कविता- सतगुरु जी ने राग द्वेष का परदा
सतगुरु जी ने राग द्वेष का परदा दूर किया ।
कर इनायत ज्ञान की रोशनी से भरपूर किया ।
दर्शन की प्यासी आँखों को अपना सरूर दिया ।
चढ़ा नाम की मस्ती प्रेम के नशे में चूर किया ।
2. इन्द्रियां विषय भोगों से सहज ही हो गईं दूर ।
मन भी शिथिल हो करके हो गया चकनाचूर ।
चित्त से चिंताएं सब मिटीं पाया सुख भरपूर ।
प्रभु कृपा से मिल गया जब सतगुरु का ज़हूर ।
3. सतगुरु पर जाऊँ कुर्बान और सद् बलिहार ।
जिनके दर्शन से जीवन में आ गई नई बहार ।
सूरज को देखकर जैसे मिट जाता अंधकार ।
ऐसे ही सतगुरु दर्शन कर हुआ मन में उजियार ।
4. सतगुरु दीन दयाल के अनन्त अनन्त उपकार ।
लेकर अपनी शरण में बख्शा चरणों का प्यार ।
अपनी अनुकम्पा से कर दी सुखों की भरमार ।
महिमा किस मुख गाऊँ जो है बेअन्त अपार ।