शीर्षासन
योगासनों में शीर्षासन को सबसे अच्छा माना गया है। इस आसन को कई नामों से जाना जाता है जैसे- विपरीतकरणी, कपालासन व वृक्षासन शीर्षासन के नाम है। यह आसन अत्यंत प्रसिद्ध व लाभकारी आसन है।
84 लाख आसनों में रोगों को दूर करने वाले जितने गुण होते हैं, वे सारे गुण केवल अकेले शीर्षासन में ही होते हैं। इसलिए योगशास्त्रों में इसका नाम शीर्षासन रखा गया है। इस आसन को सभी आसनों से महत्वपूर्ण माना गया है।
इस आसन को सही रूप व सही तरीके से करने पर इसका अधिक लाभ मिलता है और गलत तरीके से करने पर इससे हानि भी हो सकती है।
विधी:
- शीर्षासन के लिए पहले जमीन पर दरी या चटाई बिछाकर बैठ जाएं। आसन के लिए किसी मोटे गद्दे या दरी को सिर के नीचे रखकर ही शीर्षासन को करें।
- आसन के लिए पहले घुटनों के बल नीचे बैठ जाएं। अब अपने हाथों की अंगुलियों को आपस में फंसा लें और हथेलियों को ऊपर की ओर करके गद्दे पर टिकाएं।
- हथेलियों को गद्दे पर रखते हुए हथेली से कोहनी तक के भाग को जमीन से सटाकर रखें। अब धीरे-धीरे आगे की ओर झुकते हुए सिर को हथेलियों पर रखकर सिर का संतुलन बनाएं।
- अब दोनों पैरों को मिलाकर घुटनों से मोड़कर पिण्डलियों को ऊपर की ओर सीधा करके शरीर के भार को सिर पर डालते हुए संतुलन बनाएं। इस स्थिति में केवल सिर से कमर तक का भाग सीधा रखें। प्रारम्भ में आसन को इस स्थिति में कई दिनों तक करें।
जब इसमें सफलता मिल जाएं तो फिर जांघों को धीरे-धीरे सीधा करने की कोशिश करें और शरीर का संतुलन सिर पर बनाकर रखें।
- जांघों को सीधा करके इसे भी कई दिनों तक करें और इसमें सफलता मिलने के बाद फिर दोनों पैर के बीच एक फुट की दूरी रखते हुए दोनों पैरों को भी धीरे-धीरे सीधा करें।
- आसन की इस स्थिति को कई दिनों तक करते हुए पूरे शरीर का संतुलन सिर पर बनाकर रखें। आसन की इस स्थिति के बाद दोनों पैरों को आपस में मिलाकर पैर समेत पूरे शरीर को सीधा करके संतुलन बनाकर रखें। आसन को इस प्रकार से कई भागो में करते हुए शीर्षासन को पूर्ण करें तथा इस आसन को करने में जल्दबाजी न करें।
- शुरू-शुरू शीर्षासन को करते हुए 15 से 20 सैकेंड तक आसन की स्थिति में रहें और धीरे- धीरे इसका समय बढ़ाते हुए 15 से 20 मिनट तक करें। इस
- आसन में पूर्ण सफलता मिलने के बाद इस आसन को 1 घंटे तक कर सकते हैं। आसन की पूर्ण स्थिति को करने के बाद पुन: धीरे-धीरे शरीर को जमीन पर लाएं।
- इसके बाद सीधे खड़े हो जाएं और फिर पूरे शरीर को ढीला छोड़कर सांस क्रिया करें। इस क्रिया को करने में शरीर का खून का बहाव सीधे होकर पूरे शरीर में पहुंच जाता है।
- इस आसन के साथ प्राणायाम क्रिया करने से शीर्षासन का पूरा लाभ मिलता है। शीर्षासन का अभ्यास करते समय श्वास-प्रश्वास पर विशेष ध्यान देना चाहिए। इस क्रिया में सांस लेने व छोड़ने की क्रिया को सामान्य रखें।
- आसन के समय चित्त को शांत रखें, मन की चंचलता को दर कर इस आसन को करें और शरीर को साधकर स्थिर रखने की कोशिश करें।
लाभ:
- शीर्षासन के अभ्यास से शरीर में खून का बहाव नियमित बना रहता है तथा शरीर के सभी अंग कार्यशील बने रहते हैं। इस आसन के अभ्यास से दिमाग में रक्त प्रवाह बढ़ता है।
