शिरडी वाले साईं बाबा का अवतार कैसे हुआ ?

शिरडी वाले साईं बाबा

साईं बाबा कैसे प्रकट हुए

शिरडी वाले साईं बाबा – शिरडी गांव नीम के वृक्ष के नीचे बालक रूप में साईं बाबा प्रकट हुए श्री साई बाबा के जन्म और उनके माता-पिता के विषय में रहस्य बनी हुई है।

धरती उनकी माँ और पिता आकाश की गोद में साई शिरडी में नीम के वृक्ष के नीचे बालक रूप में स्वयं भक्तों का कल्याण करने के लिए प्रकट हुए थे।

प्रकटावस्था में श्री साई ब्रह्मज्ञानी प्रतीत होते थे। वे त्याग और वैराग्य की साक्षात् मूर्ति थे।

साई ने अपना बसेरा समाधि लीन होने तक एक टूटी-फूटी मस्जिद में बनाये रखा। जिसे साई बाबा द्वारका माई कहकर मुकारते थे। वे एक पूर्ण संत थे।

संतों का कोई जाति-धर्म नहीं होता। दया, शांति, समभाव ये ही सब संतों का धर्म है। दीन-दयालु, कृपा सागर, प्यार का अपार मंजर ” बन कर साईं बाबा भक्तों के लिए इस मृत्यु लोक में प्रकट हुए, उनका संदेश था – ‘सब का मालिक एक है।’

राम और रहीम में किंचित मात्र भी भेद नहीं है। साईंबाबा का मंत्र है- ‘श्रद्धा और सबूरी’ जो भी व्यक्ति श्रद्धा, विश्वास और धैर्य रखता है, साईं बाबा उसकी सहायता अवश्य करते हैं।

कल को भूल जाओ और आज में जीना सीखो। ये साईं बाबा ने सिखाया है। अपनी अंतर आत्मा की आवाज सुनकर उस परमात्मा में ध्यान लगाकर साधना के मार्ग पर चलना चाहिए।

साईं की भक्ति की धूनी मन में रमानी चाहिए। परमात्मा को कहीं बाहर इधर-उधर ढूंढने की आवश्यकता नहीं वो तो अपने मन में ही समाया हुआ है।

जो कोई भी व्यक्ति इस संसार में साईं बाबा की भक्ति पूर्ण श्रद्धा और विश्वास रखकर मन से करता हैं, उसकी सारी बाधाएं दूर हो जाती हैं, सभी कष्ट – क्लेश और दुःख-दर्द मिट जाते हैं, सभी तरह के सुखों की प्राप्ति होती है, यश और मान प्राप्त होते हैं, साई बाबा उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण करते हैं।

साईं बाबा ने कहा है कि मैं सत्य हूँ। ये बात सत्य मानोगे तो उसका अनुभव स्वयं होगा। जो भी व्यक्ति सच्चे मन से मेरी शरण में आएगा

मैं उस के सभी कार्य पूर्ण करुंगा। जो मुझे जिस स्वरुप में मानेगा, उसी रूप में मैं उसे दर्शन दूंगा। जो भी व्यक्ति सच्ची सहायता लेने मेरे पास आयेगा, मैं उसकी अवश्य सहायता करुंगा।

जो भी व्यक्ति मुझे तन, मन और वचन से स्मरण करता है उस का ऋण मुझ पर चढ़ जाता है। जो नित्य साईं बाबा को भजता है उसे भेद-अभेद नहीं रहता।

धरती पर जब-जब भी धर्म की हानि और अधर्म का बोलबाला हुआ है। तब-तब ईश्वर ने न जाने कितने ही रूपों में इस संसार में जन्म लिया और पुनः धरती पर कर्म की स्थापना की, मनुष्यों को धर्म का नया रास्ता दिखाया, इन्हीं अवतारों में शिरडी के साई बाबा का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

आज शिरडी के साईं बाबा के नाम से कौन परिचित नहीं हैं? शिरडी के साईं बाबा की भक्ति में शक्ति छुपी हुई है, इसी लिए करोड़ों लोग उन्हें परमात्मा का सत्य अवतार कहते हैं।

जब कोई साई बाबा को हिन्दू कहता, तब वे कुरान शरीफ की आयातें सुनाते और जब उन्हें मुसलमान कहा जाता तो वे संस्कृत में शिव स्तोत्र सुनाकर सभी को सोच में डाल देते। साईं बाबा ने हिन्दू और मुसलमान दोनों को एक सूत्र में बांधा था।

