरचा पूजा अगर वासु बहकारु ॥

जोगी सुंनि धिआवन्हि जेते अलख नामु करतारु ॥

सूखम मूरति नामु निरंजन काइआ का आकारु ॥

सतीआ मनि संतोखु उपजै देणें कै वीचारि ॥

दे दे मंगहि सहसा गूणा सोभ करे संसारु ॥

चोरा जारा तै कूड़िआरा खाराबा वेकार ॥

इकि होदा खाइ चलहि ऐथाऊ तिना भि काई कार ॥

जलि थलि जीआ पुरीआ लोआ आकारा आकार ॥

ओइ जि आखहि सु तूहै जाणहि तिना भि तेरी सार ॥

नानक भगता भुख सालाहणु सचु नामु आधारु ॥

सदा अनंदि रहहि दिनु राती गुणवंतिआ पा छारु ॥१॥ मः १ ॥

मिटी मुसलमान की पेडै पई कुम्हिआर ॥

घडि भांडे इटा कीआ जलदी करे पुकार ॥

जलि जलि रोवै बपुडी झड़ि झड़ि पवहि अंगिआर ॥

नानक जिनि करतै कारणु कीआ सो जाणे करतारु ॥२॥

पउड़ी ॥

बिनु सतिगुर किनै न पाइओ बिनु सतिगुर किनै न पाइआ ॥

सतिगुर विचि आपु रखिओनु करि परगटु आखि सुणाइआ ॥

सतिगुर मिलिऐ सदा मुकतु है जिनि विचहु मोहु चुकाइआ॥

उतमु एहु बीचारु है जिनि सचे सिउ चितु लाइआ ॥

जगजीवनु दाता पाइआ ॥६॥

(छंत) गुरमुखि प्यारे आइ मिलु मै चिरी विठुन्ने राम राजे ॥

मेरा मनु तनु बहुतु बैराग्या हरि नैन रसि भिन्ने ॥ मै हरि प्रभु

प्यारा दसि गुरु मिलि हरि मनु मन्ने ॥

हउ मूरखु कारै लाईआ नानक हरि कमे ॥३॥

सलोक मः १ ॥

हउ विचि आइआ हउ विचि गइआ ॥

हउ विचि जमिआ हउ विचि मुआ ॥

हउ विचि दिता हउ विचि लड़आ ॥

हउ विचि खटिआ हउ विचि गइआ ॥

हउ विचि सचिआरु कूडिआरु ॥

हउ विचि पाप पुंन वीचारु ॥

हउ विचि नरकि सुरगि अवतारु ॥

हउ विचि हसै हउ विचि रोवै ॥

हउ विचि भरीऐ हउ विचि धोवै ॥

हउ विचि जाती जिनसी खोवै ॥

हउ विचि मूरखु हउ विचि सिआणा ॥

मोख मुकति की सार न जाणा ॥

हउ विचि माइआ हउ विचि छाइआ ॥

हउमै करि करि जत उपाइआ ॥

हउमै बूझै ता दरु सूझै ॥

गिआन विहूणा कथि कथि लूझै ॥

नानक हुकमी लिखीऐ लेखु ॥

जेहा वेखहि तेहा वेखु ॥९॥

महला २ ॥

हउमै एहा जाति है हउमै करम कमाहि ॥

हउमै एई बंधना फिरि फिरि जोनी पाहि ॥

हउमै किथहु ऊपजै कितु सजमि इह जाइ ॥

हउमै एहो हुकमु हैं पड़ऐ किरति फिराहि ॥

हउमै दीरघ रोगु है दारू भी इसु माहि ॥

किरपा करे जे आपणी ता गुर का सबदु कमाहि ॥

नानकु कहै सुणहु जनहु इतु संजमि दुख जाहि ॥२॥

पउडी ॥

सेव कीती संतोखीई जिन्ही सचो सचु धिआइआ ॥

ओन्ही मंदै पैरु न रखिओ करि सुक्रितु धरमु कमाइआ ॥

ओन्ही दुनीआ तोडे बधना अनु पाणी थोडाखाइआ ॥

तू बखसीसी अगला नित देवहि चडहि सवाइआ ॥

वडिआई वडा पाइआ ॥७॥

(छंत) गुर अंमृत भिन्नी देहुरी अमृतु बुरके राम राजे ॥

जिना गुरबानी मनि भाईआ अंमृति छकि छके ॥

गुर तुठे हरि पायआ चूके धक धके ॥

हरि जनु हरि हरि होया नानकु हरि इके ॥४॥२॥९॥

सलोक मः ९ ॥

पुरखां बिरखां तीरथां तटां मेघां खेताह ॥

दीपां लोआं मंडलां खंडां वरभंडाह ॥

अडज जेरज उत्तभुजां खाणी सेतजाह ॥

सो मिति जाणै नानका सरां मेरा जंताह ॥

नानक जंत उपाइ कै समाले सभनाह ॥