- यह मानसिक तनाव को दूर करता है तथा सिरदर्द, सांस की बीमारी (दमा) को ठीक करता है। इस आसन से स्नायु संस्थान, रक्तसंचार तंत्र, पेशियां, पाचनतंत्र, जननांग, उत्सर्जन तंत्र एवं फेफड़े शक्तिशाली बनते हैं तथा उनकी कार्य क्षमता में वृद्धि होती है।
- यह आसन शरीर में स्फूर्ति, उत्साह और आत्मविश्वास को बढ़ाता है। इससे स्मरणशक्ति एवं बुद्धि का विकास होता है।
- शीर्षासन मेधा, प्रज्ञा, बुद्धि तथा शरीर को शक्ति प्रदान करता है, जिससे ब्रह्मचर्य पालन करने में मदद मिलती है।
- इस आसन के अभ्यास से मधुमेह, बहूमूत्र, प्रमेह, पागलपन (उन्माद), ” हिस्टीरिया, धातु दुर्बलता, शुक्र तारल्य और स्वप्नदोष आदि रोग दूर होते हैं।
- इससे अनिद्रा, अपच, कब्ज, पेट के सभी रोग दूर होते हैं तथा यह आसन शौच खुलकर लाता है। शीर्षासन बालों को सफेद होने व झड़ने से रोकता है तथा सफेद बालों को काला करता है, चेहरे की झुर्रियां को मिटाता है।
- इस आसन का अभ्यास करने वालों की आयु में वृद्धि होती है तथा उनमे अधिक समय तक युवावस्था बनी रहती है।
- इस आसन से आंखों की रोशनी बढ़ती है, शरीर तेजमय व कांतिमय बनता है तथा मन शांत व स्थिर हो जाता है। इस आसन से मन के खराब विचार दूर होकर मन ध्यान व साधना में लीन होने लगता है।
- शीर्षासन स्त्रियों के गर्भाशय सम्बन्धी विकारों को दूर करता है। स्त्रियों के बांझपन को दूर करने में यह आसन लाभकारी होता है। इस आसन को करने से हिस्टीरिया रोग में भी लाभ मिलता है।
सावधानी:
शीषोसन को योग जानकारों की – देख-रेख में ही करें अन्यथा लाभ की अपेक्षा हानि हो सकती है।
- इस आसन का अभ्यास पहले कुछ समय तक ही करें क्योंकि इस आसन के समय शरीर के दूषित तत्वों का खून के साथ प्रवाहित होकर मस्तिष्क में पहुंचने का भय रहता है, जिससे मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
- शीर्षासन करने से पहले अन्य योग आसनों का अभ्यास करने से शरीर में रक्त की शुद्धि होती है, जिससे शीर्षासन से बुरा प्रभाव नहीं पड़ता और शरीर को पूर्ण लाभ मिलता है।
- गर्भवती व मासिकधर्म वाली स्त्रियों को इस आसन को नहीं करना चाहिए। यह आसन 150 से अधिक व 100 से कम
रक्तचाप वाले व्यक्तियों को नहीं करना चाहिए। कान के बहने व किसी प्रकार का घाव होने पर इस आसन को न करें ।
कमजोर दिल वाले, पुराने जुकाम तथा – कोष्ठबद्धता के रोगियों को भी इस आसन को नहीं करना चाहिए। अधिक भोजन करने के बाद तथा भारी पेट इस आसन को न करें ।
- शीर्षासन करने के बाद 1 घंटे तक स्नान न करें तथा आसन के तुरन्त बाद खुली हवा में न निकलें।
मकरासन
संस्कृत में मकर का अर्थ मगरमच्छ होता है। इस आसन में शरीर मगरमच्छ के समान दिखता है इसलिए इसको मकरासन का नाम दिया गया है।
अगर इस योगाभ्यास को सही रूप में किया जाए तो इसके बहुत सारे फायदे हैं। मकरासन कमर एवं मेरुदण्ड के लिए एक बहुत ही उम्दा योगाभ्यास है और आपके डिप्रेशन को कम करने के लिए
एक अहम भूमिका निभाता है।
विधी:
- पेट के बल लेट जाएं, ठोड़ी (Chin), छाती एवं पेट जमीन से स्पर्श होते रहें।
