साई लाडी शाह जी

लाडी साई जी बाबा मुराद शाह जी के भतीजे थे। जिसको बाबा मुराद शाह जी ने आप चुना था। उनका नाम विजय कुमार बल्ला था। लाडी साई नाम उनके मुर्शिद ने उनको दिया था।

लाडी साई जी का जन्म कब हुआ था ?

लाडी साई जी का जन्म 26 सितंबर 1946 को हुआ था। उनकी उम्र सिर्फ 14 साल थी। जब बाबा मुराद शाह जी दुनिया से चले गए।

जैसे फकीरे के बोल थे कि इस खानदान में दो भगवान का नाम लेने वाले जन्म लेंगे। पहले हुए बाबा मुराद शाह जी। दूसरे हुए लाडी साई जी।

एक दिन की बात हैं। लाडी साई जी अपनी बुआ के पास कुछ दिन रहने के लिए राजस्थान गए थे। और बुआ जी के बच्चों के साथ खेल रहे थे। और एकदम उनकी आवाज बदल गई। बच्चों ने बुआ जी को बताया और उन्होंने देखा कि बाबा मुराद शाह जी की आवाज आ रही है।

कह रहे थे कि बहन मेरी मजार सुनी पड़ी है लाडी साई जी को कल 5:00 वाली बस पर बिठाकर वापस भेज दो। लाडी साई जी वापस नकोदर पहुंच गए और खुद ही मजार की ओर चल पड़े। उनका शरीर तप रहा था। और ऐसे लग रहा था कि जैसे उनके शरीर से आग निकल रही हो। और कह रहे थे कि मैंने फकीर बनना है। और उनको घर लेकर गए उन्हें बुखार हो गया।

साई जी के पिता मुराद शाह जी के बड़े भाई बाबा मुराद शाह जी की फोटो के पास गए और कहा अगर आपने मेरा लड़का लेना है तो ले लो पर उसको ठीक कर दो।

फोटो में से आवाज आई हमने कहा था कि आपको फिर देखेंगे पीटते को जब आपका बेटा आपकी आंखों के सामने फकीर बनेगा। अब नहीं पीटना।

उनके बाई कहते मैं मेरी गलती थी मुझे माफ कर दो। यह लड़का आपका है अब। साई जी नै ठीक महसूस किया और सो गए।

‌ कुछ साल बीते और साईं जी जवान हुए। कहते हैं भगवान की राह पर चलने के लिए गुरु की जरूरत होती है। बाबा मुराद शाह जी की पूरी कृपा और शक्ति साईं जी के साथी थी। पर उसको जागृति करने के लिए एक सच्चे गुरु की जरूरत थी।

साईं जी गुरु की खोज के लिए घर से निकल पड़े। साईं जी कई स्थानों पर गए। कभी कांशी कभी हरिद्वार बहुत ढूंढा। पर कोई ऐसा ना मिला जो उनकी तीसरी आंख खोल सके।

फिर एक दिन साईं जी बापू भ्रम जोगी के डेरे नकोदर में पहुंचे। बापू जी गूगा जाहर पीर जी की साधना करें रहे थे। और गूगा जाहर पीर जी को पूरी तरह पूज चुके थे। साईं जी उनके डेरे में दूर जाकर बैठ गए। बापूजी ने लाडी कहकर आवाज मारी और पास बुलाया और पूछा मूराद शाह बनना है साईं जी ने कहा जी बनना है।

बापू जी ने कहा ठीक है फिर अब तुम्हें मुराद शाह बनाकर ही भेजेंगे। और कहा अपनी मां से आशीर्वाद है लेकर आओ क्योंकि फकीरी तब तक हासिल नहीं होती जब तक मां खैर ना पाए। जब साईं जी अपने माता जी के पास गए तब उन्होंने जोगिया भेस बदल लिया था। तब मां के लिए यह बहुत मुश्किल समय होता है जब उसका पुत्र बेगाना होने वाला था। और कभी घर नहीं वापस आना था। पर फिर भी मैं उसकी मां ने आशीर्वाद दिया और कहा कि जा पुत्र अपने बाप की पग को दाग़ मत लगाना। फिर बापू जी ने साईं जी को अपना मुरीद बना लिया और अपने पास रख लिया।

रोज़ इम्तिहान लए और पक्का करते रहे। बापूजी के पास एक और बच्चा था और वह उनका रिश्तेदार था। जिसका नाम मोहन था और वह भी उनका मुरीद बनना चाहता था। उनकी पीढ़ी में आगे चलना चाहता था। पर चलता वह है जिसको गुरु आप चुनते हैं जिसका गुरु के लिए पूरा संपन्न हो।