जिनि करतै करणा कीआ चिंता भि करणी ताह ॥

सो करता चिंता करे जिनि उपाइआ जगु ॥

तिसु जोहारी सुअसति तिसु तिसु दीवाणु अभगु ॥

नानक सचे नाम बिनु किआ टिका किआ तगु ॥१॥

मः १ ॥

लख नेकीआ चंगिआईआ लख पुंना परवाणु ॥

लख तप उपरि तीरथा सहज जोग बेबाण ॥

लख सूरतण संगराम रण महि छुटहि पराण ॥

लख सुरती लख गिआन धिआन पड़ीअहि पाठ पुराण ॥

जिनि करतै करणा कीआ लिखिआ आवण जाणु ॥

नानक मती मिथिआ करमु सचा नीसाणु ॥२॥

पउड़ी ॥

सचा साहिबु एकु तूं जिनि सचो सचु वरताइआ ॥

जिसु तूं देहि तिसु मिलै सचु ता तिन्ही सचु कमाइआ ॥

सतिगुरि मिलिऐ सचु पाइआ जिन्ह कै हिरदै सचु वसाइआ ॥

मूरख सचु न जाणन्ही मनमुखी जनमु गवाइआ ॥

विचि दुनीआ काहे आइआ ॥८॥

आमा सहला ४ ॥

हरि अमत भगति भंडार है गर सतिग्र पासे राम राजे ॥

गुरु सतिगुरु सचा साह है सिख देइ हरि रासे ॥

धनु धन्नु वणजारा वणजु है गुरु साहु साबासे ॥

जनु नानकु गुरु तिनी पायआ जिन धुरि लिखतु लिलाटि लिखासे ॥

सलोकु मः ९ ॥

पड़ि पड़ि गडी लदीअहि पड़ि पड़ि भरीअहि साथ ॥

पडि पडि बेड़ी पाईए पडि पड़ि गडीअहि खात ॥

पड़ीअहि जेते बरस बरस पड़ीअहि जेते मास ॥

पड़ीऐ जेती आरजा पड़ीअहि जेते सास ॥

नानक लेखै इक गल होरु हउमै झखणा झाख ॥९॥

मः १ ॥

लिखि लिखि पड़िआ ॥

तेता कड़िआ ॥

बहु तीरथ भविआ ॥

तेतो लविआ ॥

बहु भेख कीआ देही दुखु दीआ ॥

सहु वे जीआ अपणा कीआ ॥

अंनु न खाइआ सादु गवाइआ ॥

बहु दुखु पाइआ दूजा भाइआ ॥

बसत्र न पहिरै ॥

अहिनिसि कहरै ॥

मोनि विगूता ॥

किउ जागै गुर बिनु सूता ॥

पग उपेताणा ॥

अपणा कीआ कमाणा ॥

अलु मलु खाई सिरि छाई पाई ॥

मूरखि अंधै पति गवाई ॥

विणु नावै किछु थाइ न पाई ॥

रहै बेबाणी मडी मसाणी ॥

अंधु न जाणै फिरि पछुताणी ॥

सतिगुरु भेटे सो सुख पाए ॥

हरि का नाम मंनि वसाए ॥

नानक नदरि करे सो पाए ॥

आस अंदेसे ते निहकेवलु हउमै सबदि जलाए ॥२॥

पउडी ॥

भगत तेरै मनि भावदे दरि सोहनि कीरति गावदे ॥

नानक करमा बाहरे दरि ढोअ न लहन्ही धावदे ॥

इकि मूलु न बुझन्हि आपणा अणहोदा आपु गणाइदे ॥

हउ ढाढी का नीच जाति होरि उतम जाति सदाइदे ॥

तिन्ह मंगा जि तुझे धिआइदे ॥९॥

(छंत) सचु साहु हमारा तूं धनी सभु जगतु वणजारा राम राजे ॥

सभ भांडे तुधै साज्या विचि वसतु हरि थारा ॥

जो पावह भांडे विचि वसतु सा निकलै क्या कोयी करे वेचारा ॥

जन नानक कउ हरि बखस्या हरि भगति भंडारा ॥२॥

सलोकु मः १ ॥

कूडु राजा कूडु परजा कूडु सभु संसारु ॥

कूडु मंडप कूडु माडी कूडु बैसणहारु ॥

कूडु सुइना कूडु रुपा कूडु पैन्हणहारु ॥

कूडु काइआ कूडु कपडु कूडु रूपु अपारु ॥

कूडु मीआ कूडु बीबी खपि होए खारु ॥

कूडि कूडै नेहु लगा विसरिआ करतारु ॥

किसु नालि कीचै दोसती सभु जगु चलणहारु ॥

कूड मिठा कूड माखिउ कूडु डोबे पूरु ॥

नानकु वखाणै बेनती तुधु वाझु कूडो कूडु ॥१॥

मः १ ॥

सचु ता परु जाणीऐ जा रिदै सचा होइ ॥