- पैरों के बीच में अपने योग मैट के बराबर दुरी बनाएं।
- अब आप सिर को उठाएं और दोनों हाथों को गाल पर लाते हुए कप का आकार बनाएं।
- धीरे धीरे दोनों पैरों को नीचे से ऊपर अपने हिप्स की ओर लेकर आएं और फिर धीरे धीरे नीचे लेकर जाएं।
- यह एक चक्र हुआ।
- इस तरह से आप दस चक्र करें।
लाभ:
- रीढ़ की हड्डी के लिए: यह रीढ़ की हड्डी के लिए अतिउत्तम योगाभ्यास है। यह पुरे मेरुदण्ड को स्वस्थ रखते हुए
- कमर दर्द: कमर दर्द के लिए यह बेहतरीन योगाभ्यास है। इसका नियमित अभ्यास से आप हमेशा हमेशा के लिए कमर दर्द से छुटकारा पा सकते हैं।
- डिप्रेशन के लिए: इस आसन के – अभ्यास से आप डिप्रेशन में बहुत हद तक काबू पा सकते हैं।
- थकावट दूर करने के लिए: यह थकावट को दूर करने में बहुत लाभप्रद है।
- दमा में: इसके अभ्यास से आप अपने फेफड़े की क्षमता को बढ़ा सकते हैं और साथ ही साथ अस्थमा ।
- अपच: यह अपच को दूर करने में मदद करता है तथा पाचनतंत्र को ठीक रखता है।
- वात रोग में : यह वात रोगियों के लिए एक अच्छा योगाभ्यास है।
- मानसिक रोग: यह मानसिक रोगियों के लिए एक बेहतरीन योगाभ्यास है।
- कंधे के अकड़न में सहायक : इससे आप अपने कंधे के अकड़न को कम कर सकते हैं।
- उच्च रक्तचाप: यह उच्च रक्तचाप में – लाभप्रद है।
- स्लिप डिस्क: स्लिप डिस्क के रोगियों के लिए एक उत्तम योगाभ्यास हैं।
- नींद के लिए: इस योग को सही तरीके से करने से आप नींद की समस्या से दूर
- हो सकते हैं।
- रक्त के संचार: शरीर में रक्त संचार को बढाता हैं|
- घुटनों: यह घुटनों के लिए लाभदायक है।
सावधानी:
- कमर दर्द: अधिक कमर दर्द होने पर इस आसन का अभ्यास नहीं करनी चाहिए।
- हर्निया: हर्निया की बीमारी में इस आसन को न करे।
पवन मुक्तासन
संस्कृत में “पवन” का अर्थ हवा और “मुक्त” का अर्थ है रिलीज करना । पवनमुक्तासन पूरे शरीर में हवा को बैलेंस कर देता है।
विधी:
खिंचाव तक पहुँचने के लिए –
- अपनी पीठ के बल लेट जाएँ। धीरे से घुटने उठाके अपने सीने से लगाए । अपनी एड़ी नितम्बो पर रखें और घुटनों को हातों से पकड़ लें |
- सामान्य सांस लेते रहें।
- अपनी आँखें बंद करे या अपने घुटनों से परे टकटकी लगाए और अपनी पीठ की मांसपेशियों को आराम से ढीला छोड़ें।
- जब तक यह अच्छा लगता है तब तक इस मुद्रा को पकड़ो।
सामान्य स्थिति में आने के लिए –
- रिहाई के समय सांस अंदर लें और दोनों पैरों को सीधा कर लें। व्यायाम दोहराने से पहले आराम करना चाहिए।
लाभ:
- यह आसन पीठ के निचले हिस्से की मांसपेशियों को ढीला करता है और शरीर को आराम देता है।
- यह आसन शरीर में हवा को नियंत्रित करता है।
- यह कब्ज और अपच से छुटकारा दिलाता है।
- यह मोटापा और पेट के अत्यधिक वसा कम करता है।
- यह फेफड़ों और दिल के रोग दूर रखने में मदद करता है।
- अम्लता और गैस के गठन से पीड़ित लोगों के लिए यह एक पल में सुधारात्मक प्रभाव डालता है।
- यह मोटापा और पेट के अत्यधिक वसा कम करता है।
- यह फेफड़ों और दिल के रोग दूर रखने में मदद करता है।
- अम्लता और गैस के गठन से पीड़ित लोगों के लिए यह एक पल में सुधारात्मक प्रभाव डालता है।