बापू जी रोज़ अपने शरीर पर दवाई लगाते थे। क्योंकि एक बार बापू जी ने अपने आप को आग लगा ली थी। जब उनको शादी के लिए कहा गया था। बापूजी अक्सर आवाज मारकर मोहन और साईं जी को बुलाते थे। पहले मोहन को पूछते तुम कौन हो मोहन कहता मैं आपका बच्चा हूं उसको भी रिश्तेदारी का घमंड था। बापूजी कहते फिर ये दवाई जो हाथ में लगी है उसको चाट कर दिखाओ। मोहन डर जाता और मना कर देता।

बापू जी फिर साईं जी को पूछते हैं तुम कौन हो,‌ साइन जी कहते हैं मैं आपके दर का दरवेश हूं। बापू जी कहते हैं फिर यह दवाई चाटो। जब साईं जी दवाई चाट रहे थे तो ऐसा लग रहा था कि जैसेआइसक्रीम खा रहे हो। साईं जी 16 साल बापू जी के पास रहे और उनकी संपूर्ण आज्ञा का पालन करके उनके सबसे प्यारे बन गए।

एक बार बापू जी ने जमीन से 30 फुट नीचे कूहा पटाया। उसने बैठने की जगह बनवाई। उन्होंने पहले मोहन को पूछा इसमें बैठेगा। मोहन तो पहले इस तरह के काम में डरता था उसने मना कर दिया। जहां गुरु पर भरोसा हो वहां डर नहीं लगता। यह इम्तिहान जुलम नहीं बल्कि परख होती है।

फिर साईं जी को पूछा इसमें बैठोगे साईं जी ने कहा हां जी मैं बैठूंगा। बापू जी ने कूहे के सबसे नीचे साईं जी को बिठाया। और 20 फुट पर आप बैठे। फिर ऊपर से बंद कर लिया। और कुछ दिन अंदर ही रहे। बाहर निकले ‌ फिर बापू जी अकेले कूहे में में बैठ गए। और ऊपर से बंद कर लिया।

दिन बीत गए बापू जी बाहर ना आए। कुछ महीने भी बीत गए। पर बापू जी बाहर ना आए। पर साईं जी बापू जी को याद करते रहे उसी तरह अनुशासन में रहते जिस तरह बापू जी के सामने रहते थे।

सवा साल बाद बापू जी बाहर निकले। उस दिन मेला लगा हुआ था। बापू जी अपनी मौज में आ गए। और साईं जी को लाडी कहकर आवाज मारी। पास बुलाया घुंगरू दिए और कहा शेरनी का एक ही बच्चा होता है जो कि लाखों में भारी होता है।

कहा अब तू बन गया मुराद शाह आज के बाद दुनिया तुम्हें लाडी शाह जी के नाम पर जानेगी। और कहा अपने मूषक बाबा मुराद शाह जी की जगह पर बैठकर लोगों की मुरादे पूरी कर।

साईं जी ने फिर बाबा मुराद शाह जी के डेरे का निर्माण शुरू करवाया। और वह खुद भी रहने लगे। कुछ सालों बाद एक बहुत ही खूबसूरत दरबार बना। साईं जी पास पहले ही दरबार का नक्शा बहुत साल पहले ही बनाया हुआ था। आने वाले वक्त पर ऐसा होगा। साईं जी हर साल बाबा मुराद शाह जी की याद पर बरसी मनाया करते थे। और कव्वाल भी आते थे।

कव्वाल की महफिल हमेशा एक मलेरकोटल के करामात अली एंड पार्टी शुरू करते थे। जिनकी पीढ़ी बाबा मुराद शाह जी के समय से चल रही है। आप भी हर तरह इस बार भी यही कव्वालियां की महफिल लाते हैं।

एक बार साइंस पैसों की गठरी देते हुए कहा करामत अली तेरा मेरा हिसाब पूरा क्योंकि बाबा मुराद शाह जी ने एक कवाला को वादा किया था कि तो आपका हिसाब किताब आपके पुत्र और पोते को लाडी साई जी पूरा करेंगे। इसलिए साईं जी ने कई गुना करके उनको दिया। मूषक का किया हुआ वादा जरूरत के जरूरत से ज्यादा पूरा किया।

लाडी साईं जी 1 मई 2008 को दुनिया को छोड़ कर चले गए। लाडी शाह जी की याद में एक दो मई में मनायी जाती है। इस मेले में बहुत सारी संगत आती है और बहुत रोनक की लगती है।

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