निष्काम सेवा
प्रभु की दरगाह में वही मान पाता है जो सद्गुरु के पावन श्री चरण कमलों में सर झुकाता है। श्री सद्गुरु की निष्काम सेवा से आत्मा स्वच्छ व निर्मल होती है तथा अन्तर ज्योति अभिव्यक्त होती है। अहंकार भक्तिमार्ग में बाधा डालता है इसलिए निष्काम भाव, लगन व उत्साह से सेवा करनी चाहिए। इस साधन द्वारा अहंकार पर विजय प्राप्त की जा सकती है। सेवा से क्या होता है
मनुष्य देह के प्रत्येक अंग-नेत्र, कान, हाथ, पैर तथा मन सब पूर्ण रूपेण मालिक की सेवा में लगाने चाहिए।
जिससे अन्तरात्मा शुद्ध हो जाती है। जब हम अपने सद्गुरु तथा सन्त-महापुरुषों की सेवा करते हैं तो हमारा हर कर्म पवित्र और निष्काम होता है, जो हमें कर्म-बन्धन से रहित करता है।
निष्काम सेवा द्वारा सरलता से मालिक की प्रसन्नता प्राप्त की जा सकती है सेवा विहीन जीवन व्यर्थ है।
सांसारिक व्यवहार बेशक करो केवल एक कर्त्तव्य समझकर। उसमे अपना दिल न लगाओ चूँकि यह हमें अपने असली लक्ष्य का ओर कदापि नहीं ले जा सकता। संसार की आसक्ति हमारे जन्म-मरण का कारण बनती है। मनुष्य जीवन का कर्तव्य-आत्म-साक्षात्कार है, परमात्मा से एकीकरण करना है।
पूर्ण सद्गुरु की सेवा सर्वोत्तम, सर्वश्रेष्ठ सेवा सद्गुरु के रूप में स्वयं परमात्मा ही इस धराधाम पर अवतरित होते हैं। वे सर्व कर्म-बन्धन रहित हैं। पूर्ण सद्गुरु की सेवा सर्वोत्तम, सर्वश्रेष्ठ सेवा सद्गुरु के रूप में स्वयं परमात्मा ही इस धराधाम पर अवतरित होते हैं। वे सर्व कर्म-बन्धन रहित हैं।
वे प्रेम व दया के सागर हैं जिसकी एक बूंद से जीव आनन्दमग्न हो जाता । ऐसे पूर्ण सद्गुरु की निष्काम भाव से सेवा करने से जीव की समस्त आसक्ति की बेड़ियाँ कट जाती हैं। जीव के कर्म-बन्धन कटते हैं अतएव हृदय में प्रेम हिलोरें उठने लगती है। जिससे आत्मा शाश्वत परम आनन्द में लीन हो जाती है।
सेवा वह है जो सद्गुरु की आज्ञानुसार की जाए। अक्षरशः उनके आदेशों का अनुसरण किया जाए। सेवा से मन उज्जवल हो उठता है व प्रभु भक्ति का पात्र बन जाता है।
सेवा विहीन जीव पर मन और माया का वार आसानी से चल जाता है, किन्तु सेवा करने से जीव भक्ति में सुदृढ़ हो जाता है अन्यथा मन अस्थिर तथा बहिर्मुखी ही रहता है। निष्काम सेवा से मन शुद्ध स्थिर तथा अन्तर्मुखी हो जाता है। अहकार नष्ट हो जाता है और मालिक की भक्ति में ध्यान लगता है।