- यह नपुंसकता, बाँझपन और मासिक धर्म समस्याओं के उपचार में उपयोगी है।
सावधानी:
- गर्भवती महिलाओं को यह आसन नहीं करना चाहिए।
- स्लिप डिस्क के रोगी को इस आसन से बचना चाहिए।
शवासन
शवासन को आसनों का सम्राट भी कहते हैं। शवासन क्रिया से शरीर और मन दोनों ही थकावट व चिंता से मुक्त हो जाता है। शवासन का अभ्यास सभी आसनों तथा सभी यौगिक क्रियाओं को खत्म करने के बाद किया जाता है तथा किसी अन्य आसनों को करते समय आराम के लिए भी इस शवासन को किया जाता है।
विधी:
- शवासन को करने के लिए अपने मन को तनाव व चिंता मुक्त रखना चाहिए।
- इस आसन को जहां शांत स्थान तथा स्वच्छ हवा का बहाव हो, वहां करें। इसके लिए फर्श पर चटाई बिछाकर पीठ के बल लेट जाएं। इसके बाद पूरे शरीर को सीधा रखते हुए पूरे शरीर को बिल्कुल ढीला छोड़ दें। शरीर के किसी भी भाग में कोई हलचल न हो ऐसी स्थिति बनाएं।
- दोनों पैरों के बीच 45 से 60 सेंटीमीटर तक की दूरी रखें। अब दोनों हाथों को दोनों बगल में सीधा रखें व हथेलियों को ऊपर की ओर रखें। इस स्थिति में आने के बाद अपनी आंखों को बंद कर लें। 10 मिनट तक आंखों को बंद रखें।
- 10 मिनट के बाद आंखों को खोलकर कुछ सैकेंड तक रुके और पुन: आंखों को बंद कर लें। इस तरह से इस क्रिया को 3 से 4 बार करें। इस क्रिया में सांस लेने व छोड़ने की गति को सामान्य रखें।
- इसको करते समय अपने मन व मस्तिष्क को बिल्कुल खाली रखें और मन में अच्छे स्थानों के बारे में कल्पना करके तथा आनन्द मय होकर इस आसन को करें।
- इस आसन से अधिक लाभ के लिए आप इस आसन के साथ अन्य क्रिया भी कर सकते हैं जैसे- आसन को करते समय आंखों को बंद करने व खोले की क्रिया खत्म हो जाने के बाद अपनी आंखों को खोलकर अपने पूरे शरीर को देखने की कोशिश करें।
- इस क्रिया में पहले सिर की ओर, फिर पैर की ओर, फिर दाईं ओर व बाईं ओर देखकर दुबारा आंखों को बंद कर लें। आंखों की इस क्रिया को धीरे-धीरे करें।
- यह क्रिया 2-3 बार करें। अब मुंह को पूरा खोलकर अपनी जीभ को मुंह के अंदर की तरफ मोड़े जिससे जीभ का अगला भाग कण्ठ के पास तालु तक पहुंच जाए। इसके बाद अपने मुंह को बंद कर लें।
- 10 सैकेंड तक इसी स्थिति में रहने के बाद मुंह को खोलकर जीभ को सामान्य अवस्था में ले आएं। इस तरह से इसे 2-3 बार करें। अब आंखों को बंद करके पुनः पहले की तरह ही अपने मन के द्वारा पूरे शरीर को देखें और महसूस करें कि आपका पूरा शरीर आराम कर रहा है।
इस क्रिया में आंखों को बंद करके पैरों के अंगूठे से लेकर धीरे-धीरे सिर तक के भाग को देखें और मन में यह सोचे कि आपके शरीर के सभी अंग आराम कर रहे हैं।
- जब आप यह जान लें कि आपका पूरा शरीर आराम कर रहा है तो अपने मन को आराम देने के लिए किसी दर्शनीय स्थान, पर्वत, वन आदि की कल्पना करें और अपनी कल्पनाओं को अन्त: चक्षु (मन) से देखने की कोशिश करें तथा इसमें आनन्द का अनुभव करें।
- जब आपका शरीर व मन आराम कर लें तब अपने दायें हाथ को उठाकर हथेली को पेट के ऊपर रखें तथा नाक के दोनों छिद्रों से धीरे-धीरे गहरी सांस लें । फिर सांस को धीरे-धीरे ही छोड़े।
