कविता
जुदा सारे जहान से होती है आशिकों की राह ।
हठ छोड़कर बढ़ते रहते बिना चिंता और चाह ।
मुर्शिद के सिवा न करते वे किसी की परवाह ।
सामी वे सदा ही करते मालिक की वाह वाह ।
2. आशिक कहलवाना है तो दे तन की सुध भुला ।
सतगुरु को कर सिर अर्पण आगे कदम बढ़ा ।
सामी उस साहिब से तू ले सच्ची प्रीत लगा ।
रख भरोसा उन पर ले उन्हें अपना मीत बना ।
3. संत सत्पुरुषों की जी जान से तुम सेवा करो ।
ममता त्यागकर मन को सामी भेंट चरणन धरो ।
हउमै को मिटाकर अपने अहं भाव को दूर करो ।
मिलकर सुखों के सागर से जन्म मरण की पीड़ हरो ।
4. सामी जिसने अंदर बाहर राम को पहचान लिया ।
जीवन जीने का असली मर्म उसने जान लिया ।
छोडूंगा नहीं दामन इनका जिसने यह ठान लिया ।
बन प्रभु का प्रभु की गोद में उस विश्राम किया ।