उपवास के लाभ और हानियाँ
उपवास का शाब्दिक अर्थ है उप (समीप) वास उ रहना) अर्थात ईश्वर के समीप रहना। कुछ समय के लिए ठोस अथवा तरल आहार न लेकर केवल पानी आदि का सेवन करना उपवास कहलाता है। यह शरीर शोधन के साथ-साथ आत्म परिशोधक भी है। यह रोगों के उपचार की पद्धति भी है। इससे विजातीय द्रव्यों को शरीर से बाहर निकाला जाता है।
जब शरीर को भोजन के पचाने के कार्य से अवकाश मिल जाता है, तब सफाई का कार्य तेजी से होने लगता है। उपवास एक तप है। इसके लिए व्यक्ति को अपने मन को सुदृढ़ बनाना और शरीर को तपाना पड़ता है। कमजोर मन वालों के लिए उपवास करना कठिन हो जाता है।
अंग्रेजी में इसको ‘फास्ट’ (Fast) कहते हैं। हमारे शरीर के अंग दोषपूर्ण भोजन, अत्यधिक श्रम, कम शयन तथा दूषित जीवन के कारण विजातीय द्रव्यों से पीड़ित हो जाते हैं, तो उपवास में उन्हें विश्राम मिलता है, जिससे विजातीय द्रव्य शरीर से बाहर निकल जाते हैं और वे अंग स्वस्थ होते हैं। उपवास गलत आहार-विहार को सुधारने का एक उपाय है।
उपवास के लाभ
विधि पूर्वक किए गए उपवास से पाचन-तंत्र को आराम मिलता है। उपवास के समय शरीर बहुत अधिक विष और गन्दगी बाहर निकालता है और ज्यों-ज्यों शरीर निर्मल होता जाता है, रक्त की गति तीव्र हो जाती है, स्नायुजाल का कार्य पूरी गति से होने लगता है।
और जीवन-शक्ति शरीर में अबाध रूप से संचरण कर पाती है। ऊर्जा शक्ति पाचन-कार्य में व्यय न होकर रोग निवारण व मल निष्कासन का कार्य करती है। इससे अरुचि, अजीर्ण, उदरशूल, मलावरोध, सिरदर्द एवं ज्वर आदि रोगों से छुटकारा मिलता है। अपूर्व एवं स्थायी आरोग्यता की प्राप्ति होती है। अन्तरात्मा शुद्ध होती है। मोटापा घटता है।
उपवास के प्रकार
उपवास को हम आहारानुसार दो भागों में बाँट सकते हैं-
आंशिक उपवास
इसमें व्यक्ति एक समय भोजन करता है, बाकी समय में वह फलाहार, रसाहार, इत्यादि लेता है। जैसे धार्मिक उत्सवों में व्रत करते हैं। इससे आंशिक लाभ कुछ समय के लिए मिलता है क्योंकि शारीरिक क्रियाओं को कुछ समय विश्राम मिलता है।
पूर्ण उपवास
इसमें व्यक्ति जल के अतिरिक्त कुछभी ग्रहण नहीं करता। कई बार जल को भी छोड़ देता है। जल सम्बन्धी विकार दूर करने में इसकी सलाह दी जाती है। समय की दृष्टि से भी उपवासों को बाँटा जा सकता है जैसे:-
लघु उपवास
एक, दो या तीन दिन का होता है। इसे कभी भी कर सकते हैं। मध्यम उपवासः एक से चार सप्ताह का होता है।
दीर्घ उपवास
30 या अधिक दिन का होता है। उपवास कबः कभी भी जब भोजन से अरुचि पैदा हो या भोजन करने के बाद पेट में तनाव अनुभव हो। लघु उपवासों के लिए कोई भी समय उपयुक्त है।
अल्पकालिक उपवास का अभ्यास होने पर ही मध्यम एवं दीर्घ उपवासों को उपयुक्त वातावरण और स्थान देखकर करना चाहिए। उपवास कैसे प्रारम्भ करें: प्रारम्भ में दो-तीन दिन फलाहार पर रहने के पश्चात् तीन-चार दिन रसाहार लिया जाता है। उपवास के दिनों में मल-मूत्र त्याग कर पेट को अच्छी तरह साफ करें।
उपवास में आवश्यक नियम
जब शौच आना बन्द हो जाए तो उपवास में नित्य एक बार गर्म पानी का एनिमा अवश्य लें। दिन में दो तीन लीटर पानी अवश्य पीयें। इसमें दो नींबूओं का रस मिलाएं। यदि तकलीफ होती है तो किसी ताजा फल या तरकारी का रस लें। प्रातः 15 से 30 मिनट सूर्य स्नान करें।
उसके 15 मिनट पश्चात् स्नान करें। अधिक से अधिक समय खुले मैदान में बिताना और गहरी श्वास लेना चाहिए, ताकि रक्त शुद्ध हो । हल्के व्यायाम करें या सैर करें। मौन व्रत रखें। अच्छा साहित्य पढ़ें। उपवास करने वाले को उसकी अवधि बराबर बढ़ाते जाना चाहिए। परन्तु समय उतना ही बढ़ाना, जब तक – प्राण शक्ति की हानि न हो। लम्बा उपवास करने के लिए रोगी को पहले छोटे-छोटे उपवास करने चाहिएं।
निषेध :
गर्भावस्था, टी.बी., मधुमेह, रतौंधी जैसे रोगों में दीर्घ उपवास वर्जित है। कारण, इन रोगों में शरीर के भीतर कुछ आवश्यक तत्त्वों की कमी हो जाती है।
यकृत के रोगों में प्रोटीन की मात्रा कम होने के कारण में भी उपवास वर्जित है क्योंकि इन रोगों में अंतःस्रावी उपचार काल में उपवास नहीं करना चाहिए।थाइरोटाक्षिकोसिस व हाइपर एड्रिनालिज्म जैसे रोगों ग्रन्थियों के सावों में कमी हो जाती है।