कूड की मलु उत्तरै तनु करे हछा धोड़ ॥

सचु ता परु जाणीऐ जा सचि धरे पिआरु ॥

नाउ सुणि मनु रहसीऐ ता पाए मोख दुआरु ॥

सचु ता परु जाणीऐ जा जुगति जाणै जीउ ॥

धरति काइआ साधि कै विचि देइ करता बीउ ॥

सचु ता परु जाणीऐ जा सिख सची लेड़ ॥

दइआ जाणें जीअ की किछु पुनु दानु करेइ ॥

सचु तां परु जाणीऐ जा आतम तीरथि करे निवासु ॥

सतिगुरु नो पुछि कै बहि रहै करे निवासु ॥

सचु सभना होइ दारू पाप कठै धोइ ॥

नानकु वखाणै बेनती जिन सचु पलै होइ ॥२॥

पउड़ी ॥

दानु महिंडा तली खाकु जे मिलै त मसतकि लाईऐ ॥

कूडा लालचु छडीऐ होइ इक मनि अलखु धिआईऐ ॥

फलु तेवेहो पाईऐ जेवेही कार कमाईऐ ॥

जे होवै पूरबि लिखिआ ता धूड़ि तिन्हा दी पाईऐ ॥

मति थोड़ी सेव गवाईऐ ॥१०॥

(उंत) हम क्या गुन तेरे विथरह सुआमी तूं अपर अपारो राम राजे ॥

हरि नामु सालाहह दिनु राति एहा आस आधारो ॥

हम मूरख किछूय न जाणहा किव पावह पारो ॥

जनु नानकु हरि का दासु है हरि दास पनेहारो ॥३॥

सलोकु मः १ ॥

सचि कालु कूडु वरतिआ कलि कालख बेताल ॥

बीउ बीजि पति लै गए अब किउ उगवै दालि ॥

जे इकु होइ त उगवै रुती हू रुति होइ ॥

नानक पाहै बाहरा कोरै रंगु न सोइ ॥

भै विचि खुमबि चडाईऐ सरमु पाहू तनि होइ ॥

नानक भगती जे रपै कूडै सोइ न कोइ ॥१॥ मः १ ॥

लबु पापु दुइ राजा महता कूडु होआ सिकदारु ॥

कामु नेबु सदि पुछीऐ बहि बहि करे बीचारु ॥

अंधी रयति गिआन विहूणी भाहि भरे मुरदारु ॥

गिआनी नचहि वाजे वावहि रूप करहि सीगारु ॥

ऊचे कूकहि वादा गावहि जोधा का वीचारु ॥

मूरख पंडित हिकमति हुजति संजै करहि पिआरु ॥

धरमी धरमु करहि गावावहि मंगहिमोख दुआरु ॥

जती सदावहि जुगति न जाणहि छडि बहहि घर बारु ॥

सभु को पूरा आपे होवै घटि न कोई आखै ॥ पति

परवाणा पिछै पाईए ता नानक तोलिआ जापै ॥२॥ मः १ ॥

वदी सु वजगि नानका सचा वेखै सोइ ॥

सभनी छाला मारीआ . करता करे सु होइ ॥

अगै जाति न जोरु है अगै जीउ नवे ॥

जिन की लेखै पति पवै चंगे सेई केइ ॥३॥

पउडी ॥

धुरि करमु जिना कउ तुधु पाइआ ता तिनी खसमु धिआइआ ॥

एना जंता कै वसि किछु नाही तुधु वेकी जगतु उपाइआ ॥

इकना नो तूं मेलि लैहि इकि आपहु तुधु खुआइआ ॥

गुर किरपा ते जाणिआ जिथै तुधु आपु बुझाइआ ॥

सहजे ही सचि समाइआ ॥११॥

(छंत) ज्यु भावै त्यु राखि लै हम सरनि प्रभ आए राम राजे ॥

हम भूलि विगाइह दिनसु राति हरि लाज रखाए ।

हम बारिक तू गुरु पिता है दे मति समझाए ॥

जनु नानकु दासु हरि कांढ्या हरि पैज रखाए ॥४॥३॥१०॥

सलोकु मः १ ॥

दुखु दारू सुखु रोगु भइआ जा सुखु तामि न होई ॥

तू करता करणा मै नाही जा हउ करी न होई ॥१॥

बलिहारी कुदरति बसिआ ॥

तेरा अतु न जाई लखिआ ॥१॥

रहाउ ॥

जाति महि जोति जोति महि जाता अकल कला भरपूरि रहिआ ॥

तूं सचा साहिबु सिफति सुआल्हिउ जिनि कीती सो पारि पड़आ ॥

कहु नानक करते कीआ बाता जो किछु करणा सु करि रहिआ ॥२॥

मः २ ॥

जोग सबद गिआन सबद बेद सबद ब्राहमणह ॥

