पांच इर्शाद
पांच इर्शाद
=> खुदा की बंदगी करो, वरना उसकी दी हुई रोटी मत खाओ।
=> ख़ुदा की रजा और उसकी दी हुई रोज़ी में राजी रहो, वरना दूसरा खुदा ढूंढ़ो जो तुमको ज्यादा दे।
=> जिस बात के करने को ख़ुदा ने मना किया है उससे बाज आओ, वरना उसके मुल्क से बाहर चले जाओ।
=> यदि पाप का विचार रखते हो तो ऐसी जगह ढूंढो जहाँ तुमको ख़ुदा न देखे, वरना पाप से बाज़ आओ।
=> शान सिर्फ ख़ुदा के लिए है।तमाम बड़े बड़े कार्य उनके हुक्म से होते हैं और अन्जाम पाते है। अतः तुम्हारा अहंकार फिजूल है।
महाप्रभु श्री परमहंस दयाल जी
महाप्रभु ने अपनी यादगार के रूप में कोई स्मारक, स्थान, मठ बनाना कत्तई पसन्द नहीं किया। महाज्ञानी होकर भी चेलों का दल खड़ा करना उन्हें रास नहीं आया।
बदले में बेलौस बोल गये– हम किसी के गुरु नहीं, बल्कि हम ही जमाने भर के चेले हैं। हम किसी को उपदेश वगैरह नहीं देते, हमारे रूप में पूर्ण ब्रह्म ही कहीं गुरु बनकर उपदेश करता है तो कहीं चेला बनकर मानता है। ……जय हो गुरुदेव
सदा अपनी अवधूत वृत्ति में मस्त रहे श्री दयाल प्रभु।