भजन-अभ्यास और ध्यान का अर्थ है, मन को नाम सुमिरण में लगाकर समस्त विचार शक्ति को अपने इष्टदेव पर एकचित्त हो केन्द्रित करना। समस्त शान्ति व आनन्द दिव्य नाम के सुमिरण में है। जो सद्गुरु असीम कृपा कर जिज्ञासु को बख्श देते हैं।
सद्गुरु के आदेशानुसार भजन-अभ्यास, नाम-सुमिरण करने से जीव निहाल हो जाता है।
नाम सुमिरण आत्मा की खुराक है।
नाम सुमिरण आत्मा की खुराक है।प्रेम सहित निष्ठापूर्वक किया गया नाम-सुमिरण जीव को आत्मोन्नति और ले जाता है हर पल परमात्मा के जलवे से जीव आनन्द-विभोर रहता है। भजन-अभ्यास नियमपूर्वक अथक परिश्रम व अटूट श्रद्धा के साथ किया जाना चाहिए। इसका यह अर्थ नहीं कि अपने कार्य-व्यवहार छोड़ दो। अपितु कार्य-व्यवहार
करते हए, दिव्य नाम का सुमिरण प्रतिदिन करना चाहिये क्योंकि प्रमख कर्त्तव्य तो जीवन का यही है।
भारतीय ग्रामीण महिलायें जब दूर किसी नदी या कुएँ से पानी भरकर लाती हैं तो उनके पास तीन-चार मटके होते हैं, वह सिर पर एक दूसरे पर रखकर, ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर बातें करती हुई चली आती हैं, किन्तु उनका सन्तुलन कदापि नहीं बिगड़ता, चाहे वह चल रही हों या बातें कर रही हों। उनका ध्यान अपने पानी से भरे घड़ों की ओर होता है।
इसी प्रकार मनुष्य को अपने जगत के कार्य व्यवहार करते हुए अपनी सुरति की धारा को प्रभु नाम में तल्लीन रखना है। खाते-पीते, सोते-जागते अपनी लिव को सद्गुरु के बख्शे नाम में केन्द्रित रखना है।
भजन-अभ्यास आत्म-साक्षात्कार करने का निश्चित साधन है
भजन-अभ्यास आत्म-साक्षात्कार करने का निश्चित साधन है। इसके द्वारा चंचल अस्थिर स्वेच्छाचारी मन सहजता से नियन्त्रित किया जा सकता है।
बहिर्मुखी मन कु विषय-भोगों से विमोहित हो ऐन्द्रिक उपभोगों में उलझा रहता है। किन्तु भजन-अभ्यास द्वारा प्रमादी मन स्थिर हो जाता है व परमात्मा के ध्यान में एकाग्र हो जाता है।बिना नाम सुमिरण के मदमस्त मन को नियन्त्रित करना सम्भव नहीं है।
प्रतिदिन भजन-अभ्यास पर बैठने के लिए हृदय में चाह व लगन बढ़नी चाहिए
प्रतिदिन भजन-अभ्यास पर बैठने के लिए हृदय में चाह व लगन बढ़नी चाहिए। भजन पर बैठने की तीव्र इच्छा पैदा हो। ऐसी लगन को उत्पन्न करने हेतु सन्तों-महापुरुषों की वाणियों तथा जीवनियों का चिन्तन व मनन करना चाहिए तथा उन पर अमल करने का प्रयास करना चाहिए।
हर पल अपने इष्टदेव सद्गुरु की असीम कृपा व दयालुता को याद करना चाहिए जिससे हृदय प्रेम से भरपूर व भाव विह्वल रहे। सद्गुरु की आज्ञा को हर वक्त शिरोधार्य करना चाहिए कि हर गुरुमुख के लिए एक घंटा भजन-अभ्यास प्रतिदिन करना अनिवार्य है।
महात्मा गाँधी जी का भी कथन है :-
“दिन के एक घंटे की प्रार्थना द्वारा मुझे दिन के बाकी है तेईस घण्टों में ठीक प्रकार कार्य करने की शक्ति प्राप्त होती है।”
अटल इरादा बनाना चाहिए, मुझे निश्चित समय पर। भजन-अभ्यास पर बैठना ही है, चाहे मन माने या न माने। । अपने मन को कभी प्रेम से तो कभी ताड़ना से अभ्यास में लगाओ। ज़रा सोचो अगर तुम किसी को मिलने का समय देते हो और उस समय वहाँ नहीं पहुँचते तो क्या तुम अपना वायदा न निभाने की वजह से शर्मसार न होंगे। इसीप्रकार
भजन-अभ्यास का समय परमात्मा से मिलने का समय है। अपना वायदा निश्चय ही निभाना चाहिए। अगर तुम आदत डालने का पुरुषार्थ करोगे तो निश्चय ही तुम्हें अपना वायदा मन को आदत डालने का कुदरत तुम्हारी मदद करेगी।
प्रेम व लगन से किए गए नाम-सुमिरण द्वारा प्रभु का दर्शन अवश्य होता है।परमात्मा प्रेम की डोरी में बँधे प्रेमी के इसका अहसास सेवक स्वयं अपने अन्तःकरण में स्वयं कर सकता है
भजन अभ्यास की विधि
- सब सज्जन आसन लगा कर बैठें, आलस और सुस्ती को त्याग कर । शरीर को सीधा रख कर बैठें।
- सुख आसन में दायाँ पाँव उपर रहे और बायां उसके नीचे । सावधान बैठ कर अपनी अंतर- दृष्टि नाक के अग्र भाग पर रखें। दोनों हाथों को अपने घुटनों पर रख कर ध्यान मुद्रा में बैठें।
- अब स्वासों के जाप में अपनी सुरति को लगाएँ । अजपा जाप में चित्तवृत्ति को लीन करना है।
- सुरति (यानी चित्तवृत्ति की धारा) और निरति (यानी चित्त की अन्तरीव-दृष्टि) दोनों ही आँखों के बराबर और मध्य में रहें। इस प्रकार भ्रूमध्य में ख्याल को लगा कर स्वांसों का जाप करें।
- सावधान हो कर पूरी रुचि और एकाग्रता से यह अभ्यास करें ।
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