खत्री सबद सूर सबद सूद्र सबद परा क्रितह ॥

सरब सबद एक सबद जे को जाणै भेउ ॥

नानक ता का दासु है सोई निरंजन देउ ॥३॥

मः २ ॥

एक क्रिसन सरब देवा देव देवा त आतमा ॥

आतमा बासुदेवस्यि जे को जाणै भेउ ॥

नानकु ता का दासु है सोई निरंजन देउ ॥४॥ मः १ ॥

कुमभे बधा जलु रहै जल बिनु कुमभु न होइ ॥

गिआन का बधा मनु रहै गुर बिनु गिआनु न होइ ॥५॥

पउड़ी ॥

पड़िआ होवै गुनहगारु ता ओमी साधु न मारीऐ ॥

जेहा घाले घालणा तेवेहो नाउ पचारीऐ ॥

ऐसी कला न खेडीऐ जितु दरगह गइआ हारीऐ ॥

पडिआ अतै ओमीआ वीचारु अगै वीचारीऐ ॥

मुहि चलै सु अगै मारीऐ ॥१२॥

(छंत) आसा महला ४ ॥

जिन मसतकि धुरि हरि लिख्या तिना सतिगुरु मिल्या राम राजे ॥

अग्यानु अंधेरा कट्या गुर ग्यानु घटि बल्या ॥

हरि लधा रतनु पदारथो फिरि बहुडि न चल्या ॥

जन नानक नामु आराध्या आराधि हरि। मिल्या ॥१॥

सलोकु मः १ ॥

नानक मेरु सरीर का इकु रथु इकु रथवाहु ॥

जुगु जुगु फेरि वटाईअहि गिआनी बुझहि ताहि ॥

सतजुगि रथु संतोख का धरमु अगै रथवाहु ॥

त्रेतै रथु जतै का जोरु अगै रथवाहु ॥

दुआपुरि रथु तपै का सतु अगै रथवाहु ॥

कलजुगि रथु अगनि का कूडु अगै रथवाहु ॥९॥

मः १ ॥

साम कहै सेत्मबरु सुआमी सच महि आफै साचि रहे ॥

सभु को सचि समावै ॥

रिगु कहै रहिआ भरपूरि ॥

राम नामु देवा महि सूरु ॥

नाइ लइऐ पराछत जाहि ॥

नानक तउ मोखतरु पाहि ॥

जुज महिजोरि छली चंद्रावलि कान्ह किसन जादम भइआ ॥

पारजात गोपी लै आइआ बिंद्राबन महि रंग कीआ ॥

कलि महि बेदु अथरबणु हुआ नाउ खुदाई अलहु भइआ ॥

नील बसत्र ले कपड़े पहिरे तुरक पठाणी अमलु कीआ ॥

चारे वेद होए सचिआर ।॥ पड़हि गुणहि तिन्ह चार वीचार ॥

भाउ भगति करि नीचु सदाए ॥ तउ नानक मोखंतरु पाए ॥२॥

पउड़ी ॥ सतिगुर विटहु वारिआ जितु मिलिऐ खसमु समालिआ ॥

जिनि करि उपदेसु गिआन अंजनु दीआ इन्ही नेत्री जगतु निहालिआ ॥

खसमु छोडि दूजै लगे डुबे से वणजारिआ ॥

सतिगुरु है बोहिथा विरलै किनै वीचारिआ ॥

करि किरपा पारि उतारिआ ॥९३॥

(छंत) जिनी ऐसा हरि नामु न चेत्यो से काहे जगि आए राम राजे ॥

इहु मानस जनमु दुलंभु है नाम बिना बिरथा सभु जाए ॥

हुनि वतै हरि नामु न बीज्यो अगै भुखा क्या खाए ॥

मनमुखा नो फिरि जनमु है नानक हरि भाए ॥२॥

सलोकु मः ९ ॥

सिमल रुखु सराइरा अति दीरघ अति मुचु ॥

ओइ जि आवहि आस करि जाहि निरासे कितु ॥

फल फिके फुल बकबके कमि न आवहि पत ॥

मिठतु नीवी नानका गुण चंगिआईआ ततु ॥

सभु को निवै आप कउ पर कउ निवै न कोइ ॥

धरि ताराजू तोलीऐ निवै सु गउरा होइ ॥

अपराधी दूणा निवै जो हंता मिरगाहि ॥

सीसि निवाइए किआ भीऐ जा रिटै कुसुधे जाहि ॥९॥ मः १ ॥

पडि पुसतक संधिआ बाद ॥

सिल पूजसि बगुल समाधं ॥

मुखि झूठ विभूखण सारं ॥

त्रैपालतिहाल बिचार ॥

गलि माला तिलक लिलाटं ॥

दड धोती बसत्र कपाटं ॥

जे जाणसि ब्रहम करम ॥

सन्नि फोकट निसचउ करमं ॥

