दिल्ली का पुराना किला
दिल्ली स्थित पुराना किला परिसर में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए.एस.आई.) द्वारा किए जा रहे उत्खनन में ऐसी वस्तुएं और निर्माण अवशेष मिले हैं, जिनसे साफ हो गया है कि यहां ईसा पूर्व 1200 वर्ष भी बसावट थी और सभ्यता सनातन धर्म पर आधारित थी । ऐसी वस्तुएं भी मिली है जिससे पता चलता है कि यहां पर रहने वाले लोग भगवान लक्ष्मी- गणेश को पूजते थे।
गजलक्ष्मी की टैराकोटा पट्टिका
उत्खनन कार्य के दौरान गजलक्ष्मी की एक टैराकोटा यानी मिट्टी को पकाकर बनाई गई पट्टिका प्राप्त हुई है। इस पट्टिका में लक्ष्मी देवी की आकृति उभरी हुई है जिसमें देवी मां बैठी हुई हैं। उनके ऊपर दो हाथियों द्वारा सूंड उठाकर जलाभिषेक किया जा रहा है। इसे गुप्त काल यानी 4-5वीं शताब्दी ईसवी का बताया जा रहा है।
सॉफ्ट स्टोन की गणेश प्रतिमा
पुराना किला में स्थित कुंती देवी मंदिर के सामने उत्खनन के दौरान ए. एस. आई. को डेढ़-पौने दो इंच की सॉफ्ट स्टोन से बनी गणेश प्रतिमा प्राप्त हुई है। इस प्रतिमा का रंग काला है। इसे 16वीं- 17वीं शताब्दी के मुगल काल का बताया जा रहा है।
बैकुंठ विष्णु की प्रतिमा
उत्खनन के दौरान बैकुंठ विष्णु की एक प्रतिमा प्राप्त हुई है। जिसे 10-11वीं शताब्दी का बताया जा रहा है यानी राजपूत काल का। इसे दिल्ली क्वारजाइड स्टोन यानी स्थानीय पत्थर से बनाया गया है। इस मूर्ति में भगवान विष्णु खड़े हुए हैं और नीचे दो गण भी दिखाई दे रहे हैं।
आभूषण का मोती
यहां ए. एस. आई. को एक मोती मिला है। जिसके बीच से लोहे की तार निकली हुई है। जो आभूषण का मोती बताया जा रहा है। इसे कुषाण काल का कहा जा रहा है जो पहली शताब्दी ईसवी यानी 2000 साल पुराना है।
विभिन्न कालखंडों के सिक्के व मोहर
यहां विभिन्न कालखंडों के 136 से अधिक सिक्के व 35 मोहरें प्राप्त हुईं हैं। इनके अतिरिक्त विभिन्न पत्थरों के मनके, हड्डी की सुई, मिट्टी के बर्तन व कई कलाकृतियां भी प्राप्त हुई हैं। जो साफ बताती हैं कि 2500 साल से पुराना किले का स्थान व्यापारिक गतिविधियों का केंद्र भी रहा है।
स्लेटी रंग के मिट्टी के बर्तनों ने बढ़ाई रोचकता
उत्खनन के दौरान पेंटेड ग्रे वेयर (पी.डब्ल्यू.जी.) यानी चित्रित धूसर मृदुभांड मिले हैं जिन पर काले रंग से डिजाइन बनाए जाते थे। इन्हें पुरातत्वविद् बी.बी. लाल ने साल 1970 में महाभारत काल से संबंधित बताया था।
इनकी डेटिंग 1100-1200 ईसा पूर्व यानी करीब 3200 साल पुरानी बताई थी । पुराना किला उत्खनन में पी.डब्ल्यू.जी. प्राप्त हुआ है, साथ ही यह भी पता चला है कि उस काल में भी पुराना किला में लगातार गतिविधियां जारी थीं और पुराना किला बिजनैस हब भी रहा है इसीलिए इसे महाभारत से जोड़ा जा रहा है।
पांचवीं बार हो रहा है उत्खनन
पुराना किला में 5 बार उत्खनन का कार्य किया जा चुका है। पहली बार साल 1954-55 में उत्खनन किया गया था। इसके बाद साल 1969-73 तक दोबारा उत्खनन किया गया। ये दोनों उत्खनन के कार्य पुरातत्वविद् व इंडियन ऑर्कियोलॉजी के पितामह बी.बी. लाल के संरक्षण में किए गए थे।
साल 2013-14 व 2017-18 में हुई खुदाई का कार्य पुरातत्वविद् डा. वसंत कुमार स्वर्णकार ने किया। इस समय भी डा. स्वर्णकार ही पुराना किला में उत्खनन का कार्य देख रहे हैं। अभी तक पुराना किला परिसर में 3 जगह उत्खनन किया गया है।
शुरुआती उत्खनन कार्य भी है खास
शुरुआत में जब साल 1954-55 व 1969-73 में उत्खनन का कार्य किया गया तो उस समय मौर्य काल तक पुरातत्वविदों की खोज पहुंच चुकी थी।
उत्खनन में चित्रित धूसर पात्र खंड तथा शुंग – कुषाण कालीन पुरावशेष पाए गए थे जबकि साल 1969-73 के दौरान हुए उत्खनन के दौरान 8 कालों के अवशेषों के साथ आद्य ऐतिहासिक काल के स्तरविन्यास का भी पता चला जो उत्तरी क्षेत्र के उत्तरी कृष्णमर्जित पात्र परंपरा काल (करीब 600-300 ईसा पूर्व) के हैं।
साल 2013-14 व 2017-18 तक किए गए उत्खनन कार्य में पहली बार सबसे पुरातन अवशेष हाथ लगे थे, जिनका कालखंड 900 ईसा पूर्व का था, इसे पूर्व मौर्य काल का बताया जाता है। जिसमें स्लेटी रंग के बर्तनों पर काले रंग से डिजाइन किया जाता था, इसे पेंटेड ग्रे वेयर कहते हैं।