भेड़चाल
एक दृष्टांत – शिव मंदिर के समीप एक कुम्हार का घर था। जब शाम के समय शिव मंदिर में आरती होती, कुदरती उसी समय ही उसका गधा रेंगना आरम्भ कर देता।
कुम्हार ने अपने मन के ख्यालों से ही माना कि यह भी अपनी भाषा में आरती ही गा रहा है इसलिए यह पिछले जन्म में अवश्य ही कोई भगत रहा होगा।
कदाचित् इससे पिछले जन्म में पूजा पाठ में कोई भूल हो गई होगी में जो इसे इस जन्म गधे की योनि मिली। उसने उसका नाम रख दिया ‘श्री शंखेश्वर आनंद जी महाराज’ । उसे घास और दाना अच्छे से खिलाने लगा और उससे काम नहीं लेता था। कुछ विशेष
एक दिन वह गधा चल बसा तो उसने बाल कटवा लिए और थाली लेकर मोदी के पास क्रिया कर्म की सामग्री लेने चल दिया। मोदी ने पूछा कि कौन शरीर छोड़ गया है तो उसने उत्तर दिया कि स्वामी शंखेश्वर आनंद जी महाराज जी ने शरीर छोड़ा है।
मोदी ने पूछा कि क्या वे बहुत पहुँचे हुए महात्मा थे? कुम्हार ने कहा कि हां, वे नियम के इतने पक्के थे कि कभी नियम भंग नहीं किया। मोदी भी था तो मनमति वाला, उसने भी जाकर सिर मुंडवा लिया। मोदी के सिर के बाल उतरे देखकर गांव के कई व्यक्तियों ने उससे पूछा कि बाल क्यों कटवाए हैं?
तो उसने बताया कि स्वामी शंखेश्वर जी महाराज परलोक सिधार गए हैं, उसी शोक में उसने बाल कटवाए हैं। यह सुनकर उन लोगों ने भी अपने सिर मुंडवा लिए।
संयोग से हिंदु मिलिट्री के जवानों का एक बड़ा जत्था वहाँ आ पहुँचा। उन्होंने दो जवानों को सामान लाने के लिए उस गांव में भेज दिया। जवान मोदी की दुकान पर पहुँचे, उसका सिर मुंडा हुआ देख पूछने लगे कि सब कुशल तो है? मोदी ने जवाब दिया कि स्वामी शंखेश्वर जी महाराज ज्योति जोत समा गए हैं।
यह सुनकर वे मोदी को सामान निकालने के लिए कहकर स्वयं नाई के पास सिर मुंडवाने चले गए। बाल कटवाकर और सामान लेकर जब साथियों के पास पहुँचे तो वे भी पूछने लगे कि अचानक ही आप बाल क्यों कटवा आए हैं? तब उन्होंने बताया कि गांव में एक संत जी चल बसे हैं।
साथी बोले कि हम कौन सा नास्तिक हैं? नाई को बुलाओ, हम भी बाल कटवाएंगे। बात की बात में सभी मिलिट्री वालों ने अपने बाल कटवा लिए।
संध्या हुई तो वज़ीर साहिब मिलिट्री की जांच पड़ताल करने के लिए उनके कैम्प में आए। आकर देखा कि सब सिर मुंडवाकर बैठे हैं, पर क्यों? तो उन्होंने बताया कि
स्वामी शंखेश्वर जी महाराज परलोक गमन कर गए है। संत तो सबके सांझे होते हैं, इसलिए हम सबने उनके शोष में सिर मुंडवाया है। वज़ीर ने सोचा कि हमारे सारे राज्य का भार मिलिट्री के ऊपर है, अगर में भी सिर मुंडवा लूँ तो इन पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा। उसने भी नाई को बुलाकर अपने बाल कटवा लिए।
करते करते बात राजा तक भी जा पहुँची। राजा ने भी उचित जानकर अपने बाल कटवा लिए और हाथ मुँह धोकर महल में रानियों के पास पहुँचा। रानियों के पूछने पर राजा ने बताया कि गांव में एक संत शरीर छोड़ गए हैं।