कहु नानक निहचउ धिआवै ॥

विणु सतिगुर वाट न पावै ॥२॥ पउड़ी ॥

कपडु रूपु सुहावणा छडि दुनीआ अंदरि जावणा ॥

मंदा चंगा आपणा आपे ही कीता पावणा ॥

हुकम कीए मनि भावदे राहि भीडै अगै जावणा ॥

नंगा दोजकि चालिआ ता दिसै खरा डरावणा ॥

करि अउगण पछोतावणा ॥१४॥

(छंत) तूं हरि तेरा सभु को सभि तुधु उपाए राम राजे ॥

किछु हाथि किसै दै किछु नाही सभि चलह चलाए ॥

जिन तू मेलह प्यारे से तुधु मिलह जो हरि मनि भाए ।

जन नानक सतिगुरु भेट्या हरि नामि तराए ॥३॥

सलोकु मः ९ ॥

दइआ कपाह संतोखु सूतु जलु गंढी सतु वटु ॥

एहु जनेऊ जीअ का हई त पाडे घतु ॥

ना एहु तुटै न मलु लगे ना एहु जलै न जाइ ॥

धंनु सु माणस नानका जो गलि चले पाइ ॥

चउकडि मुलि अणाइआ बहि चउकै पाइआ ॥

सिखा कनि चड़ाईआ गुरु ब्राहमणु थिआ ॥

ओहु मुआ ओहु झडि पड़आ वेतगा गइआ ॥१॥

मः १ ॥

लख चोरीआ लख जारीआ लख कूडीआ लख गालि ॥

लख ठगीआ पहिनामीआ राति दिनसु जीअ नाति ॥

तगु कपाहहु कतीऐ बाम्हणु वटे आइ ॥

कुहि बकरा रिन्हि खाइआ सभु को आखै पाइ ॥

होड़ पुराणा सुटीऐ भी फिरि पाईऐ होरु ॥

नानक तगु न तुटई जे तगि होवै जोरु ॥२॥

मः १ ॥

नाइ मनिऐ पति ऊपजै सालाही सचु सूतु ॥

दरगह अंदरि पाईए लगु न तूटसि पूत ॥३॥

मः १ ॥

तगु न इंद्री तगु न नारी ॥

भलके थुक पवै नित दाड़ी ॥

तगु न पैरी तगु न हथी ॥

तगु न जिहवा तगु न अखी ॥

वेतगा आपे वतै ॥

वटि धागे अवरा घतै ॥

लै भाडि करे वीआहु ॥

कढि कागलु दसे राहु ॥

सुणि वेखहु लोका एहु विडाणु ॥

मनि अंधा नाउ सुजाणु ॥४॥

पउडी ॥

साहिबु होइ दइआलु किरपा करे ता साई कार कराइसी ॥

सो सेवकु सेवा करे जिस नो हुकमु मनाइसी ॥

हुकमि मंनिऐ होवै परवाणु ता खसमै का महलु पाइसी ॥

खसमै भावै सो करे मनहु चिंदिआ सो फलु पाइसी ॥

ता दरगह पैधा जाइसी ॥१५॥

(छंत) कोयी गावै रागी नादी बेदी बहु भांति करि नही हरि हरि भीजै राम राजे ॥

जिना अंतरि कपटु विकारु है तिना रोड़ क्या कीजै ॥

हरि करता सभु किछु जाणदा सिरि रोग हथु दीजै ॥

जिना नानक गुरमुखि हिरदा सुधु है हरि भगति हरि लीजै ॥४॥ ४॥९९॥

सलोक मः १ ॥

गऊ बिराहमण कर करु लावहु गोबरि तरणु न जाई ॥

धोती टिका तै जपमाली धानु मलेछा खाई ॥

अंतरि पूजा पडहि कतेबा संजमु तुरका भाई ॥

छोडीले पाखंडा ॥ नामि लड़ऐ जाहि तरंदा ॥९॥ मः ९ ॥

माणस खाणे करहि निवाज ॥

छुरी वगाइनि तिन गलि ताग ॥

तिन घरि ब्रहह्मण पूरहि नाद ॥

उन्हा भि आवहि ओई साद ॥

कूड़ी रासि कूडा वापारु ॥

कूडु बोलि करहि आहारु ॥

सरम धरम का डेरा दूरि ॥

नानक कूडु रहिआ भरपूरि ॥

मथै टिका तेडि धोती कखाई ॥

हथि छुरी जगत कासाई ॥

नील वसत्र पहिरि होवहि परवाणु ॥

मलेछ धानु ले पूजहि पुराणु ॥

अभाखिआ का कुठा बकरा खाणा ॥

चउके उपरि किसै न जाणा ॥

दे कै चउका कढी कार ॥

उपरि आइ बैठे कूडिआर ॥

मतु भिटै वे मतु भिटै ॥

इहु अंनु असाडा फिटै ॥

तनि फिटै फेड़ करेनि ॥

