भक्ति का सुअवसर
दुनिया में हर चीज़ की कमाई का सीज़न होता है। और कमाई के सीज़न में प्रत्येक मनुष्य दिन-रात एक करके काम में लग जाता है।
किसान खेती करता है। जब उसकी बिजाई या कटाई का सीज़न आता है, तो वह शरीर के सुख-आराम सब कुछ भूल जाता है । न दिन देखता है न रात, काम में लगा रहता है। क्योंकि वह जानता है कि यदि ढील करूँगा तो आगे भूखा मरूँगा।
अब किसी व्यापारी या दुकानदार को लीजिये। उसकी कमाई का भी अपना सीज़न होता है। जब कभी उसके सामने माया की प्राप्ति का सवाल आता है, तो खान-पान और सुख-चैन आदि सब कुछ भुलाकर दिन हो या रात इनको न देखता हुआ भाग उठता है।
क्योंकि वह भी जानता है कि कमाई का सीज़न रोज़-रोज़ नहीं होता। इसमें जितना धन कमा लूँ उतना ही फ़ायदे में रहूँगा । ऐसे ही संसार में और भी अनेक लोग हैं, जो कमाई के समय अपने सुख-आराम को भूल जाते हैं।
सन्त कहते हैं कि मनुष्य शरीर भी भक्ति की कमाई का सीज़न है। इसके अतिरिक्त किसी जन्म में भी भक्ति की
कमाई हो नहीं सकती। इसलिये उचित है कि मनुष्य शरीर को पाकर भक्ति की कमाई कर ली जाये। इसमें सन्देह नहीं कि मन की जितनी रुचि संसारी कामों में लगती है, उतनी भजन-भक्ति और सत्संग में नहीं लगती, क्योंकि वह संसारी कामों को सुगम और भक्ति के कामों को कठिन समझता है।
सन्त इसका उत्तर इस प्रकार देते हैं- ‘भाई! यदि भक्ति तुझे कठिन लगती है, तो क्या बार-बार माता के गर्भ में उल्टा लटकना सहल काम है?’ वास्तविक बात यह है कि साँसारिक काम मन के अनुकूल हैं और भक्ति के काम मन के प्रतिकूल ।
इसलिये यह मन साँसारिक कामों को तो जाग कर बड़ी होशियारी से करता है परन्तु भक्ति के कामों में सो जाता है सन्त कथन करते हैं कि यह समय जागने का है सोने का नहीं।
॥ दोहा ॥
कबीर सोया क्या करे, क्यों नहिं देखे जाग । जाके संग से बीछुड़ा, वाहीं के सँग लाग ॥
(परमसन्त श्री कबीर साहिब जी)
पहिले पहरै फुलड़ा फलु भी पछा राति ॥ जो जागंन्हि लहंनि से साई कंनो दाति ॥
(श्री फरीद साहिब जी)
एक और फ़क़ीर का कथन है –
॥ शेअर ॥
फैलाकर पाँव जो यहाँ सोता है । वह सिर पर रख के हाथ फिर रोता है ॥ चलते हाथों कुछ कमा ले ओ ग़ाफ़िल । क्यों उम्र अज़ीज़ मुफ़्त में खोता है ॥
घर में यदि अन्धेरा हो और घरवाला भी सोया हुआ हो, तो चोरों का दाव लग जाता है । परन्तु यदि घर में रोशनी है और घरवाला भी जाग रहा है, तो वहाँ चोरों की दाल नहीं गलती ।
सन्त इस दुनिया में चौकीदार हैं, जो सोये हुए जीवों को जगाते हैं और कहते हैं भाई ! जागकर अपना घर सँभालो, क्योंकि चोर फिर रहे हैं।
जो लोग सन्तों की आवाज़ को सुन कर मान जाते हैं, वे अपना माल बचा लेते हैं। लेकिन जो सोये रहते हैं उनका घर लुट जाता है। नींद के मतवाले तो चौकीदार की आवाज़ को भी अच्छा नहीं मानते कि वह उनकी नींद खराब करता है ।
परन्तु चौकीदार तो चौकीदार है। वह सरकार का भेजा हुआ है। उसने अपना काम करना है और जागो ! जागो ! का होका देना है। कोई अच्छा माने या बुरा, उसकी मरजी। चौकीदार का इसमें न कुछ घटता है न बढ़ता है। सन्त कहते हैं—
उठ ! उठ ! और नींद से हुशियार हो सोने वाले । वरना पछताते हैं फिर वक्त के खोने वाले ॥
सन्त महापुरुष फ़रमाते हैं कि मानुष-जन्म में ही जीव को भक्ति का अनमोल धन कमाने का सुअवसर मिलता है। जो जीव इस सुनहरी समय को ग़फ़लत की नींद में गँवा देते हैं, वे अन्त में पछताते हैं और जन्म-मरण के चक्र में फँस जाते हैं।
जो जीव सन्तों की हिदायत अनुसार अपने समय को नाम और भक्ति की कमाई में लगा देते हैं, वे इस सुनहरी अवसर से पूरा-पूरा लाभ उठाकर इस लोक में भी सुखपूर्वक जीवन गुज़ारते हैं और परलोक का सच्चा सरमाया भी अपने साथ ले जाते हैं ।