जीव यहां परमात्मा द्वारा प्रदान की गई स्वांसों की पूँजी को व्यय करने के लिए आया है।
समय का सदुपयोग – अवधि समाप्त हो जाने के पश्चात् प्रत्येक प्राणी को यहां से जाना है। यह उसका वास्तविक ठिकाना नहीं। इसलिए बुद्धिमान वही है जो समय रहते हुए समय का पूरा लाभ उठाकर आगे की यात्रा का सामान तैयार कर ले ताकि यात्रा आनंदपूर्वक तय हो सके।
एक राज्य का यह नियम था कि अपने नागरिकों में से किसी एक को राजा चुनते थे
कथा है-एक राज्य का यह नियम था कि अपने नागरिकों में से किसी एक को राजा चुनते थे। राजा को पाँच वर्ष तक राज्य करने का अधिकार दिन जाता था। पाँच वर्ष की अवधि समाप्त हो जाने के उपरांत उसे नाव में बिठाकर दरिया पार एक बियावान जंगल में छोड़ दिया जाता जहाँ प्रायः वह जंगली जानवरों का शिकार बन मृत्यु को प्राप्त हो जाता।
लेकिन राजमद, मृत्यु को भुलाकर प्रत्येक राजा को गद्दी पर बैठते ही उसे ऐशो आराम में डाल देता।
एक बार एक सदगरु के सेवक की राजा बनने की बारी आ गई।
क्रम चलता रहा। एक बार एक सदगरु के सेवक की राजा बनने की बारी आ गई। सदगरु की किरपा स.. उसे यह ज्ञान था कि यह पद बहत थोडे समय के लिए। मिला है और अवधि समाप्त हो जाने पर उसे जंगल में भज दिया जाएगा।
उसने विचार किया कि पाँच वर्ष पश्चात् जहाँ मुझे जाना है, मैं अभी समय रहते क्यूं न उस जंगल का कुछ सुधार करवा दें ताकि मेरा आगामी जीवन सुखरूप बन सके।
राजगद्दी पर आसीन होते ही उसने अपने कुछेक कर्मचारियों को उस जंगल में भेजकर उसे साफ करने का आदेश दे दिया। कुछ ही समय के परिश्रम के पश्चात् वहजंगल पूर्णता साफ हो गया। अब राजा ने उस जगह को रमणीक बनाने के लिए वहाँ बाग बगीचे बनवा दिए।
समय के अन्तराल के पश्चात्
समय के अन्तराल के पश्चात् वहाँ भवन, विद्यालय, धर्मशालाएं इत्यादि बनवा दीं। औषधालय एवं पूजा पाठ के लिए मंदिरों का निर्माण करवा दिया।
जल की : पूर्ति हेतु कुओं आदि की भी पूर्ण व्यवस्था कर दी।
इस प्रकार उसने अपने पाँच वर्ष के राज्यकाल में में अपने अथक परिश्रम एवं सूझबूझ द्वारा उस बियावन जंगल को एक खूबसूरत राज्य में परिवर्तित कर दिया।
समय का सदुपयोग से जंगल की बजाय राज्य बसाया
अवधि समाप्त होने से कुछ समय पूर्व उसने कुछेक नागरिकों को भी नये राज्य में स्थानान्तरित कर दिया । नियमानुसार पाँच वर्ष पश्चात् जब उसे दरिया के पार भेजा गया तो : वहाँ उसे जंगल की बजाय राज्य बसाया मंगलमयी नगर मिल गया। प्रजा ने सहर्ष अपने राजा का अभिनन्दन किया।
समय की सार्थकता
उसने अपनी दूरदष्टि से न केवल अपनी जान ही बचाई बल्कि जीवन पर्यन्त राज्य का अनन्त सुख भोग कर गया ।
तात्पर्य यह है कि जो समय रहते समय का सदुपयोग कर लें, उसे सार्थक बना ले । वही जीव अपने जीवन को सकारथ कर सकता है।