मनि जूठे चुली भरेनि ॥

कहु नानक सचु धिआईऐ ॥

सुचि होवै ता सचु पाईऐ ॥२॥

पउडी ॥

चितै अंदरि सभु को वेखि नदरी हेठि चलाइदा ॥

आपे दे वडिआईआ आपे ही करम कराइदा ॥

वडहु वडा वड मेदनी सिरे सिरि धंधै लाइदा ॥

नदरि उपठी जे करे सुलताना घाहु कराइदा ॥

दरि मंगनि भिख न पाइदा ॥१६॥

(छंत) आसा महला ४ ॥

जिन अंतरि हरि हरि प्रीति है ते जन सुघड स्याने राम राजे ॥

जे बाहरहु भुलि चुकि बोलदे भी खरे हरि भाणे ॥

हरि संता नो होरु थाउ नाही हरि मानु निमाणे ॥

जन नानक नाम दीबानु है हरि तानु सताणे ॥९॥

सलोकु मः ९ ॥

जे मोहाका घरु मुहै घरु मुहि पितरी देइ ॥

अगै वसतु सित्राणीऐ पितरी चोर करेड़ ॥

वढी अहि हथ दलाल के मसफी एह करेड़ ॥

नानक अगै सो मिलै जि खटे घाले देइ ॥१॥

मः १ ॥

जिउ जोरू सिरनावणी आवै वारो वार ॥ जूठे जूठा

जूठे जूठा मुाख वस नित नित होइ खुआरु ॥

सूच राह न आखा आहे बहाने जि पिडा धाइ ॥

सूच सइ नानका जिन मान वासआ साइ ॥२॥

पउड़ी ॥

तुरे पलाणे पउण वेग हर रंगी हरम सवारिआ ॥

कोठे मंडप माडीआ लाइ बैठे करि पासारिआ ॥

चीज करनि मनि भावदे हरि बुझनि नाही हारिआ ॥

करि फुरमाइसि खाइआ वेखि महलति मरणु विसारिआ ॥

जरु आई जोबनि हारिआ ॥१७॥

(छंत) जिथै जाय बहै मेरा सतिगुरू सो थानु सुहावा राम राजे ॥

गुरसिखी सो थानु भाल्या लै धूरि मुखि लावा ॥

गुरसिखा की घाल थाय पई जिन हरि नामु ध्यावा ॥

जिन नानकु सतिगुरु पूज्या तिन हरि पूज करावा ॥२॥

सलोकु मः १ ॥

जे करि सूतकु मंनीऐ सभ तै सूतकु होइ ॥

गोहे अतै लकड़ी अंदरि कीडा होइ ॥

जेते दाणे अंन के जीआ बाझु न कोइ ॥

पहिला पाणी जीउ है जितु हरिआ सभु कोइ ॥

सूतकु किउ करि रखीऐ सूतकु पवै रसोइ ॥

नानक सूतकु एव न उत्तरै गिआनु उतारे धोड़ ॥१॥

मः १ ॥

मन का सूतकु लोभु है जिहवा सूतकु कूडु ॥

अखी सूतकु वेखणा पर त्रिअ पर धन रूपु ॥

कनी सूतकु कंनि पै लाइलबारी खाहि ॥

नानक हंसा आदमी बधे जम पुरि जाहि ॥२॥

मः १ ॥

सभो सूतकु भरमु है दूजैलगे जाइ ॥

जमणु मरणा हुकमु है भाणै आवै जाइ ॥

खाणा पीणा पवित्रु है दितोनु रिजकु स्मबाहि ॥

नानक जिन्ही गुरमुखि बुझिआ तिन्हा सूतकु नाहि ॥३॥

पउड़ी ॥

सतिगुरु वडा करि सालाहीऐ जिसु विचि वडीआ वडिआईआ ॥

सहि मेले ता नदरी आईआ ॥ जा तिसु भाणा ता मनि वसाईआ ॥

करि हुकमु मसतकि हथु धरि विचहु मारि कढीआ बुरिआईआ ॥

सहि तुटै नउ निधि पाईआ ॥१८॥

(छंत) गुरसिखा मनि हरि प्रीति है हरि नाम हरि तेरी राम राजे ॥

करि सेवह पूरा सतिगुरू भुख जाय लह मेरी ॥

गुरसिखा की भुख सभ गई तिन पिछै होर खाय घनेरी ॥

जन नानक हरि पुन्नु बीज्या फिरि तोटि न आवै हरि पुन्न केरी ॥३॥

सलोकु मः १ ॥

पहिला सुचा आपि होइ सुचै बैठा आइ ॥

सुचे अगै रखिओनु कोइ न भिटिओ जाइ ॥

सुचा होइ कै जेविआ लगा पडणि सलोकु ॥

कुहथी जाई सटिआ किसु एह लगा दोखु ॥

अंनु देवला पाणी देवता बैसलरु देवता लूणु पंजवा पाइआ घिरतु ॥

