श्री गुरु-वंदना
॥दोहा॥
सतगुरु सिमरे से सुखी, महा सुखी तिहुँ काल ।
एक दृष्टि गुरु की पड़े, पल में होय निहाल ॥
जन्म जन्म से भटक कर, पड़ा शरण चरणार ।
गुण अवगुण देखे नहीं, सतगुरु बख्शनहार ॥
तुमरी महिमा को प्रभु, किस मुख से हम गावै ।
अल्पबुद्धि हम जीव प्रभु, अंत कहाँ से पावै ॥
रहो दयाल हम पर सदा, सतगुरु सत करतार ।
भूल चूक अवगुण प्रभु, हमरे नाहीं निहार ॥
अवगुण हमरे क्षमा करो, कृपासिन्धु कृपाल ।
दुर्बुद्धि काट सद्बुद्धि दो, सतगुरु देव दयाल ॥
सत् भूलें बख्शो प्रभु, त्याग न ताही दे ।
क्षमा करो अपराध सब, बहुर गोद में ले ॥
हम तो जीव अल्पज्ञ हैं, अवगुण सदा करें ।
ऐसी करुणा कीजिए, तुमरो ध्यान धरें ॥
मोह अज्ञान के चक्कर में, भरमे जन्म अनेक ।
अपनी दया से दीजिए, निज चरणन की टेक ॥
न कछु सेवा कर सकूँ, न कछु जानूँ ज्ञान ।
तुम सब जाननहारे हो, मैं बालक अनजान ॥
नज़र मेहर की कीजिए, जान दीन को ‘दास ।
अपनी प्रेमाभक्ति का, मन में करो प्रकाश ।।