इन्हीं के लिए उन का यही संदेश था- राम और रहीम एक ही हैं और उनमें जरा भी भेद नहीं है, फिर तुम उनके अनुयायी क्यों अलग-अलग रहकर आपस में झगड़ा करते हो ? अज्ञानी मनुष्यों, तुम एक साथ मिल जुलकर रहो।

साई बाबा अपने भक्तों को स्वप्न में दर्शन देते थे। उनके पास अन्नपूर्णा सिद्धि थी। साई स्वरूप में तो बाबा के जीवन काल में उनके हजारों भक्तों ने अनेक चमत्कार देखे हैं।

कौन कहता है कि साईं बाबा इस दुनिया में नहीं है। ऐसा तो कोई मूर्ख व्यक्ति ही सोच सकता है। साईं भक्तों के अनुसार, साईं अमर ज्ञान के रूप में सदैव भक्तों के साथ हैं।

बाबा के समाधिस्थ होने के पश्चात् भी आज भी उनकी लीलाएं जारी हैं जिससे यह सिद्ध होता है कि साईं बाबा अभी भी हमारे बीच विद्यमान हैं।

आज के युग में यदि कोई भी व्यक्ति सच्चे मन से बाबा पर पूर्ण श्रद्धा और विश्वास रखकर उन्हें याद करता है तो बाबा उसकी सहायता करने को उसके पास आकर खड़े हो जाते हैं।

साई बाबा ने अपने जीवन काल में कितने ही अद्भुत चमत्कार किए, अपने भक्तों पर उनकी कृपा सदैव बनी रहती थी।

आज भी यदि साई बाबा की भक्ति सच्चे मन से, पूर्ण श्रद्धा और विश्वाम रखकर विधिपूर्वक की जाए तो उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। साई बाबा उसे सुख, समृद्धि और शांति प्रदान करते हैं। साईं बाबा साक्षात देव हैं।

साई बाबा पर अटूट श्रद्धा और विश्वास रखकर यदि धैर्यपूर्वक 9 गुरुवार का व्रत विधिपूर्वक किया जाये तो निश्चित ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। साईं बाबा का व्रत कैसे किया जाये इसके लिए साई व्रत के नियम इस प्रकार है

शिरडी वाले साईं बाबा का अद्भुत अवतार

श्री साईबाबा समस्त यौगिक क्रियाओं में पारंगत थे। छः प्रकार की क्रियाओं के तो वे पूर्ण ज्ञाता थे। छः क्रियाएँ, जिनमें धौति (एक ३” चौड़े व २२५ ” लम्बे कपड़े के भीगे हुए टुकड़े से पेट को स्वच्छ करना), खण्ड योग (अर्थात् अपने शरीर के अवयवों को पृथक्-पृथक् कर उन्हें पुनः पूर्ववत् जोड़ना) और समाधि आदि भी सम्मिलित हैं।

यदि कहा जाए कि वे हिन्दू थे तो आकृति से वे यवन से प्रतीत होते थे। कोई भी यह निश्चयपूर्वक नहीं कह सकता था कि वे हिन्दू थे या यवन।

वे हिन्दुओं का रामनवमी उत्सव यथाविधि मनाते थे और साथ ही मुसलमानों का चन्दनोत्सव भी। वे उत्सव में दंगलों को प्रोत्साहन तथा विजेताओं को पर्याप्त पुरस्कार देते थे। गोकुल अष्टमी को वे ‘गोपाल-काला’ उत्सव भी बड़ी धूमधाम से मनाते थे।

ईद के दिन वे मुसलमानों को मस्जिद में नमाज़ पढ़ने के लिये आमंत्रित किया करते थे। एक समय मुहर्रम के अवसर पर मुसलमानों ने मस्जिद में ताज़िये बनाने तथा कुछ दिन वहाँ रखकर फिर जुलूस बनाकर गाँव से निकालने का कार्यक्रम रचा।

श्री साईबाबा ने केवल चार दिन ताज़ियों को वहाँ रखने दिया और बिना किसी राग-द्वेष के पाँचवें दिन वहाँ से हटवा दिया।