ता होआ पाकु पवितु ॥ पापी सिउ तनु गडिआ थुका पईआ तितु ॥

जितु मुखि नामु न ऊचरहि बिनु नावै रस खाहि ॥

नानक एवै जाणीऐ तितु मुखि थुका पाहि ॥१॥ मः १ ॥

भंडि जमीऐ भंडि निमीऐ भंडि मंगणु वीआहु ॥

भंडहु होवै दोसती भडहु चलै राहु ॥

भडु मुआ भंडु भालीऐ भंडि होवै बंधानु ॥

सो किउ मंदा आखीऐ जितु जमहि राजान ॥

भंडहु ही भंडु ऊपजैभडे बाझ न कोड ॥

नातक भरै बाहरा एको सचा सोड ॥

जित मखि सदा सालाही भागा रती चारि ॥

नानक ते मख रुजले तितु सचै दरबारि ॥२॥

पउड़ी ॥

सभु को आखै आपणा जिसु नाही सो चुणि कढीऐ ॥

कीता आपो आपणा आपे ही लेखा संढीऐ ॥

जा रहणा नाही ऐतु जगि ता काइतु गारबि हंढीऐ ॥

मंदा किसै न आखीऐ पडि अखरु एहो बुझीऐ ॥

मूरखै नालि न लुझीऐ ॥१९॥

(छंत) गुरसिखा मनि वाधाईआ जिन मेरा सतिगुरू डिठा राम राजे ॥

कोयी करि गल सुणावै हरि नाम की सो लगै गुरसिखा मनि मिठा ॥

हरि दरगह गुरसिख पैनाईअह जिना मेरा सतिगुरु तुठा ॥

जन नानकु हरि हरि होया हरि हरि मनि वुठा ॥४॥ ५॥१२॥

सलोकु मः १ ॥

नानक फिकै बोलिऐ तनु मनु फिका होइ ॥

फिको फिका सदीऐ फिके फिकी सोइ ॥

फिका दरगह सटीऐ मुहि थुका फिके पाइ ॥

फिका मूरखु आखीऐ पाणा लहै सजाइ ॥१॥ मः १ ॥

अंदरहु झूठे पैज बाहरि दुनीआ अंदरि फैलु ॥

अठसठि तीरथ जे नावहि उत्तरै नाही मैलु ॥

जिन्ह पटु अंदरि बाहरि गुदडु ते भले संसारि ॥

तिन्ह नेहु लगा रब सेती देखन्हे वीचारि ॥

रंगि हसहि रंगि रोवहि चुप भी करि जाहि ॥

परवाह नाही किसै केरी बाझु सचे नाह ॥

दरि वाट उपरि खरचु मंगा जबै देड़ त खाहि ॥

दीबानु एको कलम एका हमा तुम्हा मेलु ॥

दरि लए लेखा पीडि छुटै नानका जिउ तेलु ॥२॥

पउडी ॥

आपे ही करणा कीओ कल आपे ही तै धारीऐ ॥

देखहि कीता आपणा धरि कची पकी सारीऐ ॥

जो आइआ सो चलसी सभु कोई आई वारीऐ ॥

जिस के जीअ पराण हहि किउ साहिबु मनहु विसारीऐ ॥

आपण हथी आपणा आपे ही काजु सवारीऐ ॥ २०॥

(छंत) आसा महला ४ ॥

जिना भेट्या मेरा पूरा सतिगुरु तिन हरि नामु द्रिडावै राम राजे ॥

तिस की त्रिसना भुख सभ उत्तरै जो हरि नामु ध्यावै ॥

जो हरि हरि नामु ध्याइदे तिन जमु नेडि न आवै ॥

जन नानक कउ हरि क्रिपा करि नित जपै हरि नामु हरि नामि तरावै ॥१॥

सलोकु महला २ ॥

एह किनेही आसकी दूजै लगे जाइ ॥

नानक आसकु कांढीऐ सद ही रहे समाइ ॥

चंगै चंगा करि मंने मंदै मंदा होइ ॥

आसकु एहु न आखीऐ जि लेखै वरतै सोइ ॥१॥

महला २ ॥

सलामु जबाबु दोवै करे मुंढहु घुथा जाइ ॥

नानक दोवै कूडीआ थाइ न काई पाइ ॥२॥

पउडी ॥

जितु सेविऐ सुखु पाईए सो साहिबु सदा सम्हालीऐ ॥

जितु कीता पाईए आपणा सा घाल बुरी किउ घालीऐ ॥

मंदा मूलि न कीचड़ दे लमी नदरि निहालीऐ ॥

जिउ साहिब नालि न हारीऐ तेवेहा पासा ढालीऐ ॥

किछु लाहे उपरि घालीऐ ॥२१॥

(छंत) जिनी गुरमुखि नामु ध्याया तिना फिरि बिधनु न होयी राम राजे ॥

जिनी सतिगुरु पुरखु मनायआ तिन पूजे सभु कोई ॥

