श्री दर्शन से साधक का हृदय प्रकाशित हो उठता है
श्री दर्शन-हर सच्चा प्रेमी, हर भक्त, हर सेवक अपने सद्गुरु के दिव्य दर्शनों की महिमा भाव-विभोर हो गाता है। पुर्ण सद्गुरु के स्वरूप से देदीप्यमान किरणें प्रस्फुटित होती हैं, जो सूर्य के सदृश ज्योतिर्मय हैं तथा चन्द्रमा सदृश शीतल है। उनके सारगर्भित प्रवचन सूर्य के समान प्रकाशमय हैं जिनके द्वारा अज्ञानता का अन्धेरा दूर हो जाता है।
कृपासिन्दु पूर्ण सद्गुरु के अलौकिक श्री दर्शनों से साधक का हृदय प्रकाशित हो उठता है, वह प्रेम विभोर, निर्मल तथा चिर-आनन्द व शान्ति से विभूषित हो जाता है।
आत्मा में हर्ष की अनन्त तरंगें उभरने लगती हैं अन्तःकरण में अनुपम मधुर संगीत की झंकार उत्पन्न होने लगती है।
जिज्ञासु अद्वितीय मस्ती में झूम उठता है
श्री दर्शनों की अलौकिक आभा में तल्लीन जिज्ञासु अद्वितीय मस्ती में झूम उठता है। उसका रोम-रोम विलक्षण आनन्द से पुलकित हो जाता है, वह परम सुख के समुद्र का अमृत पान करता है। प्रकाशपुञ्ज सद्गुरु के मनोहारी दर्शन कर हृदय रोमांच से प्रफुल्लित हो जाता है।
आत्मा में हर्ष की अनन्त तरंगें उभरने लगती हैं अन्तःकरण में अनुपम मधुर संगीत की झंकार उत्पन्न होने लगती है।
इसे केवल आत्मा ही अनुभव कर सकती है
सद्गुरु की मनोहारी छवि के श्री दर्शन से बुरे, संस्कार विनष्ट हो जाते हैं तथा जीव का अन्तःकरण स्वच्छ विमल व उज्जवल हो जाता है। आत्मा सर्वोत्तम मंजिल की ओर अग्रसर होने लगती है; दयानिधि भक्तवत्सल श्री सद्गुरुदेव जी के श्री दर्शन की अगम, अपार महिमा का वर्णन शब्दों में ब्यान करना असम्भव है। इसे केवल आत्मा ही अनुभव कर सकती है। वेदों तथा शास्त्रों ने पूर्ण श्री सद्गुरुदेव जी के दिव्य श्री दर्शन की महिमा का गायन ‘नेति-नेति’ कह सुनाया है। श्री दर्शन से उपलब्ध आनन्द अकथनीय तथा अनन्त है।
श्री दर्शन कर ब्रह्मानन्द में तल्लीन हो जाता है
जैसे मीन सागर से मिल कर झूमती है, जैसे कमल का फूल सूर्य की किरणें पाकर खिल उठता है, जैसे चात्रिक स्वाँति बूंद पीकर परितृप्त हो जाता है, जैसे चकोर चन्द्रमा को देखकर प्रफुल्लित हो जाता है, जैसे कोई दीन भाग्यवश पारसमणि को पाकर हर्षित हो जाता है, वैसे ही साधक का प्रेमी हृदय अपने इष्टदेव श्री सद्गुरुदेव जी के श्री दर्शन कर ब्रह्मानन्द में तल्लीन हो जाता है।