॥ कविता ॥ – कथनी और करनी का भेद
अड़सठ तीरथ कर ले चाहे काशी और हरिद्वार,
पढ़ ले पुराण अठारह, सभी शास्त्र व वेद चार ।
तुला दान, गो दान, सब कर ले कर्म अपार,
मन से किए कर्म ये सारे, बढ़ाते हैं अहंकार ।
केवल कथा साथ न दे, कर करनी पर विचार,
बिना किए मिले न मुक्ति, कहते संत पुकार ।
चौरासी का भय न रहता, खाए न यम की मार,
अमल में लाए वचनों से, निश्चय हो निस्तार ।
मुख से कण्ठस्थ कर ले, चाहे कोई ग्रंथ हज़ार,
बैठ मण्डली विद्वानों की, कर ले वाद विवाद ।
अंतर्मानस में ज्ञान का, है जब तक नहीं उजियार,
गया समय अकारथ, कर ले जीवन वह बरबाद ।
कथनी है इक थोथा धंधा, कर कर गए सब हार,
अमल बिना यह जीवन प्यारे, हो जाए दुश्वार ।
गुरु ज्ञान का चप्पू ही, नैय्या लगाए भव पार,
बिना गुरु मिले न मुक्ति, विद्वान हो चाहे गंवार ।