सच्ची शान्ति
सच्ची शान्ति – मनुष्य शान्ति ! शान्ति! चिल्लाते हैं और इसकी खोज वह वहाँ करते हैं जहाँ शान्ति है ही नहीं। इसके विपरीत उन्हें मिलता क्या है? अशान्ति, चिन्ता और क्लेश।
ज्ञान जो अहमन्यता के त्याग से अविछिन्न रूप से जुड़ा हुआ है के अतिरिक्त सच्ची एवं स्थायी शान्ति प्राप्त नहीं हो सकती अर्थात् अहं के त्यागभाव से ही सच्ची एवं शाश्वत शान्ति प्राप्त हो सकती है, अन्यथा नहीं।
जो शान्ति हमें सांसारिक सुख-सुविधाओं ( धन-परिवारसम्मान इत्यादि) से प्राप्त होती है, वह क्षणिक होती है और यह जो सांसारिक सफलताएं हैं, यह भी सब क्षणिक हैं और परीक्षा की कसौटी पर रखने से यह खरी नहीं उतरतीं।
केवल मात्र सच्ची शान्ति ही प्रत्येक परीक्षण पर सफल और शाश्वत सिद्ध होती है और यह शुद्ध हृदय द्वारा ही ग्रहण की जाती है।
ईश्वर भक्ति ही एकमात्र अनन्तकाल तक रहनेवाली शान्ति है
इस मार्ग के यात्री के लिए ज्ञान के साक्षात् स्वरूप सद्गुरुदेव ही उसके मार्गदर्शक हैं। जैसे ही जीव भक्ति के मार्ग में प्रवेश करता है, वह इसकी पवित्रता का आंशिक अनुभव करने लगता है।
साधक उसकी पूर्णता को अनुभव तभी करता है जब सद्गुरु की कृपा से उसमें अहंभाव समाप्त हो जाता है और उसका जीवन निर्मल बन जाता है।
सच्चा सुख, सच्ची शान्ति क्या है?
अहंभाव और कामनाओं का दमन करना, वासनाओं की गहरी तहों को हृदय से मिटाना और अन्तर्हृदय में इच्छाओं के संघर्ष को शान्त करना; इसका नाम ही सच्ची शान्ति है।
हे जिज्ञासु ! यदि तुम कभी भी क्षीण न होने वाले दिव्य प्रकाश, कभी भी समाप्त न होने वाले शाश्वत आनन्द और सर्वथा निर्बाध रूप शान्ति को अनुभव करना चाहते हो, यदि तुम पाप, दुःख, चिन्ता तथा परेशानियों से सदा के लिए मुक्त होना चाहते हो तो अपने मालिक में अटूट विश्वास रखो।
उनकी निष्काम भाव एवं श्रद्धा से सेवा करो और उनकी सहायता एवं कृपा से स्वयं पर विजय प्राप्त करो।
सद्गुरु आपके अंदर निहित उस आत्मशक्ति को जागृत करते हैं जिससे आपके विचार, कामनाएँ एवं इच्छाएँ पूर्ण रूप से शान्त हो जाते हैं और फिर मन को विचलित नहीं कर पातीं। इसके अतिरिक्त शान्ति का अन्य कोई मार्ग नहीं है।
यदि तुम थोड़े समय के लिए बाह्य-पदार्थों, इन्द्रियों के रसभोगों, बुद्धि के तर्क-वितर्कों एवं संसार के कोलाहल तथा चकाचौंध से अलग होकर अपने हृदय के गहनतम प्रदेश में विश्राम करोगे तो वहाँ सभी कामनाओं के बलात् प्रवेश से मुक्त होकर तुम अनन्त शान्ति एवं निश्चलता को प्राप्त करोगे।
जीव के सच्चे हितैषी सतगुरु ही गुप्त व प्रकट दोनों रूपों में हर प्रकार से सेवक की रक्षा करते हैं