यदि कहें कि वे यवन थे तो उनके कान (हिन्दुओं की रीति के अनुसार) छिदे हुए थे और यदि कहें कि वे हिन्दू थे तो वे सुन्ता कराने के पक्ष में थे। (नानासाहेब चाँदोरकर, जिन्होंने उनको बहुत समीप से देखा था, उन्होंने बतलाया कि उनकी सुन्नत नहीं हुई थी।

ब्रह्मा साईलीला- यदि कोई उन्हें हिन्दू घोषित करें तो वे सदा मस्जिद मैं निवास करते थे और यदि यवन कहें तो वे सदा वहाँ धूनी प्रज्ज्वलित रखते थे तथा अन्य कर्म, जो कि इस्लाम धर्म के विरुद्ध है, जैसे-चक्की पीसना, शंख तथा घंटानाद, होम आदि कर्म करना, अन्नदान और अर्घ्य द्वारा पूजन आदि सदैव वहाँ चलते रहते थे।

“यदि कोई कहे कि वे यवन थे तो कुलीन ब्राह्मण और अग्निहोत्री भी अपने नियमों का उल्लंघन कर सदा उनको साष्टांग नमस्कार किया करते थे।

जो उनके स्वदेश का पता लगाने गए, उन्हें अपना प्रश्न ही विस्मृत हो गया और वे उनके दर्शनमात्र से मोहित हो गए। अस्तु इसका निर्णय कोई न कर सका कि यथार्थ में साईबाबा हिन्दू थे या यवन ।

इसमें आश्चर्य ही क्या है? जो अहं व इन्द्रियजन्य सुखों को तिलांजलि देकर ईश्वर की शरण में आ जाता है तथा जब उसे ईश्वर के साथ अभिन्नता प्राप्त हो जाती है, तब उसकी कोई जाति-पाँति नहीं रह जाती। इसी कोटि में श्री साईबाबा थे। वे जातियों और प्राणियों में किंचित् मात्र भी भेदभाव नहीं रखते थे। ऐसा अपूर्व और अद्भुत श्री साईबाबा का अवतार था।

ब्रह्म का सगुन अवतार

बाह्यदृष्टि से श्री साईबाबा साढ़े तीन हाथ लम्बे एक सामान्य पुरुष थे, फिर भी प्रत्येक के हृदय में वे विराजमान थे। अंदर से वे आसक्ति- रहित और स्थिर थे, परन्तु बाहर से जन-कल्याण के लिये सदैव चिन्तित रहते थे।

अंदर वे संपूर्ण रूप से निःस्वार्थी थे। भक्तों के निमित्त उनके हृदय में परम शांति विराजमान थी, परन्तु बाहर से वे अशान्त प्रतीत होते थे। वे भीतर से ब्रह्मज्ञानी, परन्तु बाहर से संसार में उलझे हुए दिखलाई पड़ते थे। वे कभी प्रेमदृष्टि से देखते तो कभी पत्थर शान्त और सहनशील थे। वे सदा दृढ़ और आत्मलीन रहते थे और अपने भक्तों का सदैव उचित ध्यान रखते थे।

वे सदा एक आसन पर ही विराजमान रहते थे। वे कभी यात्रा को नहीं निकले। उनका दंड एक छोटी सी लकड़ी थी, जिसे वे सदैव अपने पास सँभाल कर रखते थे। विचारशून्य होने के कारण वे शान्त थे।

उन्होंने कंचन और कीर्ति की कभी चिन्ता नहीं की तथा सदा ही भिक्षावृत्ति द्वारा निर्वाह करते रहे। उनका जीवन ही इस प्रकार का था। “अल्लाह मालिक” सदैव उनके होठों पर रहता था।

उनका भक्तों पर विशेष और अटूट प्रेम था। वे आत्म-ज्ञान की खान और परम दिव्यस्वरूप थे। श्री साईबाबा का दिव्यस्वरूप इस तरह का था। एक अपरिमित, अनंत, सत्य और अपरिवर्तनशील सिद्धांत, जिसके अन्तर्गत यह सारा विश्व है, श्री साईबाबा में आविर्भूत हुआ था।

यह अमूल्य निधि केवल सत्त्वगुण- सम्पन्न और भाग्यशाली भक्तों को ही प्राप्त हुई। जिन्होंने श्री साईबाबा को केवल मनुष्य या सामान्य पुरुष समझा या समझते हैं, वे यथार्थ में अभागे थे या हैं।

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