॥ दोहा ॥
श्री गुरु चरणन नमन करूँ, कोटि कोटि प्रणाम । जिनकी किरपा प्रताप से, पूरण हों सब काम ॥
गुरु मूरत के ध्यान से, कटें कोटि अपराध । धारें हृदय ऋषि मुनि, साधुन प्रीति अगाध ॥
॥चौपाई॥
श्री परमहंस गुरुदेव स्वामी । पारब्रह्म युग पुरुष अनामी ॥
होय प्रकट कलि के युग अंदर ।तारन मनुष कुटिल भए दिनकर ॥
देंवे रतन भक्ति अति भारी । आधि व्याधि उपाधि टारी ॥
जड़ चेतन की खोले ग्रन्थि ।परमारथ के हैं ये पन्थी ॥
हरि धर रूप मनुष का खेलें । जीव ब्रह्म कर बिछुड़े मेलें ॥
सतगुरु करुणा के हैं सागर । वचन सुना करें ज्ञान उजागर ॥
मुख से जो भी वचन उचारें ।जीव के संशय भरम निवारें ॥
बिगड़ी जन्मों की ये सँवारें ।करे मनन जो पार उतारें ॥
सत्संग अमृत वचन सुधाकर ।पीयूष पयोधि भक्ति प्रभाकर ॥
वेदों का है सार समाया । पलटे जीव की बुद्धि काया ॥
॥ दोहा ॥
सद्गुरु सद्गुण धाम हैं, अनुपम ज्योति सरूप । पारब्रह्म पुरुषोत्तम, महिमा अगम अनूप ॥
श्री परमहंस दयाल जी, कीन्ही कृपा अनन्त । अनुभवी वचन सुनाय कर, किया सुहेला पन्थ ॥
सद्गुरु सेवक को सहज ही मुक्ति प्रदान कर देते हैं। वे सेवक को विनम्र होने की युक्ति बतलाते हैं। उनके वचनों को सत्य मानकर व श्रद्धा भाव से भक्ति करके और मन माया के सभी ख्यालों से ऊपर उठकर गुरुमुख गगनमंडल में निवास करता है।