जिनी सतिगुरु प्यारा सेव्या तिना सुखु सद होई ॥

जिना नानकु सतिगुरु भेट्या तिना मिल्या हरि सोई ॥२॥

सलोकु महला २ ॥

चाकरु लगै चाकरी नाले गारबु वादु ॥

गला करे घणेरीआ खसम न पाए सादु ॥

आपु गवाइ सेवा करे ता किछु पाए मानु ॥

नानक जिस नो लगा तिसु मिलै लगा सो परवानु ॥१॥

महला २ ॥

जो जीइ होइ सु उगवै मुह का कहिआ वाउ ॥

बीजे बिखु मंगै अमितु वेखहु एहु निआउ ॥२॥

महला २ ॥

नालि इआणे दोसती कदे न आवै रासि ॥

जेहा जाणै तेहो वरतै वेखहु को निरजासि ॥

वसतू अंदरि वसतु समावै दूजी होवै पासि ॥

साहिब सेती हुकमु न चलै कही बणै अरदासि ॥

कूडि कमाणै कूडो होवै नानक सिफति विगासि ॥३॥

महला २ ॥

नालि इआणे दोसती वडारू सिउ नेहु ॥

पाणी अंदरि लीक जिउ तिस दा थाउ न थेहु ॥४॥

महला २ ॥

होइ इआणा करे कमु आणि न सकै रासि ॥

जे इक अध चंगी करे दूजी भी वेरासि ॥५॥

पउड़ी ॥

चाकरु लगै चाकरी जे चलै खसमै भाइ ॥

हुरमति तिस नो अगली ओहु वजहु भि दूणा खाइ ॥

खसमै करे बराबरी फिरि गैरति अंदरि पाइ ॥

वजहु गवाए अगला मुहे मुहि पाणा खाइ ॥

जिस दा दिला खावणा तिसु कहीऐ साबासि ॥

नानक हुकमु न चलई नालि खसम चलै अरदासि ॥२२॥

(छंत) जिना अंतरि गुरमुखि प्रीति है तिन हरि रखणहारा राम राजे ॥

तिन की निन्दा कोयी क्या करे जिन हरि नामु प्यारा ॥

जिन हरि सेती मनु मान्या सभ दुसट झख मारा ॥

जन नानक नामु ध्याया हरि रखणहारा ॥३॥

सलोकु महला २ ॥

एह किनेही दाति आपस ते जो पाईए ॥

नानक सा करमाति साहिब तुठै जो मिलै ॥१॥

महला २ ॥

एह किनेही चाकरी जितु भउ खसम न जाइ ॥

नानक सेवकु काढीऐ जि सेती खसम समाइ ॥२॥

पउडी ॥

नानक अंत न जापन्ही हरि ता के पारावार ॥

आपि कराए साखती फिरि आपि कराए मार ॥

इकन्हा गली जंजीरीआ इकि तुरी चडहि बिसीआर ॥

आपि कराए करे आपि हउ कै सिउ करी पुकार ॥

नानक करणा जिनि कीआ फिरि तिस ही करणी सार ॥२३॥

(छंत) हरि जुगु जुगु भगत उपायआ पैज रखदा आया राम राजे ॥

हरणाखसु दुसटु हरि मार्या प्रहलादु तरायआ ॥

अहंकारिया निन्दका पिठि देइ नामदेउ मुखि लायआ ॥

जन नानक ऐसा हरि सेव्या अंति लए छडायआ ॥४॥६॥१३॥२०॥

सलोकु मः ९ ॥

आपे भांडे साजिअनु आपे पूरणु देइ ॥

इकन्ही दुधु समाईऐ इकि चुल्है रहन्हि चडे ॥

इकि निहाली पै सवन्हिइकि उपरि रहनि खड़े ॥

तिन्हा सवारे नानका जिन्ह कउ नदरि करे ॥१॥ महला २ ॥

आपे साजे करे आपि जाई भि रखै आपि ॥

तिसु विचि जंत उपाइ कै देखै थापि उथापि ॥

किस नो कहीऐ नानका सभु किछु आपे आपि ॥२॥

पउडी ॥

वडे कीआ वडिआईआ किछु कहणा कहणु न जाइ ॥

सो करता कादर करीमु दे जीआ रिजकु स्मबाहि ॥

साई कार कमावणी धुरि छोडी तिनै पाइ ॥

नानक एकी बाहरी होर दूजी नाही जाइ ॥

सो करे जि तिसै रजाइ ॥२४॥१॥ सुधु

मानो तो मैं गंगा माँ हु ना मानो तो बहता पानी लिरिक्स

Rehras sahib in hindi | रहरासि साहिब

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