सारे राज्य ने उनके शोक में सिर मुंडवाया है। रानियों ने राजा को कहा कि हम भी उन संत महात्मा जी के स्थान पर माथा टेकने को चलेंगी। ऐसा कहकर वे राजा के साथ महल से बाहर आ गई।
राजा ने कहा कि मुझे तो संत जी के निवास स्थान के विषय में कुछ मालूम नहीं है। वज़ीर को बुलाया गया। उसने कहा कि मुझे तो मिलिट्री वालों ने कहा था।
मिलिट्री वालों से पूछने पर उन्होंने भी यही कहा कि न हमने संत को देखा है और न ही उनके स्थान के बारे में कुछ पता है। सभी मिलकर मोदी के पास पहुँचे। दुकान के आगे इतनी भीड़ खड़ी देखकर मोदी आश्चर्यचकित हो गया।
लोगों ने उससे संत जी के स्थान के बारे में पूछा। तो वह बोला कि मुझे तो फलां कुम्हार ने आकर उनकी मृत्यु का समाचार दिया था। सभी मिलकर कुम्हार के पास पहुँचे। कुम्हार बड़ी नम्रता से बोला कि अन्नदाता! आप आज इस गरीब के घर कैसे पधारे ?
राजा ने उससे महात्मा जी के बारे में पूछा। कुम्हार हाथ जोड़कर पूछने लगा कि आप किस महात्मा जी के विषय में पूछ रहे हो ?
वज़ीर ने कहा कि हम स्वामी शंखेश्वर आनंद जी महाराज के विषय में पूछ रहे हैं।
कुम्हार बोला- हज़ूर, वह तो मेरे गधे का नाम था । मरने के बाद तो मैंने उसे जंगल में फेंक दिया था। यह सुनकर सभी बहुत शर्मिंदा हुए अपने किए पर खूब पछताने लगे। और बिना सोचे विचारे
जगत की भेड़चाल, चलते के पीछे चलें । परमार्थ न संभाल, देखो जग की रीति ये ॥
एक आदमी ने श्री गुरु नानक देव जी को कुराही कहकर पुकारा, दूसरे ने सुना तो वह भी उन्हें उसी नाम से पुकारने लगा। देखादेखी बहुत सारे लोग हाथों में पत्थर लेकर खड़े हो गए परन्तु जब वास्तविकता सामने आई तो सब के सब बहुत शर्मसार हुए और चरणों में नतमस्तक हो गए।
ऐसे ही श्री गुरु अंगददेव जी के समय उनके गांव में एक तपी रहता था जो अपनी बिरादरी का मुखिया एक साल बारिश नहीं हुई तो किसान और जमींदार उस तपी के पास गए और पूछा कि बारिश कैसे व कब होगी ? तपी ने कहा कि जब श्री गुरु अंगददेव जी को गांव से बाहर निकालोगे तभी बारिश होगी। था।
सभी मिलकर उनके पास गए। गुरु साहिब जी शीघ्र ही सामान लेकर दूसरे गांव की ओर चल दिए। एक दूसरे की बातें सुनकर सब लोग ही ऐसा समझने लगे कि जहाँ भी श्री गुरु अंगददेव जी जाएंगे वहाँ बारिश नहीं होगी।
उन्होंने सात गांवों में जाने की कोशिश की लेकिन लोगों ने उन्हें अपने गांव में घुसने नहीं दिया। बिना सोचे विचारे लोग मार्ग में डंडे लेकर खड़े हो गए। कोई विरले विचारवान संस्कारी पुरुष जिन पर सत्पुरुषों की अपार कृपा होती है वे ही ऐसे झूठे प्रचार की बातों में न आकर सत्य का दामन पकड़े रहते हैं।
वरन् आम दुनिया तो झूठी बातों में आकर सच से वंचित होकर अपना अहित कर लेती है।