सत्संग का अर्थ क्या है?
सत्संग एक अमूल्य निधि है । सत्संग का अर्थ है ‘सत’ अर्थात् ‘सच्चा संग अर्थात् सन्त-महापुरुषों की संगति–जहाँ केवल-केवल उस सत्य वस्तु की परख कराई जाती है, जहाँ केवल सत्य वस्तु के ज्ञान की उपलब्धि होती है। मन माया से परे, भौतिक जगत। के आकर्षणों से परे होकर जीव को आत्म ज्ञान कराया जाता है। मन को पूर्ण रूपेण उस परम पिता परमात्मा की ओर मोड़ा जाता है, जिसकी जीवात्मा अंश है।
सत्संग एक अमूल्य निधि है
यह सत्य है कि नदियों और नालों का पानी जब गंगा नदी में मिल जाता है तो वह भी गंगा रूप बन जाता है। लोहा भी पारस पत्थर से छु जाये, तो वह सोने में बदल जाता है।
नीम का वृक्ष चन्दन के वृक्ष के समीप होने से सुगन्धित हो जाता है और जो कुछ भी नमक की खान में जाता है वह नमक बन जाता है। इसी प्रकार यह भी अटल सत्य है कि जो भी सन्त-महापुरुषों की शरण संगति ग्रहण करता है वह उनके गहरे रंग में रंग जाता है, उज्जवल हो जाता है।
सत्संग एक अत्यधिक प्रभावशाली आध्यात्मिक पाठशाला या विद्यालय है, जहाँ रूहानियत, भक्ति और प्रेमकी शिक्षा दी जाती है। सत्संग एक अद्भुत प्रयोगशाला है जहाँ मन का संशोधन किया जाता है और मनुष्य इसप्रकार शद्ध एवं निर्मल बन जाता है
सत्संग’ का अर्थ एक उच्च तीर्थ स्थान है।
यह जन्म जन्मान्तरों के मलिन मन से पापों की मैल को उतार कर, स्वच्छ और पवित्र बना देता है। बुरे से बुरा भी इसके प्रभाव से नहीं बच सकता यानि वर सदाचारी व भक्तिपूर्ण विचारों वाला बन जाता है और प्रभु नाम के रंग में रंग जाता है। उस नाम के अमृत द्वारा जो सत्यरुषों की संगति में प्राप्त होता है ।
सत्संग का प्रभाव महान् है। जो भी सन्त-महापुरुषों के वचन सुनता है, मनन करता है और उनपर अमल करता है उसका जीवन सफल हो जाता है।
जीव के सच्चे हितैषी सतगुरु ही गुप्त व प्रकट दोनों रूपों में हर प्रकार से सेवक की रक्षा करते हैं