सांस लेते समय पेट बाहर की ओर तथा अंगुलियों को मिलाकर रखें और सांस छोड़ते समय पेट को अंदर की ओर लें तथा अंगुलियों को अलग करके रखें। यह क्रिया लगातार 3 से 5 मिनट तक करें।
- इसके बाद अपने हाथ को पेट से हटाकर नीचे रख दें। इस आसन को करने के बाद नींद पर काबू पाते हुए 10 से 15 मिनट तक आराम करें तथा शरीर में कोई प्रतिक्रिया किये बिना ही लेटे रहें। यह आसन शरीर तथा मन को पूर्ण आराम देता है।
- मन को आराम देते समय मन पर नियंत्रण रखें तथा मन में भी बाहरी विचार जैसे- शोक, भय, लोभ, क्रोध, चिंता आदि को न आने दें।
लाभ:
- शवासन से शरीर की सभी अंगों को आराम मिलता है तथा इससे मन शांत व चिंता मुक्त होता हैं। यह अन्य आसनो को करने से होने वाली थकावट तथा यात्रा, खेल-कूद, अधिक काम के करने से होने वाली थकावट आदि को दूर करता है।
- यह आसन अनिद्रा (नींद का न आना) को भी दूर करता है। इससे चिंता, भय, शोक आदि खत्म होकर मन को शांति मिलती है। जिन औरतों को घर का काम करने से थकावट अधिक होती है, उन्हें यह आसन करना चाहिए। वे इसे रात को सोने से पहले भी कर सकती हैं।
- शवासन क्रिया को करने से शारीरिक थकावट दूर होती है तथा मन शांत व प्रसन्न रहता है। स्नायुओं से पीड़ित रोगी,
रक्तचाप के रोगी तथा न्यूरस्थीनिया के रोगी के लिए यह आसन अधिक लाभकारी है।
- यह आसन किसी अन्य आसनों को करने से तथा अधिक कामों से होने वाले थकावट को दूर करता है। इससे शरीर में ताजगी व स्फूर्ति आती है तथा मानसिक तनाव दूर होता है।
- यह आसन हृदय रोग, दमा और मधुमेह रोग में लाभकारी रहता है। इस आसन के दौरान लयबद्ध रूप में श्वसन क्रिया करने से तंत्रिका तंत्र पर बहुत ही शांत प्रभाव पड़ता है। इस तंत्र के तनाव-ग्रस्त होने पर ही शरीर की क्रियाएं खराब होने लगती है। इस आसन से पूरे शरीर को ऊर्जा मिलती है।
सावधानी:
- शवासन क्रिया को खाली पेट करें तथा भोजन करने के 2-3 घंटे बाद इस आसन को करें। हल्के पेट इस आसन को 1 घंटे बाद कर सकते हैं।
- शवासन को करने के लिए शांत तथा एकांत वातावरण का होना आवश्यक है। पूरी नींद लेने के लिए इस आसन को बिस्तर पर भी कर सकते हैं।
ताडासन
ताड़ासन योग की जितनी भी तारीफ की जाए कम है। यह पूरी शरीर को लचीला बनाता है और साथ ही साथ कड़ा एवं सख्त होने से रोकता है। यह एक ऐसी योगासन है जो मांसपेशियों को ही नही बल्कि सूछम मांसपेशियों को भी बहुत हद तक लचीलापन बनाता है। और इस तरह से शरीर को हल्का तथा विश्राम एवं जोड़ों को ढीला करने में बहुत बड़ी
भूमिका निभाता है। यह योगाभ्यास आपको चुस्त दुरुस्त ही नहीं करता बल्कि आपके शरीर को सुडौल एवं खूबसूरती प्रदान करता है। शरीर में जहाँ तहाँ जो अतरिक्त चर्बी जमी हुई है उसको पिघलता है और आपके पर्सनालिटी में नई निखार ले कर आता है।
विधी:
- ताड़ासन का अभ्यास खुले स्थान या पार्क आदि में करें, जिससे इस आसन को करते समय शुद्ध वायु शरीर के अंदर जा सके। इस आसन को करने के लिए फर्श पर सीधे खड़े हो जाएं।
- अपने दोनों पैरों को मिलाकर सावधान की स्थिति में रहें। पहले अपने दोनों हाथों को बगल में कंधे की सीध में फैलाएं फिर ऊपर उठाएं। अब दोनों हाथों को तानकर ऊपर रखें और एडियों को उठाकर पंजों पर खड़े रहें।
- अब सांस को अंदर खींचते हुए पेट में पूर्ण रूप से वायु भर लें और धीरे-धीरे सांस को बाहर छोड़ें।
- अब पंजों पर बल देते हुए शरीर को ऊपर की ओर खींचें। अपने पूरे शरीर का भार केवल पंजों पर ही पड़ने दें।
- 2 मिनट तक इस स्थिति में रहें और फिर धीरे-धीरे एड़ियों को जमीन पर लाकर सामान्य स्थिति में आ जाएं। इसी प्रकार से इस क्रिया को 5 बार दोहराएं।
लाभ:
- हठयोग में ताड़ासन का विशेष स्थान में है। इस आसन से शरीर में शुद्ध वायु का प्रवाह होता है, जिससे शरीर स्वस्थ रहता
है और मन प्रसन्न रहता है।
- इस आसन से शक्ति तथा आयु में वृद्धि होती है। यह आसन छाती को चौड़ा तथा फेफड़ों को स्वस्थ, मजबूत व सक्रिय बनाता है।
इस आसन के अभ्यास से आलस्य, सुस्ती तथा नींद का अधिक आना दूर होता है। इस आसन से शरीर में नया जोश व स्फूर्ति पैदा होती है।
- यह पेट के भारीपन को दूर करता है तथा कब्ज व अजीर्ण आदि की शिकायतों को दूर करता है । ताड़ासन करने से पैरों व हाथों की मांसपेशियां मजबूत होती है।
- यह आसन मलाशय व आमाशय की मांसपेशियों को विकसित करता है
और आंतों को फैलाता है। यह स्नायु से निकलने वाले बिन्दुओं के अवरोधों को दूर करता है तथा मेरूदंड को पूर्ण रूप से विकसित करने में लाभ देता है।
- इस आसन को करने से शरीर की नाड़ियों में खून का प्रवाह तेज हो जाता है जिससे नाड़ियां स्वस्थ रहती हैं। अधिक चलने व खड़े होने वाले को यह आसन अवश्य करना चाहिए।
- ताड़ासन महिलाओं के लिए भी लाभकारी होता है। महिलायें गर्भावस्था मे महीनें तक इस आसन कर सकती हैं। इससे प्रसव के समय पीड़ा (दर्द) कम होता है तथा बच्चे भी स्वस्थ जन्म लेते हैं।
सावधानी:
- ताड़ासन को आराम से करें तथा पंजो पर ऊपर उठने की क्रिया धीरे-धीरे करें।
- उत्तर की ओर मुख करके इस आसन को करना अधिक लाभकारी होता है।
मंडूकासन
इस आसन के नाम की वजह यह है कि इसे करते समय साधक का आकार मेंढक जैसा दिखता है। संस्कृत में मेंढक को मंदूक भी कहा गया है।
विधी:
खिंचाव तक पहुँचने के लिए –
- दोनों पैरों को घुटने से पीछे मोड़ कर वज्रासन में बैठें।
- पैरों के पंजे एक दूसरे को छूने चाहिए। पंजो के ऊपर सीधे बैठिये | अब जितना संभव हो घुटनों को एक दुसरे से दूर करें इसे मंडूक की तरह बैठना कहते हैं । अब मंडूकासन के लिए घुटने एक दूसरे को सामने लाईये घुटने एक दूसरे को छूने चाहिए।
- दोनों हाथों की मुट्ठी बंद करें और पेट पर नाभि के दोनों तरफ उन्हें रखें। अब सामने शरीर को झुकाएं और जमीन को अपना माथा छूने की कोशिश करें।
सामान्य स्थिति में आने के लिए –
- पहले की स्थिति में वापस आ जाओ और आराम करो।
लाभ
- मंडूकासन सभी अंगों के कार्य में सुधार लाता है। यह कब्ज, मधुमेह और पाचन विकार के उपचार में उपयोगी है।
- यह जांघों, कूल्हों और पेट के वजन को कम करने में प्रभावी है। यह लंगोटी के निचले हिस्सों को मजबूत करता है।
- इससे यौन क्षमता बढ़ जाती है। यह महिलाओं की प्रजनन प्रणाली के दोष निकालता है।
- यह पाचन तंत्र को उत्तेजित करता है।
- जो लाभ पद्मासन देता है, वह इस आसन भी से प्राप्त किया जा सकता है।